सहायता करने की जिद ने दिव्यांग सहेली को दिलाई ट्राईसाइकल, अध्ययन के साथ बच्चों की कर रही है मदत, विगत 5 वर्षो में 13 हजार से अधिक स्कूली बच्चों की पढाई में कर चुकी है सहायता
August 17, 2021बिलासपुर- सीमा वर्मा बिलासपुर शहर के कौश्लेंद्र राव कॉलेज में एलएलबी अंतिम वर्ष की छात्रा है। सीमा पिछले 5 सालों में 13 हज़ार से अधिक स्कूली बच्चों के लिए स्टेशनरी सामग्री एवं फ़ीस उपलब्ध करवा चुकी हैं और 34 स्कूली बच्चों की पढ़ाई का लगातार खर्च उठा रही है जब तक बच्चे 12वी तक कि शिक्षा नहीं पुरी कर लेते, इस समय सीमा 50 बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दे रही हैं। मूलतः छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर की रहने वाली सीमा अपनी पढ़ाई के साथ एक रूपिया मुहिम भी चलाती है। इस मुहिम के ज़रिए सीमा जरूरतमंद और गरीब बच्चों की मदद करती है।
“एक रुपिया मुहीम” के पीछे की कहानी
सीमा “एक रुपिया मुहीम” की शुरुआत को लेकर बताती हैं कि उसके साथ पढ़ने वाली सुनीता यादव एक दिव्यांग छात्रा है। वह ट्राईसाइकल की मदद से कॉलेज आती थी। सीमा की इच्छा थी कि वह उसे इलेक्ट्रॉनिक ट्राईसाइकल दिलवाए। उसने इस विषय पर अपने कॉलेज के प्रिंसिपल से बात की। उनका जवाब आया- एक हफ्ते बाद आना। इसके बाद सीमा ने सोचा इसके बारे में बाजार में भी पता कर लिया जाए। सीमा बताती हैं कि उसके दिमाग में पहले से ही यह बात चल रही थी कि अपनी सहेली उसे कैसे भी इलेक्ट्रॉनिक ट्राईसाइकल लाना है, फिर चाहे इसके लिए उसे कॉलेज के छात्रों के बीच क्यों न चंदा करना पड़े।
बाजार ने किया निराश
सीमा अपने कॉलेज से ट्राईसाइकल के बारे में पता करने के लिए निकली और वह शहर के साईकिल दूकान गई तो मालूम पड़ा कि यह ट्राईसाइकल मेडिकल काम्पलेक्स में मिलेगी। जब सीमा मेडिकल काम्पलेक्स पहुंची तो पता चला कि ट्राईसाइकल यहाँ भी नहीं, फिर सीमा ने मेडिकल शॉप वाले से ही पूछा कि ये कहाँ मिलेगा।
इसके बाद सीमा मेडिकल शॉप संचालक के बताये हुए पते पर पहुंची और जब ट्राईसाइकल का दाम पूछा तो पता चला कि उसकी कीमत 35 हज़ार रूपये है और इसे दिल्ली से आर्डर पर मंगवाना पड़ता है। सीमा इस वक्त को याद करते हुए बताती है कि यह क्षण उनके लिए काफी कठिन था, लेकिन किसी भी हाल में वह अपनी सहेली सुनीता के लिए ट्राईसाइकल लेने ही वाली थी।
पंचर वाले ने दिखाया रास्ता
सीमा इसके बाद वहां से निकलकर एक पंचर वाले की दुकान पर जा पहुंची और पंचर बनाने वाले से इस विषय में जानकारी मांगी तो उसने पूछा कितना पढ़ी लिखी हो ? सीमा ने जवाब दिया – बीएससी फाइनल ईयर में !
पंचर वाले ने कहा मैडम ! ये सरकार फ्री ऑफ़ कॉस्ट देती है। सीमा ने इसके प्रोसेस के बारे में पूछा ! फिर उसने बताया कि उसे जिला पुर्नवास केंद्र जाना चाहिए, जहाँ आपको डाक्यूमेंट्स जमा करने होंगे, जिसमे 6 महिना या साल भर तक का वक़्त लग सकता है।
तब सीमा ने उससे पूछा कि इसे जल्दी पाने का कोई और रास्ता है क्या ? उसने सीमा को कलेक्टर या कमिश्नर के पास जाने का सुझाव दिया। उसने यह भी बताया कि कमिश्नर साहब काफी नर्म दिल के और भावुक है। वह आपकी जल्दी मदद करेंगे।
प्रशासन से मिली मदद
सीमा ने बताया कि इसके बाद वह अपने एक दोस्त के साथ कमिश्नर ऑफिस गई। जहाँ उसने कमिश्नर समेत अन्य अधिकारियों को सुनीता के बारे में बताया। उसने कमिश्नर साहब से कहा कि सुनीता उसकी क्लासमेट थी और उसका दिव्यांग होना उसके लिए अभिशाप बना हुआ है। जिसके चलते उसे एक साल ब्रेक भी लगा है।
सीमा ने बताया कि कमिश्नर ऑफिस में सीमा कि बात सुनने के बाद वहां के अधिकारियों ने डॉक्यूमेंट जमा करने के लिए कहा। इसके बाद उसने सभी डॉक्यूमेंट जमकर दिए। दस्तावेज जमा करने के बाद दूसरे दिन एडिशनल कमिश्नर ने सीमा को कॉल कर कहा अपनी फ्रेंड को डाक्यूमेंट्स में साइन करने के लिए ऑफिस ले आओ। दस्तावेजों में हस्ताक्षर कराने के बाद तत्कालीन कमिश्नर सोनमणि बोरा के हाथों से इलेक्ट्रॉनिक ट्राईसाइकल मिल गई।
पूरे प्रकरण से सीमा को मिली सीख
सीमा बताती है की इस घटना से उसने अपने जीवन में तीन बाते सीखी – सीमा कहती है कि वह औरों की तरह अपने घर में बैठी होती तो उसकी सहेली को ट्राईसाइकल नहीं मिल पाती। यदि पंचर वाले ने उसे गाइड नहीं किया होता तो उसे मालूम ही नहीं चलता कि सरकार की ओर से दिव्यांगजनों के लिए योजना चलती है। हमारे और सरकार के बीच कितनी ज्यादा कम्युनिकेशन गैप है।
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की स्थापना से मिला ‘एक रुपया मुहिम’ का आईडिया
सीमा ने बताया कि जिस प्रकार बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय लोगों से एक-एक पैसा इक्कठा कर बनवाया गया था, इसी कांसेप्ट में साथ मैं लोगों से एक-एक रूपये मांग कर इक्कठा करती थी जो जरुरतमंदों कि जरूत में काम आती है।
सीमा ने बताया कि जब उसने पैसा इक्कठा करने की शुरू कि तो उसने लगभग ₹ 2,34,000 तक इक्कठा किया। इन रूपये से हम बच्चों की फीस भरते जा रहे थे , प्रारंभ में तो मैंने खुद लोगों से बच्चों के लिए मिले पैसों से उनकी फीस भरी और धीरे-धीरे लोग स्वयं मेरे बच्चों से जुड़ने लगे। जैसे बिलासपुर के तत्कालीन एसपी मयंक श्रीवास्तव ने 6 बच्चों को गोद ले लिया था। इसके बाद स्पेशल डीजीपी छतीसगढ़ आर.के. विज ने इस वर्ष 12 वी की छात्रा की साल भर की फीस सीमा के माध्यम से जमा की, आईपीएस और बिलासपुर रेंज के आईजी रत्नलाल डांगी ने भी सीमा को आर्थिक सहायता दी और उसके समाज सेवा के इस काम को सराहा, सीमा आईपीएस डांगी और अपनी माँ को अपने जीवन की प्रेरणा भी मानती है।
सीमा कहती हैं – यह कार्य युवाओं को मोटिवेट करने के लिए भी करती हैं। बच्चों को गुड टच, बैड टच, पॉक्सो एक्ट, मौलिक अधिकारों, बाल विवाह, राइट टु एजूकेशन, बाल मजदूरी,आदि की जानकारी भी सीमा देती हैं। सीमा सभी लोगो से अपील करती हैं आप अपने फील्ड से रिलेटेड जानकारी अपने घर वालो को, आस पास वालों को देकर उन्हें जागरूक कर सकते है। जागरुकता से ही अपराध में कमी आएगी।
लॉकडाउन में बच्चों को अवसाद मुक्त रखने के लिए कर रही सराहनीय कार्य-
आज इस घातक बीमारी कोरोना की वजह से देश में पिछले लगभग दो वर्षो से स्कूल कॉलेज बंद हैं बड़े बच्चो की परीक्षाएं भी ऑनलाइन पद्धति से ली जा रही , छोटे बच्चो को प्रमोट कर दिया जा रहा, यह योजना बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए सरकार के द्वारा चलाई जा रही, पर जो बच्चे स्कूल जाते थे पढ़ाई करते ,खेल कूद,अन्य एक्टिविटी में भाग लेते थे,अपने दोस्तो के साथ स्कूल में समय व्यतीत करते थे आज कहीं ना कहीं इन दिनों बच्चों पर लॉकडाउन का बुरा असर हो रहा है, बच्चें अवसाद ग्रस्त हो रहे, बच्चों के शारीरिक मानसिक विकास पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है , इस लॉकडाउन की वजह से बच्चे शिक्षा से दूर होते जा रहे है, इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक रूपया मुहिम की संचालिका सीमा वर्मा बच्चों के लिए लगातार कार्यरत है, बच्चो को फ्री टयूशन क्लास के साथ अलग – अलग एक्टिविटी भी करवाती रही है , जैसे- फ्री योग क्लास, एनुअल फंक्शन के तर्ज पर- सपोर्ट एक्टिविटी, डांस प्रतियगिता, ड्रॉइंग प्रतियोगिता के साथ अलग अलग एक्टिविटी करवाती रही है, बच्चे भी उत्साह पूर्वक भाग लेते रहे है , इस बार पुनः लॉकडाउन की स्थिति निर्मित हुई तो एक बार फिर बच्चों के मानसिक तनाव को कम करने के लिए सीमा वर्मा ने बच्चों को लगातार उत्साहित करने के लिए ड्रॉइंग प्रतियोगिता, आर्ट एंड क्राफ्ट प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिसमे बच्चों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, किसी ने संदेश देने वाले ड्रॉइंग बनाए, तो किसी ने मिट्टी से खूबसूरत घर, कुआ, शिवलिंग, कछुआ, बतख, किचन सेट, बैटरी से चलने वाली लैंप, पॉट के साथ सुंदर सुंदर क्राफ्ट बनाए, सीमा वर्मा ने बच्चों को स्टेशनरी का समान कॉपी, पेन, पेंसिल, स्केल, रबर, कटर के साथ चॉकलेट गिफ्ट में दिया
सीमा वर्मा लगातार बच्चो को कोरोना वायरस से बचने के उपाय भी लगातार बताती हैं जिसमे बच्चों को हाथ धोने के तरीके, मास्क लगाने, कोरोना गाइडलाइन का पालन करने के बारे में जागरूकता कार्यक्रम भी करती रहती है
सीमा के काम को काफी सराहना मिली है और अब तक क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर के दो दर्जन से ज्यादा पुरस्कार उन्होंने मिलें हैं।