25 अगस्त से 08 सितंबर तक प्रतिवर्ष मनाया जाता है राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा

समदर्शी न्यूज़ रायपुर

36वें राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े के अवसर पर पं. जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के नेत्र रोग विभाग एवं क्षेत्रीय नेत्र अनुसंधान केंद्र द्वारा विविध आयोजनों की श्रृंखला के अंतर्गत शनिवार को नेत्रदान कौन, कब और कैसे ? विषय पर स्व. श्री अटल बिहारी वाजपेयी नवीन सभागार में सतत चिकित्सा शिक्षा (कंटीन्यूइंग मेडिकल एजुकेशन/सीएमई) का आयोजन किया गया। इस आयोजन के दौरान नेत्रदान के क्षेत्र में विगत कई वर्षों से कार्यरत सामाजिक संस्थाओं एवं एनजीओ को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के वैज्ञानिक सत्र में नेत्र रोग विशेषज्ञ तथा मेडिको लीगल विशेषज्ञों द्वारा नेत्रदान के संकेत और मतभेद, चिकित्सकीय कानूनी पहलू, तकनीकी और सामाजिक पहलू एवं नेत्रदान के मिथक पर व्याख्यान दिया गया।

वैज्ञानिक सत्र को विभागाध्यक्ष नेत्र रोग विभाग डॉ. निधि पांडे, नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. स्वाति कुजूर, मेडिको लीगल एक्सपर्ट डॉ. ललित शाह, नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. संतोष सिंह पटेल एवं डॉ. सुशील सचदेव ने संबोधित किया। सीएमई का शुभारंभ मुख्य अतिथि संचालक चिकित्सा शिक्षा एवं अधिष्ठाता डॉ. विष्णु दत्त, विशिष्ट अतिथि पूर्व डीन डॉ. पी. के. मुखर्जी, कांकेर मेडिकल कॉलेज के वर्तमान डीन डॉ. एम. एल. गर्ग, संचालक महामारी नियंत्रण सह राज्य कार्यक्रम अधिकारी डॉ. सुभाष मिश्रा एवं अम्बेडकर अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विनित जैन के द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। विशिष्ट अतिथि डॉ. विष्णु दत्त ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस प्रकार की शैक्षणिक गतिविधि के आयोजन से चिकित्सा क्षेत्र में हो रहे नित नए अनुसंधान एवं विकास के बारे में जानकारी मिलती है। इस क्षेत्र में आ रही नई तकनीक के बारे में जानकारी मिलती है। डॉ. पी. के. मुखर्जी ने अपने वक्तव्य में नेत्र बैंक की स्थापना और उद्देश्य को लेकर विस्तार से चर्चा की। डॉ. सुभाष मिश्रा ने क्षेत्रीय नेत्र अनुसंधान परिषद मेडिकल कॉलेज रायपुर में नेत्रदान की उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी दी। 

वैज्ञानिक सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. निधि पांडे ने नेत्रदान के बारे में परिचय देते हुए कहा कि मृत्युपूर्व नेत्रदान की घोषणा के बाद भी जब परिजन सहमति दें तभी आंख निकाल सकते हैं। दृष्टिहीनता और दृष्टिबाधित नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीबीवीआई) द्वारा हर साल नेत्रदान पखवाड़े का आयोजन किया जाता है। नेत्रदान में मांग एवं आपूर्ति के बीच बहुत ज्यादा अंतर है। जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो परिवारजनों को नेत्रदान के लिये प्रेरित कर सकते हैं। नेत्रदान के बाद नेत्र को आई बैंक तक पहुंचने के लिए सुरक्षित ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था होनी चाहिए। हमारे यहां ज्यादातर आई बैंक शहरी क्षेत्रों में होते है। अज्ञानता एवं अशिक्षा भी कई बार नेत्रदान में बाधा उत्पन्न करती है। प्राथमिक तौर पर ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यकर्ता, मितानिन या आशा वर्कर नेत्रदान के लिये लोगों को प्रेरित कर सकती हैं।  कॉर्नियल कलेक्शन और यूटिलाइजेशन को कोरोना काल ने बहुत हद तक प्रभावित किया। कोविड के कारण गुणवत्तापूर्ण  कॉर्निया   नहीं मिल पायी और जटिलताएं बढ़ र्गइं। अब जबकि कोविड कम हुआ है ऐसे में नेत्रदान कार्यक्रम को कम्युनिटी लेवल पर और भी आगे बढ़ाना है।

डॉ. स्वाति कुजूर ने नेत्रदान के संकेत और मतभेद के संबंध में बताया कि जब भी हम नेत्रदान के लिए जाते हैं तो आंखों की सम्पूर्ण जांच कर लेनी चाहिए। जो भी आंखें हम दान में ले रहे हैं वह दान करने के लायक हैं या नहीं। अगर आंखों में ट्यूमर है, रेटिनोब्लास्टोमा है तो भी वह आंखें दान में नहीं ली जा सकती। यदि आंख में स्त्राव हो रहा है, कंजक्टिवाइटिस है तो भी नेत्रदान नहीं ली जा सकती। यदि आपने मृतक के दस्तावेजों का परीक्षण किया है और उसमें नेत्र से संबंधित कोई गंभीर समस्या है तो भी आंखें दान में नहीं ली जा सकती। आंख की सम्पूर्ण जांच करिये और यदि आपको लगता है आंख देने के लायक है तभी आप उसको निकालिए।

मेडिको लीगल एक्सपर्ट डॉ. ललित शाह ने नेत्रदान के कानूनी पहलू के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि 1994 से पहले भारत में ऑर्गन डोनेशन से संबंधित कोई कानून नहीं था। अंगदान के व्यावसायिकरण (कमर्शियलाइजेशन ऑफ ऑर्गन डोनेशन) को रोकने के लिये अंगदान कानून को अस्तित्व में लाया गया। आई डोनेशन के कानूनी पहलू को भी यह अंगदान कानून कवर करता है। यह कानून इसलिए बनाया ताकि किसी भी अंग को निकालने के बाद उसका स्टोरेज करना और उसको सही जगह पर ट्रांसपोर्ट किया जाए ताकि दूसरी मरीज के चिकित्सकीय फायदे के लिए इसका इस्तेमाल हो सके और कार्मिशियल यूटिलाइजेशन न हो। इसको ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन आर्गन एक्ट 1994 कहा गया।। सन् 1994 में जो कानून बनाया गया था उसका संशोधन 2011 में किया गया। 2014 में इसका कार्यान्वयन किया गया जो ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन आर्गन एंड टिश्यू एक्ट (थोटा) के नाम से जाना जाता है । इस कानून के अंतर्गत ब्रेन स्टेम डेथ को भी लीगल डेथ माना गया है। इसके कारण से कैडेवरिक डोनेशन भी होने लगा। नेचुरल डेथ के बाद कुछ ही टिश्यू को डोनेट किया जा सकता है लेकिन ब्रेन डेथ के बाद में करीब-करीब 37 आर्गन या टिशू को लिया जा सकता है। जैसे किडनी, हार्ट, लिवर, लंग्स इत्यादि। सवाल यह भी उठता है कि यहां इतने अंग को दान किया जाता है तो उसके यूटिलाइजेशन की सुविधा होनी चाहिए। मध्यभारत आर्गन डोनेशन के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है। ब्रेन स्टेम डेथ में नेत्र को तब तक नही निकाला जा सकता जब तक कि बोर्ड ऑफ मेडिकल एक्सपर्ट ने सर्टिफाई नही किया हो। अनक्लेम्ड बॉडी में आई डोनेशन नहीं किया जा सकता। मेडकोलीगल में पोस्टमार्टम वाले केस में आई को नहीं निकाला जा सकता। पनिशमेंट ऑफ ह्यूमन आर्गन विदआऊट अथारिटी के लिए जुर्माने, निलंबन और कड़ी सजा का प्रावधान है।

 डॉ. संतोष सिंह पटेल ने आई डोनेशन की तकनीक के बारे में बताया कि आई डोनेशन के लिए छह घंटे बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। आई डोनेशन के लिए अगर कोई इच्छुक है तो उसके मृत्यु के छह घंटे के अंदर नेत्रदान हो जाना चािउए। आई रिमूवल के बाद हम कॉर्निया ट्रांसप्लांट करते हैं पूरा के पूरा आई नहीं। हमको दान देने वाले को बताना है कि सारी चीजें भविष्य में दूसरों की रौशनी के लिए दी जानी है। सहमति या कंटेंट बहुत महत्वपूर्ण है। एसेप्टिक मीजर में ग्लव्स पहनकर आई निकालनी है। आई लैशेज की क्लिनिंग बहुत इंपॉर्टेंट हैं। टीम आई है उसको पूरा सावधानी लेना है। सारा डॉक्युमेंटेशन बहुत इंपॉर्टेंट हैं। परिवार के लोगों को प्रोसीजर के बारे में बतायें। अगर हम  कॉर्निया   निकालते हैं तो क्या करेंगे। रिमूवल के बाद  कॉर्निया  के प्रिजर्वेशन की आवश्यकता होगी। एम के मीडिया में कार्निया को प्रिजर्व करके रखा जा सकता है। आई बैंक की टीम  कॉर्निया  टिश्यू का इवाल्यूशन करती है। एम के मीडिया प्रिजर्वेशन आज ज्यादातर यूज किया जा रहा है।

डॉ. सुशील सचदेव ने नेत्रदान के सामाजिक पहलू एवं भ्रांतियों को लेकर बताया कि यह समझना आवश्यक है हमारे भारत की जनसंख्या 135 करोड़ है। इन 135 करोड़ में हमारा आई डोनेशन केवल और केवल 25 से 30 हजार  कॉर्निया   है। मतलब दशमलव एक प्रतिशत से भी कम हम नेत्रदान करते हैं।  कॉर्निया  से ब्लाइंडनलेस की संख्या 2020 में लगभग एक करोड़ के आस-पास आ जाएगी। इतनी विशाल जनसंख्या वाले देश में इतना कम नेत्रदान कर रहे हैं। नेत्रदान को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं। नेत्रदान पूरी तरह निशुल्क किया जाता है। जब किसी की डेथ होती है तो लोगों को लगता है कि अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया में देर जो जाएगी इसलिए नेत्रदान नहीं करते जबकि  कॉर्निया  डोनेशन में 15 से 20 मिनट का ही समय लगता है।

 सीएमई में विशेष रूप से जिला अस्पताल की नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुसूइया दत्त एवं डॉ. पद्मजा दुबे शामिल रहीं। इस आयोजन का समापन पैनल डिस्कशन के साथ हुआ जिसमें पैनल के विशेषज्ञों ने लोगों के द्वारा नेत्रदान से संबंधित शंकाओं का समाधान किया। कार्यक्रम में शामिल समस्त अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रेशु मल्होत्रा ने किया। इस अवसर पर डॉ. अमृता वर्मा, डॉ. अंजू भास्कर, डॉ. मुकेश भगत, संजय शर्मा, नेत्रदान काउंसलर पराग केहरि उपस्थित रहे।

 वर्तमान में क्षेत्रीय नेत्र अनुसंधान केंद्र चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर में नेत्र में मधुमेह के लक्षणों की जांच, नेत्र में उच्च रक्तचाप के लक्षणों की जांच, कार्निया प्रत्यारोपण (नेत्रदान की सुविधा), मोतियाबिंद के ऑपरेशन एवं लेंस लगाने की सुविधा, कंप्यूटर द्वारा दूर एवं नजदीक देखने के चश्मे की जांच की सुविधा, ग्लूकोमा (काला मोतिया ) की जांच की सुविधा तथा रेटिना की बीमारियों की जांच की सुविधा है।

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