पुण्यतिथि पर याद किए गए बांगला भाषा के महान कथाकार आवारा मसीहा शरत चंद्र चटर्जी : दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे, मुख्यालय में उनके कथानकों पर आयोजित की गई वर्चुअल व्याख्यानमाला

समदर्शी न्यूज़, बिलासपुर : जीवन की पथरीली राहें और मुश्किल भरे हालात किसी को भीतर तक तोड़ देते हैं, तो किसी की जिंदगी ही संवर जाती है । बेतरतीब सी जिंदगी के साथ कभी चलकर तो कभी दौड़कर सफर तय करने वाले देश ही दुनिया के महान साहित्यकारों में शुमार शरत चंद्र चटर्जी ने कहानी, उपन्यासों के रूप में पाठकों का दामन अनमोल नगीनों से भर दिया है ।  आज उनके 86वीं पुण्यतिथि पर दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में उनके साहित्यिक अवदान पर ऑनलाइन संगोष्ठी आयोजित  कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई ।  इस कार्यक्रम में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी श्री साकेत रंजन, उप महानिरीक्षक श्री भवानीशंकर नाथ, पूर्व उपमुख्य सुरक्षा आयुक्त श्री कुमार निशांत, उत्तरी सीमांत रेलवे के वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी श्री विक्रम सिंह सहित बड़ी संख्या में अधिकारी एवं कर्मचारी इस कार्यक्रम से जुड़े रहे ।

मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी साकेत रंजन ने शरत बाबू को याद करते हुये कहा कि  वे  शायद भारत के एकमात्र ऐसे लेखक थे, जिन्होंने पाठकों की आंखें न केवल नम कीं, बल्कि कई को तो फूट-फूटकर रुलाया। चाहे वह उनका चर्चित उपन्यास ‘चरित्रहीन’ हो या फिर ‘देवदास’, एक तरफ शरतचंद्र का उपन्यास ‘चरित्रहीन’ था तो दूसरी ओर ‘देवदास’, दोनों ही युवाओं के फेवरेट रहे और रहेंगे। कहने को दोनों का फलक अलग था, लेकिन कहा जाता है कि ‘देवदास’ जहां युवाओं को इस कदर भाया कि वह इसे पढ़कर देवदास चरित्र में इतना डूबे कि कई ने तो देवदास बनने की कल्पना तक कर डाली ।

उप महानिरीक्षक भवानी शंकर नाथ ने कहा कि कहानी और उपन्यास कल्पनाओं की उपज होते हैं, ऐसा कहने वाले शरत चंद्र के पात्रों के बारे में जानकर ठहर जाते हैं । शरत चंद्र चटर्जी उपन्यास सम्राट प्रेमचंद्र की तरह पात्रों को ढूंढ़कर लाए, उन गलियों में घुसे  जहां समाज के सभ्य लोग जाने से भी कतराते थे । उसके लिए दोनों ही लेखक समाज में गए-समाज के अंग बने और फिर ढूंढ़ निकाला। शरत बाबू ने श्रीकांत तो प्रेमचंद ने होरी… और दोनों ने अपने-अपने चरित्रों के जरिये कालजयी रचनाओं को जन्म दिया ।

पूर्व उपमुख्य सुरक्षा आयुक्त  कुमार निशांत ने श्रद्धांजलि के सुमन अर्पित करते हुए कहा कि नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्र नाथ टैगोर को शरत चंद्र बहुत पसंद करते थे, बावजूद इसके कि इसके दोनों के बीच कई मुद्दों पर घोर मतभेद था । दोनों आपस में पत्र व्यहार भी करते थे । यह भी माना जाता है कि शरत पर न केवल रवींद्रनाथ का प्रभाव बल्कि उनपर बंकिमचंद्र चटर्जी का प्रभाव भी कम नहीं था। यह बात शरत खुद भी मानते थे ।

उत्तरी सीमांत रेलवे के वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी  विक्रम सिंह ने शरत चंद्र चटर्जी की यूं तो सभी कृतियां पठनीय है, लेकिन देवदास की बात ही अलग है । इसकी लोकप्रियता का अंदाजा से इस बात से लगाया जा सकता है कि शरतचंद्र की कृति ‘देवदास’ पर तो 12 से अधिक भाषाओं में फिल्में बन चुकी हैं । यह भी एक उपलब्धि ही रही है कि सभी फिल्मों अपार सफलता भी मिली ।

मुख्य पब्लिसिटी इन्स्पेक्टर संजय कुमार पांडेय ने बताया कि शरत देश के ऐसे उपन्यासकार थे, जिन्होंने साहित्य में भाषाओं की सीमा को ढहा दिया । उनकी लोकप्रियता को इस नजरिये से भी देखा जा सकता है कि उन्हें जितनी लोकप्रियता और सम्मान बंगाल में मिला उतना ही हिंदी या कहें इससे अधिक मलयालम, गुजराती के साथ अन्य भारतीय भाषाओं में मिला ।

मुख्य कार्यालय अधीक्षक टी श्रीनिवास ने जिस तरह शरत के उपन्यासों और कहानियों के किरदार संघर्ष करते हैं, उसी तरह का संघर्ष खुद लेखक ने किया है । बचपन अभाव और मां-बाप के बिना बीता, तो कई बार पैसों के अभाव में पढ़ाई तक बाधित हुई। यहां तक कि उनकी कॉलेज की पढ़ाई भी बीच में छूट गई । कार्यक्रम का संचालन कवि सुरेश पैगवार ने किया।

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