आयुर्वेद अपनाकर हृदय रोगों से बचें

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समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो

वर्तमान समय में हृदय रोग जनस्वास्थ्य और चिकित्सा पद्धतियों के लिए एक अहम चुनौती बनी हुई है। प्रदेश में हजारों-लाखों लोग दिल की बीमारी से जूझ रहे हैं। पहले यह बीमारी शहरों और बुजुर्गों तक ही सीमित थी। लेकिन बीते दशकों के दौरान किशोरों, युवाओं तथा बड़ी ग्रामीण आबादी तक भी यह बीमारी पहुंच गई है।

भारत की सदियों पुरानी स्वदेशी चिकित्सा पद्धति “आयुर्वेद” के संहिताओं अष्टांग हृदय, चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में हृदय की संरचनात्मक विकृति से लेकर विभिन्न हृदय रोगों का विस्तृत और वैज्ञानिक विवेचन है। आयुर्वेद ग्रंथों में हृदय को प्रधान अंग मानते हुए प्रमुख मर्म माना गया है।

शासकीय आयुर्वेद कॉलेज रायपुर के सह-प्राध्यापक डॉ. संजय शुक्ला ने बताया कि

आयुर्वेद पद्धति का मूल उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा और रोगग्रस्त के रोग की चिकित्सा है। लिहाजा इस पद्धति में हृदय रोगों से बचाव के लिए अलग-अलग ऋतुओं के अनुसार सेहतमंद खान-पान और नियंत्रित दिनचर्या का उल्लेख है। सदियों पुराने आयुर्वेद मत को आधुनिक चिकित्सा अनुसंधानों ने भी साबित किया है कि अधिकतर दिल की बीमारियां अनियमित खानपान, अनियंत्रित दिनचर्या और मानसिक तनाव से होती है और इन कारणों के परित्याग से हृदय को आजीवन सेहतमंद रखा जा सकता है।

डॉ. शुक्ला ने बताया कि आयुर्वेद पद्धति में हृदय रोगों के पांच प्रकार बताए गए हैं जिसके प्रमुख लक्षण तेज धड़कन, हृदय में सुई चुभोने या चीरा लगने जैसी पीड़ा, ऐंठन, पसीना आना, मुख का सूखना, हृदय प्रदेश में भारीपन या जलन, खट्टी डकार और उल्टी, थकावट, सांस फूलना, मूर्छा या बेहोशी, चक्कर आना, भय लगना और भोजन में अरूचि है।

आयुर्वेद के अनुसार  खान-पान में शाकाहार अपनाकर गाय के दूध, छाछ, सेंधा नमक, धनिया, जीरा, लहसुन, काली मिर्च, दाल चीनी, जायफल, मेथी, तेजपत्ता, हल्दी, सोंठ जैसे मसालों और सरसों तेल का प्रयोग भोजन में निर्दिष्ट है। इसके अलावा तुलसीपत्र, चोकर युक्त आटे की रोटी, अंकुरित अनाज, सोयाबीन, अलसी, मसूर, मूंग की दाल, सहजन, करेला, गाजर, पालक, तोरई जैसी हरी सब्जियां व अखरोट, बादाम, काजू, मुंगफली, सेब, संतरा, मौसंबी, बेल, बेर, आंवला, पपीता और अनार जैसे फलों का सेवन करना चाहिए।

आयुर्वेद में हृदय की धमनियों और ऊतकों को स्वस्थ रखने के लिए अर्जुन, आंवला, हरड़ चूर्ण, गिलोय, अर्जुन क्षीरपाक, जटामांसी, अश्वगंधा, ब्राम्ही, पुनर्नवा, शिलाजीत, दशमूल, कुटकी, यष्टिमधु, त्रिफला चूर्ण, ईसबगोल, हृद्य वस्ति और शिरोधारा का प्रयोग आयुर्वेद के कुशल और योग्य चिकित्सक की सलाह से करने का विधान है। निःसंदेह आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति ही नहीं वरन संपूर्ण जीवन पद्धति है। इसलिए वर्तमान परिवेश में हम आयुर्वेद में बताए गए आचरण, औषधि, आध्यात्म को अपनाकर दिल को सलामत रख सकते हैं।

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