डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय, रायपुर, हृदय के तीनों वाल्व का एक साथ सफल ऑपरेशन, 45 वर्षीय मरीज के हृदय के दो वाल्व बदले और तीसरे वाल्व का रिपेयर किया गया

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तीनों वाल्व के सफल ऑपरेशन का प्रदेश के शासकीय चिकित्सा संस्थान में पहला केस, हार्ट चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू के नेतृत्व में हुआ ऑपरेशन

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो,

रायपुर. पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय से संबद्ध डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग में सूरजपुर निवासी 45 वर्षीय मरीज के हृदय के तीनों वाल्वों का सफल ऑपरेशन हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन एवं विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के नेतृत्व में हुआ। मरीज के हृदय के तीनों वाल्व खराब थे जिसका कारण रूमैटिक हार्ट डिजीज था। इस ऑपरेशन में मरीज के हृदय के एओर्टिक एवं माइट्रल नामक दो वाल्व को मेटल के वाल्व से बदला गया एवं ट्राईकस्पिड वाल्व को रिंग लगाकर रिपेयर किया गया। मेडिकल भाषा में इस ऑपरेशन को ”एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट विद बाई लीफलेट मैकेनिकल वाल्व प्लस माइट्रल वाल्व रिप्लेसमेंट विद बाई लीफलेट मैकेनिकल वाल्व प्लस ट्राइकस्पिड वाल्व रिपेयर बाई ट्राइकस्पिड एन्युलोप्लास्टी रिंग“ कहते हैं। आज यह मरीज स्वस्थ होकर डिस्चार्ज कराकर घर जाने को तैयार है। सफल ऑपरेशन के बाद मरीज के परिजनों का कहना है कि ऑपरेशन में थोड़ा विलंब जरूर हुआ लेकिन इसके परिणाम से उन्हें काफी प्रसन्नता महसूस हो रही है।

यह मरीज पिछले पांच साल से सांस फूलने की समस्या से पीड़ित था। सांस फूलने का कारण हृदय के वाल्व में सिकुड़न एवं लीकेज था। वो भी एक वाल्व में नहीं बल्कि हृदय के तीनों वाल्वों (एओर्टिक, माइट्रल एवं ट्राइकस्पिड वाल्व) में। मेडिकल भाषा में इस बीमारी को ”रूमैटिक हार्ट डिजीज विद सीवियर एओर्टिक स्टेनोसिस विद सीवियर एओर्टिक रिगार्जीटेशन प्लस सीवियर ट्राइकस्पिड वाल्व रिगार्जीटेशन“ कहते हैं। 

मरीज के बीमारी की हिस्ट्री के बारे में हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू बताते हैं कि यह मरीज सूरजपुर जिले से सांस फूलने के इलाज के लिए एसीआई पहुंचा। एसीआई में इकोकार्डियोग्राफी के बाद पता चला कि इस मरीज के हृदय के वाल्व में सिकुड़न एवं लीकेज आ गया था। वह भी हृदय के एओर्टिक, माइट्रल एवं ट्राइकस्पिड नामक तीनों वाल्व में। सामान्यतः एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के हृदय में चार वाल्व होते हैं जिनको क्रमशः एओर्टिक, माइट्रल, ट्राइकस्पिड एवं पल्मोनरी वाल्व के नाम से जाना जाता है। इन वाल्व का मुख्य कार्य रक्त को एक दिशा में बहने देना है जिससे हृदय का रक्त सभी अंगों में पर्याप्त मात्रा में एवं सुचारू रूप से पहुंच सके। यदि इनमें से कोई भी वाल्व में खराबी आती है तो हृदय कमजोर होेने लगता है जिससे हार्ट फेल्योर की संभावना बढ़ जाती है। हृदय के कमजोर होने से मरीज की सांस फूलने लगती है एवं पैरों एवं शरीर में सूजन आ जाता है। हृदय भी एक पंप जैसा होता है एवं इसमें भी नान रिटर्निंग वाल्व लगे रहते हैं। जिस प्रकार मोटर पंप का वाल्व खराब होने पर मोटर कमजोर हो जाता है एवं ठीक से पंप नहीं कर पाता उसी प्रकार हृदय भी एक पंप की तरह ही होता है। छत्तीसगढ़ समेत मध्य भारत एवं उत्तर भारत में हृदय वाल्व रोग का सबसे बड़ा कारण रूमैटिक हार्ट डिजीज (आरएचडी) है। इसमें बचपन में सर्दी खांसी के कारण स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया के कारण मरीज के शरीर में जो एंटीबॉडी बनता है वह एंटीबॉडी मरीज के हृदय के वाल्व को ही खराब कर देता है। वाल्व के खराब होने के अन्य कारणों में हृदय की धमनियों या कोरोनरी आर्टरी में रूकावट है। वहीं कुछ वाल्व जन्मजात खराब रहते हैं।

ऐसे हुआ ऑपरेशन

      डॉ. कृष्णकांत साहू के अनुसार मरीज का सबसे पहले ईको और कोरोनरी एंजियोग्राफी कराया गया। देखा गया कि कहीं ब्लॉकेज तो नहीं है। इसके बाद मरीज को ऑपरेशन थियेटर में बेहोश करके छाती को खोल करके हार्ट के ऊपर कैनुला (ट्यूब) फिट गिया गया। इस कैनुला की मदद से मरीज के हार्ट को हार्ट लंग मशीन से जोड़ा गया। हार्ट लंग मशीन ऑपरेशन के दौरान पूरे शरीर में ऑक्सीजन एवं पोषक तत्वों को प्रवाहित करता है। हार्ट लंग मशीन ऑपरेशन के समय उसी प्रकार कार्य करता है जिस प्रकार का कार्य हमारे हृदय और फेफड़े करते हैं जब हम सामान्य अवस्था में होते हैं। ऑपरेशन में मरीज के हार्ट को ओपन किया गया, उसके पहले मरीज के हृदय को एक विशेष प्रकार के सॉल्यूशन डालकर धड़कन को रोक दिया जाता है। धड़कन रूकने के बाद हार्ट के चेंबर को काटकर ओपन किया गया फिर क्रमशः मरीज के खराब हो चुके (कैल्सिफाइड वाल्व) को निकालकर उसकी जगह में सबसे पहले माइट्रल वाल्व फिर ट्राइकस्पिड वाल्व फिर एओर्टिक वाल्व लगाया गया। सब लगने के बाद हार्ट को पुनः बंद कर दिया और मरीज की धड़कन वापस आने के बाद हार्ट लंग मशीन को हटा दिया और मरीज का हृदय स्वतः काम करने लगा। इसके बाद मरीज को अगले 24 घंटे तक आईसीयू में वेंटीलेटर पर रखा गया। इस बीच मरीज के ब्लड प्रेशर, हृदय की धड़कन एवं रक्त स्त्राव को ध्यान में रखा गया। उसके एक दिन बाद मरीज के होश में आने के बाद मरीज का वेंटीलेटर हटा दिया गया। ऑपरेशन में पूरे चार घंटे से भी अधिक का समय लग गया तथा 4 यूनिट रक्त की आवश्कता पड़ी। 

      डॉ. कृष्णकांत साहू बताते हैं कि इस प्रकार का ऑपरेशन बहुत ही जटिल होता है क्योंकि इसमें मरीज के तीनों वाल्वों को बदलना होता है एवं ऑपरेशन एवं पोस्ट ऑपरेटिव पीरियड में मरीज के जान जाने का खतरा बहुत अधिक होता है। इसमें अच्छी सर्जिकल स्किल के साथ-साथ आईसीयू सेटअप का मजबूत होेना बहुत जरूरी होता है।

     मरीज का पूरा इलाज  डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के अंतर्गत निःशुल्क हुआ जिसमें 3.49 लाख की राशि की स्वीकृति  (ब्लॉक)  मिली  थी। इस ऑपरेशन में डॉक्टरों की टीम में हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन एवं विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के साथ डॉ. निशांत सिंह चंदेल, कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ. तान्या छौड़ा, परफ्यूजनिस्ट डिगेश्वर और चंदन एवं नर्सिंग स्टाफ में राजेन्द्र साहू शामिल रहे। एसीआई में हार्ट से संबंधित बीमारियों का उपचार शुरू हुए चार साल हो गये हैं। यहां दिनोंदिन हार्ट से जुड़े जटिल एवं बड़े ऑपरेशनों की संख्या बढ़ती जा रही है। यहां पर हृदय में लगाये जाने वाले कृत्रिम वाल्व एवं वाल्व रिंग बहुत ही उच्च क्वालिटी के हैं और सबसे लेटेस्ट टेक्नोलॉजी (थर्ड जेनरेशन ) के हैं।

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