डॉ. रमेश पोखरियाल “निशंक” की नवीन कृति ‘राष्ट्रीय एकता और हिंदी भाषा’ का माननीय राज्यपाल द्वारा लोकार्पण सम्पन्न.

Advertisements
Advertisements

आज राजभवन देहरादून में उत्तराखंड के माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी (सेवानिवृत्त) द्वारा उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की पुस्तक “राष्ट्रीय एकता और हिंदी भाषा” का लोकार्पण राजभवन में किया गया। 165 पृष्ठों की इस पुस्तक को 10 अध्यायों में विभाजित किया गया है। पुस्तक का प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत सरकार द्वारा किया गया है।

अपने उद्बोधन में लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी (सेवानिवृत्त) ने डॉ. निशंक को उनकी किताब के लिए शुभकामनाएं देते हुए कहा कि डॉ. निशंक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। भारत की शिक्षा नीति अप्रत्यक्ष रूप् से उत्तराखण्ड से ही आयी है, क्योंकि इसे लाने वाले तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ. निशंक हैं, जो उत्तराखण्ड से हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हिन्दी और भारतीय भाषाओं पर विशेष जोर दिया गया है। अपने उद्बोधन में माननीय राज्यपाल ने कहा कि डॉ. निशंक के लेखन के प्रति प्रेम और समर्पण का उदाहरण देहरादून में लेखक गांव का निर्माण के रूप में हम सबके सामने है। जहां पर साहित्य का सृजन होगा।

अपने उद्बोधन में डॉ. निशंक ने लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी (सेवानिवृत्त) का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह उत्तराखंड का सौभाग्य है कि उत्तराखंड को लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी (सेवानिवृत्त) जैसे सृजनशील, दूरदर्शी व्यक्तित्व राज्यपाल के रूप में मिले। डॉ. निशंक ने कहा कि एक सफल राष्ट्र और व्यक्ति का ध्येय वाक्य है कि निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल’ उन्होंने कहा कि किसी भी देश के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास में उस देश की भाषा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह संपूर्ण राष्ट्र की एकता और अखंडता की महत्वपूर्ण कड़ी होती है। हिंदी भाषा अनेकता में एकता को स्थापित करने की सूत्रधार है।

पुस्तक के लेखक डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि जब हम भारत को विश्व गुरू बनाने की बात करते हैं तो इसके लिये हिन्दी को सबसे पहले राष्ट्रभाषा बनाना होगा। उन्होंने कहा कि हिन्दी हिन्दुस्तान की पहचान, दुनियां में जितने भी विकसित राष्ट्र है वे सब अपनी मातृ-भाषा में पढ़ाई करवाते हैं। आज हिन्दी पूरे विश्व में बोली और पढ़ाई जा रही है। हिन्दी पूरे राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोती है।

Advertisements
Advertisements
error: Content is protected !!