पॉवर कंपनी की स्थापना की रजत जयंती (15 नवंबर) पर विशेष लेख : छत्तीसगढ़ – ऊर्जा क्षेत्र में अतीत से आगत का चुनौतीपूर्ण सफर…
November 14, 2024विदयुत ऊर्जा – छत्तीसगढ़ में चुनौतियों से भरा एक शताब्दी का सफर.
छत्तीसगढ़ को पॉवर हब बनाने में दूरदर्शी नेतृत्व की भूमिका महत्वपूर्ण.
रायपुर. बिजली है तो यह आधुनिक जीवन है। जल और वायु के बाद विद्युत मानों जीवन की अनिवार्यता हो गई है। लेकिन क्या आज की पीढ़ी इस बात को स्वीकार करेगी कि भारत में सिर्फ 150 वर्ष पहले यह विद्युत ऊर्जा शब्दकोष का हिस्सा भी नहीं था और छत्तीसगढ़ के परिप्रेक्ष्य में यह सिर्फ एक शताब्दी का मामला है। स्वतंत्रता के पश्चात देश को प्रगति के पथ पर ले जाने के लिए विद्युत ऊर्जा के महत्व को समझा गया और इसे गति प्रदान करने के लिए भारतीय विद्युत आपूर्ति अधिनियम 1948 लागू किया गया। उस दौर में छत्तीसगढ़, सेन्ट्र्ल प्राविंस तथा बरार प्रांत का हिस्सा था। छत्तीसगढ़ समेत पूरे प्रांत की राजधानी नागपुर थी, जहाँ पहली बार 1905 में बिजली के बल्ब की रोशनी को लोगों ने देखा। लेकिन छत्तीसगढ़ को बिजली के लिए लगभग एक दशक का और इंतजार करना पड़ा।
पहली बार आई बिजली
छत्तीसगढ़ में पहली बार बिजली रायपुर और बिलासपुर में नहीं बल्कि अंबिकापुर में आई। यहाँ आज से ठीक एक शताब्दी पहले 1915 में लोगों ने बिजली से नगर को रोशन होते देखा। सारंगढ़ में 1924, छुईखदान में 1926, रायपुर और राजनांदगांव में 1928 , जगदलपुर और बैकुंठपुर में 1929, खैरागढ़ में 1930, रायगढ़ में 1931, बिलासपुर में अक्टूबर 1934 और जशपुर में 1941 में बिजली आपूर्ति के प्रमाण हैं। इन्हीं दशकों में बीजापुर, कांकेर सहित कई अन्य स्थानों पर छोटे पॉवर जनरेटरों के जरिए आवश्यक सेवाएं बहाल होती रहीं।
सागौन के खंभे और पन बिजली
संयुक्त रायगढ़ जिले में पहले की रियासतों ने अपने-अपने स्तर पर सजग प्रयास किए। जशपुर, सारंगढ़, सक्ति जैसी रियासतों में बड़ी सजगता थी। सारंगढ़ में सबसे पहले 1924 में बिजली से नगर की सड़कों को रोशन किया गया। यहां 37 किलोवॉट बिजली का उत्पादन होता था। इसके लिए बाकायदा सागौन के ऊँचे खंभों पर बल्ब लटकाए जाते थे। रायगढ़ में नगर पालिका के नियंत्रण में 100 किलोवॉट का पॉवर स्टेशन था, जो 1931 में शुरू हुआ, जहाँ सिर्फ 273 उपभोक्ता थे। जबकि जशपुर राजपरिवार ने 1941 में 37 किलोवॉट का पॉवर स्टेशन शुरू किया था, उस स्थान को आज भी लोग पनचक्की के नाम से जानते हैं। खास बात यह है कि सारंगढ़ तथा जशपुर में बिजली उत्पादन डीजल जनरेटरों के साथ ही जलशक्ति से होता था। रायगढ़ क्षेत्र के सभी संयंत्रों को 1953 में मध्यप्रदेश विद्ययुत मंडल ने अधिग्रहित कर लिया। जो रायगढ़ आज ऊर्जा तथा इस्पात का शहर है वहाँ 1954 में पहली बार बिजली का औद्योगिक उपयोग शुरू हुआ था।
प्रदेश का “विद्युत तीर्थ”
छत्तीसगढ़ में विद्युत उत्पादन का पहला बड़ा पड़ाव 25 जून 1957 को आया जब तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू ने कोरबा में एक सौ मेगावॉट क्षमता के कोरबा पूर्व ताप विद्युत संयंत्र की स्थापना के लिए आधारशिला रखी। सच कहें तो इस संयंत्र की स्थापना, कोरबा को विद्युत तीर्थ के रूप में प्रतिस्थापित करने वाला कदम था। आज कोरबा में केन्द्र, राज्य और निजी क्षेत्र की कंपनियाँ हजारों मेगावॉट बिजली का उत्पादन कर रहीं हैं। वर्ष 2000 के आते तक छत्तीसगढ़ में उत्पादन तथा पारेषण की क्षमता तो अच्छी थी, पर मध्यप्रदेश के दौर में वितरण की व्यवस्था में कभी प्राथमिकता नहीं मिली। अब की पीढ़ी इस उपेक्षा का अहसास नहीं कर सकती न ही उस अंधकार की पीड़ा को समझ सकती है। 1992 तक मध्यप्रदेश के 45 में से 17 जिले पूर्ण विद्युतीकृत हो चुके थे, इसमें से छ्त्तीसगढ़ से एक भी जिला शामिल नहीं था। सिर्फ ढाई दशक बीते हैं और यादें बहुत धुंधली नहीं है, जब शेष मध्यप्रदेश में रबी फसल को पानी देने के लिए संपूर्ण छ्त्तीसगढ़ की बिजली घंटों गुल रहा करती थी।
राज्य गठन से बदली तस्वीर
वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद गठित सरकारों ने अपनी – अपनी दलीय प्रतिबद्धताओं से परे ऊर्जा क्षेत्र में प्रदेश को अग्रणी बनाए रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। पहले मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद जोगी ने साहसिक निर्णय लेते हुए 15 दिनों के अंदर छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल का गठन (15 नवंबर 2000) कर दिया और उन्होंने राज्य के हितों से समझौता नहीं करने का स्पष्ट संदेश दिया। दिसंबर 2003 के बाद डॉ. रमन सिंह का नेतृत्व, ऊर्जा क्षेत्र में प्रदेश के लिए मानो स्वर्णिम युग कहा जाएगा। पॉवर सरप्लस स्टेट का दर्जा हासिल करने से लेकर अधोसंरचना का अभूतपूर्व कार्य अपने कार्यकाल में पूर्ण कराया। शासकीय से लेकर निजी भागीदारी से प्रदेश की विद्युत उत्पादन क्षमता को 20 हजार मेगावॉट तक ले जाने में सफलता पाई। डॉ. रमन सिंह के बाद श्री भूपेश बघेल ने ऊर्जा क्षेत्र में चल रही सभी योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर आगे बढ़ाया।
संवारेंगे साय, बनायेंगे शक्ति समर्थ
अब प्रदेश और ऊर्जा विभाग की बागडोर एक संवेदनशील राजनेता विष्णुदेव साय के हाथों में है। विकसित होते छ्त्तीसगढ़ की जरूरतों को मुख्यमंत्री श्री साय ने भलिभांति समझा है और दूरगामी निर्णयों की शुरूआत कार्यकाल के प्रारंभिक समय में ही कर दी है। आज प्रदेश का हर घर रोशन है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा अनुरूप अब प्रदेश को नवीकरणीय ऊर्जा का भी हब बनाने का लक्ष्य मुख्यमंत्री ने निर्धारित कर दिया है। राज्य की पॉवर कंपनी ने भी इस दिशा में अपने कदम तेजी से बढ़ा दिए हैं। विद्युत ऊर्जा का यह सफर जो छत्तीसगढ़ में एक शताब्दी से कुछ अधिक समय पूर्व शुरू हुआ था वो निरंतर आगे बढ़ रहा है। छत्तीसगढ़ अब पूरे देश के लिए ऊर्जा प्रदेश और पॉवर हब बन चुका है। यह हमें गर्व की अनुभूति के साथ जिम्मेदारी का एहसास कराता है। आइये, हम अतीत के ‘अंधकार’ से किए गए संघर्षों, त्याग और दूरदर्शी निर्णयों से मिली सफलताओं की ‘किरणों‘ को पहचाने और एक ऐसे भविष्य का निर्माण करें जिसमें आने वाली पीढ़ी हमें किसी ‘ज्योति पुंज’ की तरह स्मरण कर सके।
विकास शर्मा – प्रकाशन अधिकारी,
छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी-रायपुर