कीट व्याधि के प्रकोप से सुरक्षा के लिए कृषक लगातार खेती एवं फसलों की निगरानी करते रहें

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पीला तना छेदक कीट, माहू, पेनिकल माईट, ब्लास्ट रोग, शीथ ब्लाईट जैसी बीमारी से फसल को बचाने के लिए किसान उचित मात्रा में कीटनाशक का करें छिड़काव, खेतों से जल निकास की करें उचित व्यवस्था

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो

राजनांदगांव, जिले में इस बार खरीफ में 3 लाख 24000 हेक्टेयर क्षेत्र में धान फसल लगाया गया है, बारिश ने भी कृषकों को निराश नहीं किया है। जिले में आज तक 902 मिमी से भी अधिक वर्षा हुई है, जिससे इस वर्ष किसानो को अधिक पैदावार मिलने की उम्मीद है, चूंकि भारी वर्षा के बाद तेज धूप निकलने से उमस बढऩे लगता है। जिससे खेतों में कीट व्याधि का प्रकोप बढऩे की संभावना है। अत: कृषक भाई लगातार खेती एवं फसलों की निगरानी करते रहें। जिन क्षेत्रों में धान की हरूणा या जल्दी पकने वाली किस्में लगाई है, वे अभी पुष्पन की अवस्था में है। यदि 50 प्रतिशत पुष्पन हो चुका है, तो नत्रजन तृतीय किश्त का छिड़काव करें, पोटाश की सिफारिश मात्रा का 25 प्रतिशत भाग फूल निकलने की अवस्था पर टॉप ड्रेसिंग करने से धान के दानों की संख्या एवं वजन में वृद्धि होगी।

धान की फसल पर पीला तना छेदक कीट के वयस्क दिखाई देने पर तना छेदक के अंडा समूह को एकत्र कर नष्ट कर दे। साथ ही सूखी पत्ती को खींचकर निकाल दे। तनाछेदक की तितली 1 मोथ प्रति वर्ग मीटर में होने पर फिपरोनिल 5 एससी 1 लीटर प्रति दर से छिड़काव करें। धान की फसल पर कहीं-कहीं माहूं कीट का प्रकोप शुरू हो गया है, धान फसल की सतत निगरानी करें एवं कीटों की संख्या 10-15 प्रति पौधा हो जाने पर शुरूवात में ब्युपरोफेजिन 800 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। 15 दिवस पश्चात् अगर कीट का प्रकोप बढ़ता दिखाई दे तो डाइनेटोफ्युरान 200 ग्राम या ट्राईफ्लामिजोपारम 500 मिमी प्रति हेक्टेयर की दर से आधोरीय भागों पर छिड़काव करें। सिंथेटिक पाईराथ्राईन वर्ग के कीटनाशक जैसे साइपरमेथिन व डेल्टामेथिरिन दवाओं का उपयोग माहू के प्रकोप को बढ़ा सकता है। अत: इनका उपयोग माहू नियंत्रण में ना करें। धान की फसल पर कहीं-कहीं पेनिकल माईट का प्रकोप भी देखने में आया है। जिसकी पहचान पोंचे व बदरंग दाने व तने पर भूरापन देखकर किया जा सकता है। इसके निदान हेतु एबेमेक्टिन 0.5 मिमी प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

धान की फसल पर झुलसा (ब्लास्ट) रोग के प्रारंभिक अवस्था में निचली पत्ती पर हल्के बैगनी रंग के धब्बे पड़ते है, जो धीरे-धीरे बढ़कर आंख-नॉव के सामान बीच में चौड़े एवं किनारों में सकरे हो जाते है। इन धब्बों के बीच कर रंग हल्के भूरे रंग का होता है। इसके नियंत्रण के टेबूकानालोल 750 मिली प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी घोल बना कर छिड़काव करें। धान की फसल पर जीवाणुजनित झुलसा पत्ती का किनारे वाला ऊपरी भाग हल्का पीला सा हो जाता है तथा पूरी पती मटमैले पीले रंग की होकर पत्रक (शीथ) तक सूख जाती है। रोग के लक्षण दिखने पर यदि पानी उपलब्ध हो तो खेत से पानी निकाल कर 3-4 दिन तक खुला रखें तथा 25 किलो पोटाश की प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करे। स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट टेट्रा साइक्लिन संयोजक 300 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड 1.25 किग्रा प्रति हेक्टेयर 500 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

धान के खेत में पानी की सतह पर ऊपर पौधों के तनों पर यदि मटमैले रंग के बड़े-बड़े धब्बे दिख रहे हो तथा यह धब्बे बैंगनी रंग के किनारे से घिरे हो, जिसे शीथ ब्लाईट नामक रोग कहते है। यह रोग आने पर हेक्साकोनालोल फफूंदनाशक दवा (1 मिली/ली पानी)का छिड़काव रोगग्रस्त भागों पर करें। आवश्यकता पडऩे पर यह छिड़काव 12-15 दिन बाद दोहराया जा सकता है। सोयाबीन के फसलों पर पत्ती खाने वाले एवं गर्डल बीटल कीट दिखने पर प्रोफेनोफास 50 ईसी (1.25 ली/हेक्टेण्) या फ्लुबेंडामाईड 39.35 प्रतिशत एससी 150 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी से घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर दर से छिड़काव करें। साथ ही मौसम के पूर्वानुमान के अनुसार आने वाले दिनों में अधिकांश स्थानों में हल्के से मध्यम वर्षा होने की संभावना को देखते हुए जल निकास की उचित व्यवस्था करें।

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