2 लाख जन्मजात रोगों में एक को होती है यह बीमारी, वयस्क में हृदय की जन्मजात गंभीर बीमारी एब्सटीन एनामली का अम्बेडकर अस्पताल में सफल ऑपरेशन…नहीं तो कराना पड़ता हृदय प्रत्यारोपण

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डाॅ. कृष्णकांत साहू एवं टीम द्वारा किया गया सफल ऑपरेशन

हृदय का दायां निलय (right ventricle)10 % से भी कम काम कर रहा था एवं बायाँ निलय (left ventricle)  बहुत ही छोटा था,  इस कारण इस मरीज को हृदय प्रत्यारोपण की सलाह दी गयी थी

13 %ऐसे मरीज जन्म के तुरंत बाद मर जाते है। 18% बच्चे 10 साल की उम्र तक मर जाते है एवं 25 से 28 साल की उम्र से ज्यादा कोई जिन्दा नहीं रह पाता।

मरीज की धड़कन को वापस लाने के लिए सीनक्रोनाइज्ड (synchronized) एट्रिया वेन्ट्रीकुलर पेसिंग लगाया गया (नया प्रयोग) ।इसमें ह्रदय के चारों चेंम्बर को वायर द्वारा विशेष पेसमेकर से जोड़ा गया।

इस आॅपरेशन में मरीज को स्वयं का ही ब्लड चढ़ाया गया, जिसको ऑटो ट्रांसफ्यूजन कहते हैं। आपरेशन के 15 दिन पहले ही मरीज ने ब्लड बैंक में रक्तदान किया। इस आॅपरेशन में बोवाइन टिश्यु वाल्व का प्रयोग किया गया।

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, रायपुर

पं.ज.ने स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय एवं डॉ. भीमराव अंबेडकर स्मृति चिकित्सालय स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के हार्ट,चेस्ट और वैस्कुलर सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने नारायणपुर के 26 वर्षीय युवक के हृदय के बहुत ही जटिल एवं दुर्लभ जन्मजात हृदय रोग का सफल आपरेशन कर नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। यह आपरेशन डाॅ. कृष्णकांत साहू एवं टीम द्वारा किया गया। इस तरह लगातार तीन सफल आपरेशन करके यह छ.ग. का प्रथम संस्थान बन गया, जहां पर सबसे अधिक एब्स्टीन एनामली का आपरेशन किया गया है।

मरीज को बार-बार चक्कर और बेहोशी आती थीं एव बिना ऑक्सीजन के नहीं रह पाता था। अभी तक इस प्रकार के तीन ऑपरेशन हो चुके हैं जो अपने आप में रिकार्ड हैं, क्योंकि सबसे अधिकतम आपरेशन इसी संस्थान में हुए है। आपरेशन के बाद मरीज की स्थिति अच्छी नही होने के कारण आईसीयू में मरीज की देखभाल के लिए लगातार 03 दिन तक आपरेशन करने वाले सर्जन को आईसीयू में मरीज के साथ में ही रूकना पड़ा।

मरीज का हार्ट इतना अधिक कमजोर था कि आपरेशन के बाद जब मरीज को हार्ट लंग मशीन के सपोर्ट से हटाया गया तो ह्रदय ठीक से धड़क नही रहा था एवं ब्लड प्रेशर बहुत ही कम था इसलिए आपरेशन में लग गए 05 घंटे से अधिक।

इस आॅपरेशन को चिकित्सकीय भाषा में ट्राइकस्पिड वाल्व रिप्लेस्मेंट विद 29mm बायोप्रोस्थेटिक वाल्व़ +वर्टीकल प्लाईकेशन आफ राइट वेन्ट्रीकल + आरवी ओटी आब्सट्रक्सन रिलीज + एएसडी क्लोजर ;(tricuspid Valve replacement with 29mm bioprosthetic valve+ vertical plication of Right ventricle+RVOT obstruction release+ASD closure)जाता है।

जब यह मरीज डाॅ. कृष्णकांत साहू के ओपीडी में आया तो मरीज का आक्सीजन सैचुरेसन 68-70 प्रतिशत था। इको कार्डियोग्राफी एवं अन्य जांच से पता चला कि इसको एब्स्टीन नामक जन्मजात बीमारी है एवं इस बीमारी में 25 से 28 साल की उम्र तक सभी मरीज किसी न किसी कारण से मर जाते हैं। या तो हार्ट फेल्योर से या फिर अनियमित धड़कन से।  यह मरीज भी अपने जीवन के अंतिम चरण में था। ह्रदय के राइट वेन्ट्रीकल मात्र 10 प्रतिशत काम कर रहा था एवं लेफ्ट वेन्ट्रीकल बहुत ही छोटा था। ऐसे मरीज आपरेशन के बाद भी नही बच पाते। इसलिए इनके परिजनों को हृदय प्रत्यारोपण की सलाह दी गई थी, परंतु अत्यंत गरीब परिवार से होने के कारण कही भी बाहर जाने में असमर्थता दिखाई। आॅपरेशन में जान जाने का 90 से 95 प्रतिशत से अधिक खतरा बताने के बावजूद आॅपरेशन के लिए तैयार हो गये। वे इस संस्थान और यहां के डाक्टरों पर अत्यधिक विश्वास कर रहे थे।

आॅपरेशन और आॅपरेशन के बाद का समय बहुत ही क्रिटिकल था। मरीज हार्ट लंग मशीन के सर्पोट से बाहर ही नही आ पा रहा था एवं आईसीयू में मरीज का तीन बार ;(CPR )सीपीआर हो चुका था। आज यह मरीज स्वस्थ है। और अपने घर जाने के लिए तैयार है। यह आॅपरेशन खूबचन्द बघेल योजना के अंतर्गत पूर्णतः निःशुल्क हुआ है।

क्या है एब्सटीन एनामली बीमारी

यह एवं जन्मजात हृदय रोग है। जब बच्चा मां के गर्भ में होता है, उस समय प्रथम 06 हफ्ते में बच्चे के ह्रदय का विकास होता है। इस हृदय के विकास में बाधा आने पर हृदय असामान्य हो जाता है। इस बीमारी में मरीज के हृदय का ट्राइक्स्पिड वाल्व नही बन पता एवं दायां निलय ठीक से विकसित नही हो पाता एवं हृदय के ऊपर वाले चैम्बर में छेद (ASD) होता है। जिसके कारण मरीज के फेफडे में (शुद्ध) ऑक्सीजेनेशन होने के लिए पर्याप्त मात्रा में खूननहीं जा पाता। जिससे शरीर नीला पड़ जाता है। इस बीमारी को क्रिटिकल कॉम्पलेक्स जन्मजात हृदय(criticle complex congenital heart disease)रोग कहा जाता है। प्रेग्नेंसी के समय लिथियम एवं बेन्जो डाइजेपिन दवाई भी इस बीमारी के कारण है।

विशेष तकनीक से इस मरीज का आपरेशन किया गया जिससे मरीज को परमानेंट पेसमेकर नही लगाना पड़ा अन्यथा इस आपरेशन में 50 प्रतिशत मरीजों को परमानेंट पेसमेकर की जरूरत पड़ जाती है। क्योकि जिस स्थान पर आॅपरेशन किया जाता है, उस स्थान से ह्रदय गति को नियंत्रित करने वाले सर्किट के डेमेज होने का बहुत अधिक खतरा होता है। यदि यह सर्किट खराब हो गई तो मरीज की धड़कन बहुत की कम हो जाती जिसको केवल पेसमेकर द्वारा ही ठीक किया जा सकता है।

आॅपरेशन के बाद मरीज दो दिनो तक वेन्टीलेटर में था। आपरेशन करने वाले सर्जन डाॅ. कृष्णकांत साहू बताते है, कि ऑपरेशन के बाद मरीज की हालत बहुत ही नाजुक थी। इस कारण उनको आईसीयू में मरीज के पास ही लगातार 03 दिनों तक रूकना पड़ा। खाना भी अस्पताल में ही खाते थे।

आॅपरेशन में शामिल टीम

हार्ट सर्जन – डाॅ. कृष्णकांत साहू , डाॅ. निशांत सिंह चंदेल, डाॅ. संजय त्रिपाठी, डाॅ. सत्वाक्षी मंडल (पीजी)

कार्डियक एनेस्थेटिस्ट – डाॅ. तान्या छौडा, डॉ नन्दीनी

नर्सिंग स्टाॅफ – राजेन्द्र साहू, नरेन्द्र सिंह , प्रिंयका, तेजेद्र, किरण,कुमुम, शीवा

परफ्यूजनिस्ट – विकास, डिगेश्वर ,

एनेस्थेसिया टेक्नीशियन – भूपेन्द्र चंद्रा, हरीशचन्द्र साहू।

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