बस्तर साहित्य महोत्सव में हुई लाला जगदलपुरी के साहित्यों पर परिचर्चा

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समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, जगदलपुर

लाला जगदलपुरी केंद्रीय ग्रंथालय, जगदलपुर द्वारा लाला जगदलपुरी जन्म समारोह के अवसर पर आयोजित बस्तर साहित्य महोत्सव 2021 के दूसरे दिन बस्तर साहित्य परिचर्चा का आयोजन किया गया।

इस आयोजन के मुख्य अतिथि के रूप में पद्मश्री धर्मपाल सैनी जी, विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री विनय श्रीवास्तव एवं जिला शिक्षा अधिकारी श्रीमती भारती प्रधान रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ सुषमा झा ने किया।

लाला जी के भतीजे श्री विनय श्रीवास्तव ने बताया कि लालाजी कठिन परिस्थिति में भी साहित्य साधना करते रहे। रचना पर संतुष्ट होने पर ही उसको पूरा करते थे तथा तथ्यात्मक प्रमाणिक हो तो ही अंतिम रूप देते थे।

श्रीमती भारती प्रधान ने कहा कि लाला जगदलपुरी केंद्रीय ग्रंथालय बस्तर में शिक्षा एवं रोजगार मार्गदर्शन के साथ साथ साहित्य के प्रचार प्रसार में जुड़ा हुआ है।

श्रीमती पूर्णिमा सरोज ने कहा कि लाला जी का योगदान बाल साहित्य में भी रहा है। वह कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक भी रहे है।

हिमांशु शेखर झा ने कहा कि लाला जगदलपुरी बस्तर के नागार्जुन के रूप में प्रसिद्ध थे। 1966-67 में नागार्जुन जब बस्तर आए थे तो उन्होंने कहा कि सबसे पहले मुझे लाला जी से मिलना है। इसी प्रकार गुलशेर खां शानी और लाला जगदलपुरी दोनों एक दूसरे के गुरु और दोस्त दोनों थे। उन्होंने कहा कि लाला जगदलपुरी का दर्जा बस्तर के परिपेक्ष में कबीर सूरदास मीराबाई जायसी विद्यापति के समतुल्य है।

श्री अवध किशोर शर्मा ने कहा कि लालाजी ने अपनी कविताओं में लोक कथा के रंग बिखेरे हैं।

डॉ योगेंद्र मोतीवाला ने कहा कि लाला जगदलपुरी ऐसे साहित्यकार है जो अपने परिवेश से जुड़े थे और अपने स्थानीय भाषा में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया।

प्रोफेसर एम अली ने लाला जी के इतिहास बोध की चर्चा की। उन्होंने कहा कि लालाजी ने इतिहास को भी साहित्यिक अंदाज से लिखा है जिससे पाठकों को इतिहास में साहित्य का रस मिलता है।

श्री एम ए रहीम ने कहा कि लाला जी ने जो भी लिखा है वह कालजयी है लाला जी जो भी लिखते थे उसके लिए समय लेते थे और गहन अध्ययन करते थे उसके उपरांत थी वह अपनी कविताओं एवं लेखों को संपूर्ण करते थे।

मुख्य अतिथि पद्मश्री धर्मपाल सैनी जी ने कहा की वह परिवर्तन की ओर भी ध्यान देते थे। लाला जगदलपुरी को जानने के बाद मैंने पिछले 5-10 सालों में जितना लिखा है उतना अपने जीवन में कभी नहीं लिखा। वह बस्तर में लोगों को साहित्य रचना के लिए प्रेरणा स्रोत का काम करते हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही डॉ सुषमा झा ने कहा कि मेरे दादाजी एवं लाला जी बहुत ही अच्छे दोस्त थे। उन्होंने लाला जी के परिवार वालों की भूरी भूरी प्रशंसा की कि उन लोगों ने लाला जी के धरोहर को संजो कर रखा है, साथ ही उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित बच्चों की ओर इशारा करते हुए कहा कि बस्तर का सौभाग्य है कि हमारे बच्चे भी साहित्य में रुचि रखते हैं। यह आने वाली पीढ़ियां ही बस्तर में साहित्य को जीवित रखेंगे।

धन्यवाद ज्ञापन करते हुए श्री विधु शेखर झा ने कहा कि ये मंच वरिष्ठ कवियों के साथ साथ नवोदित कवियों को भी अपनी कविताएं सुनाने का अवसर प्रदान करता है।

कार्यक्रम का संचालन श्रीमती रानू नाग ने किया। इस अवसर पर डॉ शोएब अंसारी, श्री गरुण मिश्रा, श्री पवन दीक्षित, श्री हुसैन खान के साथ साथ बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी एवं गणमान्य जन उपस्थित रहे।

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