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दीपावली पर चिंतन आलेख : मिट्टी के दिए से मनाएं दीपावली ! – समदर्शी न्यूज

मिट्टी का दीपक जलते हुए संदेश देता है कि सदैव दूसरों की जिंदगी में आए अंधेरे को दूर करने हाथ बढ़ाना चाहिए !

समदर्शी न्यूज डेस्क,

मिट्टी से निर्मित वस्तुओं का मनुष्य के जीवन में जन्मजात नाता जुड़ा होता है। अत्याधुनिक युग आने के बावजूद मिट्टी से निर्मित सुराही के पानी का स्वाद मंहगे फ्रिज का ठंडा पानी नहीं दे पाता। ग्रीष्म काल के आते ही जैसे मिट्टी से निर्मित मटकी की मांग बढ़ जाती है, उसी तरह दीपावली के आगमन के साथ ही मिट्टी के दीए की पूछ परख बढ़ जाती है। मिट्टी के दीए के बिना दीपावली का त्यौहार मनाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। विविध किस्म के रंग-बिरंगे बिजली चलित झालर और खूबसूरत आकार लिए मोमबत्ती बाजार में उपलब्ध हैं, पर मिट्टी के दीए के बिना दीपावली का त्यौहार बिन पानी की नदिया जैसी बात होगी।

बचपन की बातें याद आती है, जब दशहरा दिवाली की छुट्टी होती थी तो एक दिन गंवाए बिना ननिहाल के लिए रवाना हो जाते थे। वहां घरों की साफ-सफाई, लिपाई-पुताई में हम जुट जाते थे। नानी जी मिट्टी के दिए खरीद कर उन्हें बड़ी बाल्टियों में भरे पानी में डूबा कर रख देती थीं। वे बताती थी की मिट्टी का दिया अधिक पानी सोख लेगा तो वह तेल कम सोखेगा। आज उनकी बातें ज्यादा अच्छे ढंग से समझ में आती हैं।

मिट्टी के दीए बनाने वाले कारीगर कुम्हार कहलाते है। उनका यही पुश्तैनी धंधा है। मिट्टी के दिए, सुराही, मटके, खिलौने, गमले बनाने के अलावा विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाकर बाजार में बेचना ही उनके जीविकोपार्जन का प्रमुख आधार है। सूखी मिट्टी को बारीक कूट पीटकर उसे पानी में भिगोना, गुंथना और फिर उससे कोई भी वस्तु बना देना इनके लिए सहज खेल की तरह होता है। कर्म के देवता ने कुम्हार समुदाय को ही मिट्टी शिल्प-कला का हुनरमंद बनाया है।

बदलते वक्त के साथ कुम्हार समुदाय की जिंदगी में भी भारी उलटफेर हुए हैं। बदलाव की बयार ने इनकी जिंदगी से मिट्टी शिल्प-कला के रिश्ता को धीरे-धीरे तोड़ना भी आरंभ कर दिया है। दरअसल अन्य सामग्रियों की तरह कुम्हारों के व्यवसाय में प्रयुक्त होने वाली सामग्रियों के दाम भी आसमान को छू रहे हैं। कोयला, भूसा, माटी, पानी की महगांई के साथ-साथ आधुनिक बाजार के बने सस्ते सामान ने इनके व्यवसाय को बुरी तरह से प्रभावित किया है। पसीना बहाते, रात-दिन मेहनत करके बनाए इनके मिट्टी के सामान की लागत को ग्राहकों से निकाल पाना इनके लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है। यही वजह है अब कुम्हार समुदाय के बहुत से परिवारों ने माटी से नाता तोड़कर अन्य व्यवसाय से नाता जोड़ लिया है।

कुम्हार समुदाय का मिट्टी के मोह से परे जाना एक गंभीर चिंता का विषय है। मिट्टी शिल्प-कला से इनका दूर होना अपनी पर्व, परंपरा, संस्कृति सहित पुश्तैनी धंधे को विलुप्त करने की राह पर चलने जैसा कदम है। मिट्टी का दिया मनुष्य को अपनी धरती अपनी मिट्टी से उसकी सोंधी सुगंध से जोड़ कर रखता है। इसे जानते हुए भी नए जमाने के साथ आधुनिकता की आड़ में आदमी अपने पुराने रीति-रिवाजों से दूर होता चला जा रहा है। गांव शहर में तब्दील हो रहे हैं। मन का साफ ग्रामीण स्वयं को शहरी चकाचौंध तडक-भड़क रंग में रंगकर गर्व का अनुभव कर रहा है। ऐसे संक्रमण काल में मिट्टी का दिया और बिजली चलित झालर के बीच हो रहे संवाद की याद सहज हो आती है, जो कि इस तरह है – दिवाली की रात मिट्टी के दिए और झालर में तू तू-मैं मैं चल रहा था। झालर ने कहा- सुन रे दिया, नए जमाने में तेरी पूछ परख लगातार कम होते जा रही है। तेरा ठिकाना केवल गांव गरीब की झोपड़ी तक सिमट कर रह गया है। मेरी जगह महलों और गगनछूती इमारतों अमीरों के बीच में है। यह सुनकर हल्की मुस्कान के साथ दिया ने कहा- हां वो तो ठीक है, पर पूजा की थाली में मुझे ही जगह मिलती है, तुम्हें नहीं। झालर भाई ! ज्यादा घमंड मत करो। घमंडी का सिर नीचे और पराजय एक दिन हो के रहता है।

हमारे विद्वानों का कहना है कि ‘‘अंहकार’’ में तीन गए ‘‘धन, वैभव और वंश, न मानो तो देख लो कौरव, रावण और कंस’’। ज्ञानी जनों की ऐसी बातों को मनन करते हुए सदैव स्मरण रखना चाहिए कि कार्तिक अमावस्या की रात को झिलमिलाता हुआ मिट्टी का एक दिया आंधी तूफान से डरे बिना अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करता है। वह संदेश देता है कि सदैव दूसरों की जिंदगी में आए अंधेरे को दूर करने हाथ बढ़ाना चाहिए। स्मरण रखें मानव निर्मित माटी का दिया सारी रात अंधेरे से लड़ता है। हे मनुष्य ! तू तो ईश्वर का बनाया हुआ है, तू किस बात से डरता है।

विजय मिश्रा ‘अमित’

मोबा. 9893123310

पूर्व अति. महाप्रबंधक (जन) छग पावर कंपनी

एम 8, सेक्टर 2 अग्रसेन नगर,पो.आ.-सुंदर नगर, रायपुर (छग) 492013,

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