कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. पचकौड़ प्रसाद पांडेय को किया याद : स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. पचकौड़ प्रसाद पाण्डेय के घर पहुंचकर उनके परिजनों का जाना कुशलक्षेम

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समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, जांजगीर-चांपा

कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा ने विगत दिवस निरीक्षण के दौरान पामगढ़ विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत नंदेली के बाजा मास्टर के नाम से प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. पचकौड़ प्रसाद पांडेय के घर पहुंचकर उन्हे याद करते हुए उनके परिजनों से कुशलक्षेम जाना। कलेक्टर ने इस मौके पर कहा कि प्रदेश सहित जिले के भी कई वीर सपूतों ने देश को आजादी दिलाने में विशेष योगदान दिया है, जिनमे से एक थे पं. पचकौड़ प्रसाद पांडेय। कलेक्टर ने पं. पचकौड़ प्रसाद पांडेय के घर जाकर स्वतंत्रता संग्राम में उनके दिए गए योगदान को याद करते हुए उनके पोते श्री आनंद शर्मा से मुलाकात कर परिवारजनों का हाल-चाल जाना। कलेक्टर के उनके घर पहुंचने पर उनके परिजनों ने उन्हें अपनी भूमि संबंधी समस्या बतायी। जिस पर कलेक्टर ने उपस्थित तहसीलदार को उनकी समस्या पर त्वरित कार्रवाई करते हुए नियमानुसार निराकरण करने के निर्देश दिए।  उनके पोते ने बताया कि उनके पिता श्री भागवत प्रसाद शर्मा और दादा श्री पचकौड़ प्रसाद पांडेय दोनो ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और देश की आजादी में उन्होंने अपना योगदान दिया है। इस अवसर पर कलेक्टर श्री सिन्हा ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाजामास्टर को याद करते हुए कहा कि उन्होंने देश प्रेम की भावना से देश को आजाद कराने में जो भूमिका निभाई है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। हमें इन वीर सपूतों को याद करते हुए उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।

उल्लेखनीय है कि बाजा मास्टर के नाम से प्रसिद्ध पंडित पचकौड़ प्रसाद पांडेय का जन्म 18 अप्रैल 1894 को जिला जांजगीर चांपा, विकासखंड पामगढ़ के ग्राम नंदेली में हुआ था। शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में जितने भी पुरोधा हुए उनमें बाजामास्टर का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। बाजामास्टर की उपाधि उन्हे किसी विश्वविद्यालय से नहीं बल्कि क्षेत्र के लोगो द्वारा दी गई थी। उन्होंने क्षेत्र के सांस्कृतिक विकास को नई गति दी और इस अंचल को गौरवान्वित किया। उनके पिता पंडित बालमुकुंद पांडेय नामवर गायक और तबला प्रेमी थे। पंडित पचकौड़ प्रसाद पांडेय ने अपनी पूरी जिंदगी संगीत को अर्पित की थी। उन्हें सन 1939 के ऐतिहासिक त्रिपुरी अधिवेशन के लिए चुना गया था। जिसमें उन्होंने संगीत समिति के अध्यक्ष के रूप में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनके निर्देशन में त्रिपुरी अधिवेशन में स्वागत गीत का गायन किया गया। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते हुए 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण उन्हें राजनैतिक बंदी भी बनाया गया था। देह त्यागने के पूर्व वे राम का नाम लेते रहे और सहजता से प्राण त्यागे, उनका देहावसान 15 मई 1975 में हुआ था।

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