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नागपंचमी पर विशेष आलेख : मानव मित्र होते हैं सर्प - समदर्शी न्यूज

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, रायपुर

पर्वों की विविधता भी भारत की विशेष पहचान है। यहां के अधिकांस पर्व प्रकृति और प्राणियों से सम्बद्ध हैं, तथा मानव समुदाय को इनके भक्षक होने के बजाय संरक्षक बनने का संदेश देते हैं।ऐसे ही पर्वों में से एक पर्व नागपंचमी भी है।प्रति वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नांग पंचमी का पर्व देशभर में मनाया जाता है।

इस पर्व पर नाग सांपों की पूजन की परम्परा है। सर्पों के प्रति संवेदना दयालुता को बनाये रखने का संदेश यह पर्व देता है।अनाज एवं पर्यावरण को सुरक्षित रखने में सर्पों का बड़ा योगदान होता है।इस हेतु कृतज्ञता के भाव व्यक्त करने की दृष्टि से ही नागपंचमी का पर्व मनाने की प्रथा प्रारंभ हुई।नागपूजन की परम्परा अत्यंत प्राचीन है इसे मनाने के पीछे अनेक कथाएं प्रचलित हैं। नागपंचमी पर सर्प पूजने की परम्परा भारत के अलावा अन्य देशों में भी प्रचलित है।

अप्रत्यक्ष अन्नदाता भी हैं सांप

वेद ग्रंथों के साथ साथ वैज्ञानिक तथ्य भी इस बात की पुष्टि करते है कि सर्पों की उत्पत्ति मानव समुदाय को हानि पहुंचाने के लिए नहीं हुई है।अनेक दृष्टि से सर्पो को मानव जाति के लिए जीवनदाता की श्रेणी में रखा गया है।सर्पों की उपादेयता की जानकारी के अभाव में तथा जहरीले सर्पों के भय से मानव समुदाय सांपो को अपना दुश्मन मानता आया है, जबकि वैज्ञानिक तथ्य बार-बार इस बात को व्यक्त करते है कि सर्प मानव के लिए दुश्मन से कहीं ज्यादा दोस्त है। किसी इंसान के समक्ष अचानक आ जाने पर अपने बचाव के लिए ही सर्प उसे काटते है अन्यथा सांपों की प्रवृत्ति एकांत में रहने की ही है।

मानव समुदाय के लिए सांप मित्र कैसे होते हैं? इसे कृषि वैज्ञानिकों ने तार्किक ढंग से सिद्ध किया गया है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है।यहां खेत एवं उपज को नुकसान पहुंचाने वाले चूहे एवं अन्य कीड़े-मकोड़े आदि का भक्षण कर सांप फसलों की रक्षा करते है।इन अर्थो में देखे तो अप्रत्यक्ष रूप से सांप हमारे अन्नदाता हुए,क्योंकि वे अन्न को नुकसान पहुंचाने वाले जीवों को खा जाते है। पर्यावरण संतुलन में भी इनकी भूमिका होती है।

खेतों के रक्षक किसान मित्र

आषाढ़ और सावन माह में सर्प जाति की सक्रियता बढ़ जाती है।दरअसल बारिश के मौसम में सर्पो के प्राकृतिक आवास  जैसे कि बिल,पेड़ो के खोह बरसाती पानी भर जाने के कारण नष्ट हो जाते है। ऐसी परिस्थिति में सांप वहां रह नहीं पाते और बेघर होकर बाहर निकलते हैं,जोकि एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।यही वजह है कि सर्प दंश की ज्यादातर घटनाएं वर्षाकाल में ही होती है।सर्प किसी मानव की हत्या के इरादे से वर्षाकाल में निकलते है,ऐसी संकीर्ण सोच से मानव जाति को उबरना चाहिए। यह भी याद रखना चाहिए कि अधिकतर सांप जहरीले नहीं होते अतः देखते ही सांपों को मार डालने की प्रवृत्ति मानव समुदाय के लिए भी घातक सिद्ध होगी।

ज्यादातर सांप जहरीले नहीं होते

प्राणी वैज्ञानिकों के मुताबिक भारत में लगभग एक सौ चालीस प्रजातियों के सर्प पाए जाते हैं।जिनमें से ज्यादातर जहरीले नहीं होते। बेवजह छेड़े जाने अथवा अनायास किसी मनुष्य के निकट आ जाने पर ही खतरे का आभास होने पर अपने बचाव के लिए वे  इंसानों को काटते है।

भारत में पंद्रह से बीस प्रतिशत अनाज को चूहे तथा अन्य जीव बर्बाद कर देते हैं या फिर चट कर जाते हैं। विश्व स्तर पर किये गये सर्वेक्षण में पाया गया कि दुनिया भर के खाद्य पदार्थो में से पांच प्रतिशत हिस्सा चूहे हजम कर जाते है।इतने खाद्य पदार्थो से करीब दस करोड़ सेअधिक लोगों को भूखमरी से बचाया जा सकता है।अनाज के जानी दुश्मन चूहों को खाकर नष्ट करने के कारण ही सापों को खेतों के रक्षक, किसानों- मनुष्य मित्र कहलाने का हक मिला है।

सुनने में असमर्थ होते हैं सांप

सांपो के शरीर में श्रवणेन्द्रिय नहीं होते। इसीलिए वे आवाज सुनने में सक्षम नहीं होते पर भलीभांति देख -सुंघ सकते है।सांपों के कान नहीं होते। उनके कान का काम उनकी त्वचा करती है।इसी के  द्वारा ही सांपों को किसी प्रकार की ध्वनि-कंपन का आभास होता है,अतः बीन की आवाज पर सांप नाचते हैं सोचना एक मिथक है।नाग सांप दूध भी नहीं पीते हैं। जैसा कि नागपंचमी के दिन दिखाया जाता है।

मित्र के शत्रु बने मानव 

सृष्टि के सभी प्राणी एक दूसरे पर आश्रित है।

इसमें मानव- सर्प संबंध भी शामिल है।ऐसे में एक प्राणी का लुप्त प्राय होना शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। सर्पो के बारे में यही बात लागु होती है।सर्पो के विष और खाल का व्यापार सर्प प्रजाति के अस्तित्व के लिए खतरा बना हुआ है।भारत वर्ष में तंजौर (आन्ध्रप्रदेश) ऐसे धंधो के लिए मशहूर है। सर्पो के खाल से बैग, बेल्ट, पर्स,सेंडिल तथा विष से ओषधियां निर्मित की जाती है।1974 में बने कानून के  मुताबिक ऐसे कृत अपराध की श्रेणी मेें आते है।इसे नजर अंदाज करते हुए आस्तीन के सांप बने कुछ लोग चंद रूपयों के लालच में सर्पो की बेरहमी से हत्या करते है।ऐसी स्थित रही तो सांपों का अस्तिव समाप्त हो जायेगा,जो कि अनेक दृष्टि से सृष्टि के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है। इसे नियंत्रित करने के लिए सांपो के साथ हो रहे अत्याचार को रोकने का संकल्प नाग पंचमी पर लें लें। सदैव स्मरण रखें सांपो की दुनिया की सुरक्षा मानव समुदाय की सुरक्षा है।

नागपंचमी (2 अगस्त 2022) पर विशेष आलेख – द्वारा

विजय मिश्रा ‘अमित’

पूर्व अति. महाप्रबंधक (जन) छग पावर कंपनी

एम-8,सेक्टर 2अग्रसेन नगर, पोआ -सुंदरनगर रायपुर (छ.ग.) 492013

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