अत्याधुनिक डायग्नोसिस सिस्टम से ओम्फैलोसिल ग्रस्त शिशु की गर्भ में हुई पहचान, पांच माह के शिशु की गर्भपात कर बचाई गई 23 वर्षीय महिला की जान

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समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो,

जगदलपुर, विकृत एवं बीमार शिशु की गर्भ में ही समय रहते हुई पहचान से एक 23 वर्षीय महिला की जान बच गई। महारानी अस्पताल के रेडियोलॉजिस्ट डॉ मनीष मेश्राम ने बताया कि मामला पिछले दिनों का है, जब यहां हाल ही में शुरू हुए वाईजैग डायाग्नोसीस सोनोग्राफी सेंटर में कुछ ही दिनों पूर्व महिला के  गर्भ में पल रहे बच्चे में होने वाली एक विरले प्रकार की विकृति का गर्भावस्था के 5वें महीने में अत्याधुनिक सोनोग्राफी मशीन से पता लगाया गया, जिसे चिकित्सकीय भाषा में ओम्फैलोसिल कहा जाता है । यह प्रति 4,000 जन्मों में से 1 में होता है। इसमें मृत्यु की उच्च दर लगभग 25 फीसदी होने के साथ ही जन्म लेने वाले शिशु में गंभीर विकृति होने की बहुत अधिक संभावना होती है। ऐसे मामलों में जच्चा की जान को भी खतरा होता है। बकावंड विकासखण्ड के ग्राम छिनारी की महिला के गर्भ में पल रहे शिशु में पाई गई इस गंभीर समस्या के कारण शीघ्र  ही मरीज को अस्पताल ले जाया गया जहां स्त्रीरोग विशेषज्ञों द्वारा गर्भ स्थगित करने का फैसला लेकर पूर्वकालिक प्रसव करवा दिया गया।

क्या होता है ओम्फैलोसिल

डॉ मेश्राम ने बताया कि ओम्फैलोसिल, पेट की दीवार का एक दुर्लभ दोष है । विकास के 6वें सप्ताह से शुरू होकर, अंतड़ीयों का तेजी से बढ़ाव और बढ़े हुए जिगर के आकार में पेट के अंदर की जगह कम हो जाती है, जो अंतड़ियों के छोरों को उदर गुहा से बाहर धकेलती है। लगभग 10वें सप्ताह में, अंतड़ियां उदर गुहा में वापस आ जाती है और प्रक्रिया 12वें सप्ताह तक पूरी हो जाती है, किंतु किसी किसी भ्रूण में जब अंतड़ीयां वापस नहीं आ पाती तब अंतड़ीयों के साथ यकृत, आंत, तिल्ली, पित्त थैली जैसी महत्वपूर्ण अंग भी पेट के बाहर ही रह जाते है और पेट की दीवार में एक बड़ा सा छिद्र हो जाता है। इसी विकृति को ओम्फैलोसिल कहा जाता है।

कारण

डॉ मेश्राम के अनुसार ओम्फैलोसिल के होने का वास्तविक कारण अभी तक ज्ञात नहीं हों पाया है। फिर भी कुछ कारणों से इसके होने की संभावना हो सकती है जैसे की अनुवांशिकता या माता द्वारा गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान शराब का सेवन, अत्यधिक धूम्रपान करना इत्यादि।

स्क्रीनिंग

एएफपी स्क्रीनिंग या एक विस्तृत भ्रूण अल्ट्रासाउंड के माध्यम से अक्सर एक ओम्फालोसेले का पता लगाया जाता है । आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान आनुवंशिक परामर्श और आनुवंशिक परीक्षण जैसे कि एमनियोसेंटेसिस की पेशकश की जाती है।

अगर समय रहते जांच ना कराई जाए तो बढ़ सकती हैं जटिलताएं

डॉ मेश्राम ने बताया कि जटिलताएं जन्म के पूर्व, जन्म के दौरान, प्रबंधन, उपचार या सर्जरी के बाद हो सकती हैं। प्रसवपूर्व और जन्म के दौरान, ओम्फैलोसिल फट सकता है। जन्म के दौरान विशाल ओम्फैलोसिल के लिए जिगर को आघात हो सकता है। प्रबंधन के दौरान ओम्फैलोसिल नाइट्रोजन संतुलन को प्रभावित करने वाले चयापचयी नाले के रूप में कार्य कर सकता है जिससे फलने- फूलने में विफलता हो सकती है , साथ ही हाइपोथर्मिया भी हो सकता है ।

डॉ मेश्राम ने सलाह दिया की समय रहते हुए गर्भ में पल रहे बच्चे की उचित विकास की जानकारी लेने हेतु सोनोग्राफी करवा लेनी चाहिए । सोनोग्राफी करवाने से शिशु के स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता एवं सोनोग्राफी की सुविधा जन सामान्य स्थानों पर आसानी से उपलब्ध हो जाती है।

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