जीएसटी दरों में कटौती कर जनता को और प्रक्रियागत खामियों को दूर कर व्यापारियों को राहत दे मोदी सरकार- कांग्रेस
May 15, 2022उत्पादक राज्यों को जीएसटी भारपाई पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का सामूहिक प्रयास सराहनीय
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का चरित्र छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़िया के आर्थिक हितों के विरुद्ध है
समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, रायपुर
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र वर्मा ने कहा है कि अप्रत्यक्ष कर के सरलीकरण का वादा कर देश पर लादा गया जीएसटी छोटे और मध्यम व्यापारियों के लिए असहनीय हो गया है। मोदी सरकार के सैकड़ों अमेंडमेंट और हजारों नोटिफिकेशन के बावजूद आम व्यापारियों की परेशानियां दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही हैं। सूचना तकनीकी पर आधारित जीएसटी नेटवर्क और उसके सेवा प्रदाताओं की तकनीकी अक्षमताओं का खामियाजा भी ब्याज और भारी भरकम पेनाल्टी के रूप में व्यापारियों को भुगतना पड़ रहा है। इनपुट क्रेडिट का मिसमैच एक बड़ी समस्या है। विक्रेता द्वारा कर जमा नहीं कराने या देरी से जमा कराने की गलती के लिए क्रेता को दंडित करना, इनपुट क्रेडिट नहीं देना कहां का न्याय है? आरसीएम (रिवर्स चार्ज) एक व्यावहारिक प्रक्रिया है। इससे सरकार को राजस्व के रूप में कुछ नहीं मिलता है, क्योंकि व्यापारी स्वयं इसका क्रेडिट लेता है और सिर्फ इसके लिए व्यापारी वर्ग को अतिरिक्त प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है, जो कि सरलीकरण के नाम पर लाए गए जीएसटी के मुख्य उद्देश्यों से मेल नहीं खाता। इसे खत्म किया जाना चाहिए।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र वर्मा ने कहा है कि जीएसटी लागू होने से उत्पादक राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई की अवधि बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विगत दिनों केंद्र सरकार और 17 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र, उस पर भी मोदी सरकार के समक्ष अपना नंबर बढ़ाने, दलीय चाटुकारिता में डूबे प्रदेश के भाजपा नेता तथ्यहीन, अनर्गल बयानबाजी करने से नहीं चूके। संघीय व्यवस्था के तहत हमारा देश राज्यों का संघ है और राज्यों की आर्थिक व्यवस्था पर चोट करके समग्र विकास की कल्पना व्यर्थ है। कोरोना संकट से काफी पहले ही मोदी सरकार की गलत आर्थिक नीतियों, नोटबंदी और बिना तैयारी के त्रुटिपूर्ण जीएसटी लागू करने के चलते देश की आर्थिक हालत खस्ता हाल में पहुंच चुका था। कोविड काल से पहले ही अर्थव्यवस्था के कैशफ्लो में 77 प्रतिशत तक कमी आ चुकी थी। जीएसटी लागू होने के बाद उत्पादक राज्यों को बड़ा नुकसान हो रहा है।
छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल ने सामूहिक प्रयास पर जोर देते हुए देश के 17 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि केंद्र सरकार से क्षतिपूर्ति 10 वर्ष तक जारी रखने के लिए आग्रह किया जाए। जीएसटी लागू करते समय केंद्र सरकार ने राज्यों को आश्वासन दिया था कि हर वर्ष कम से कम 14 प्रतिशत की वृद्धि हो जाएगी, इससे कम वृद्धि होने पर कमी की भरपाई अगले पांच वर्षों तक केंद्र सरकार के द्वारा किया जाएगा। जून 2022 के बाद केंद्र सरकार द्वारा राज्यों की क्षतिपूर्ति के रूप में भरपाई बंद कर दी जाएगी, ज्यादा नुकसान उत्पादक राज्यों को है। कई राज्यों की आय 20 से 40 प्रतिशत तक कम हो जाएगी। मोदी सरकार ने इस समस्या का हल सुझाते हुए कहा है कि राज्य और अधिक मात्रा में ऋण ले सकते हैं, राज्य के कुल जीडीपी का 0.5 प्रतिशत अतिरिक्त ऋण लेने की मंजूरी दी गई है, लेकिन सवाल यह है कि जब उनकी जीएसटी की वसूली ही कम हो रही है तो वे ऋण की अदायगी कैसे करेंगे?
जरूरत यह थी कि राज्यों की आय बढ़ाने की व्यवस्था की जाती, क्षतिपूर्ति की दर और अवधि बढ़ाई जाती, एक सीधा उपाय यह भी था कि हर राज्य को छूट दे दी जाती कि वह अपनी सीमा में जीएसटी की दर को निर्धारित कर सके, जैसा कनाडा में है लेकिन केंद्र की मोदी सरकार का रवैया पूंजीवाद से प्रेरित और अधिनायकवाद के रास्तों पर चलकर राज्यों के आर्थिक हितों के खिलाफ है। 2014 के बाद से लगभग सभी केंद्रीय योजनाओं में केन्द्रांश कम करके राज्यांश बढ़ाया जा रहा है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में टैक्स कम कर के सेस लगाया जा रहा है, ताकि राज्यों को हिस्सेदारी ना देना पड़े।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र वर्मा ने कहा है कि मौजूदा समय में जीएसटी में चार टैक्स स्लैब हैं। इनमें 5, 12, 18 और 28 फीसदी के टैक्स स्लैब शामिल हैं। इसके अलावा वर्तमान में सोना और अन्य आभूषणों पर 3 फीसदी की जीएसटी लगती है। एक एग्जेम्ट लिस्ट भी है, इनमें बिना ब्रांड वाले कपड़े और अनपैक्ड फूड आइटम्स, अनाज आते हैं। इन पर कोई टैक्स नहीं लगता है। चर्चा यह है कि रेवेन्यू बढ़ाने के लिए जीएसटी काउंसिल एग्जेम्ट लिस्ट में शामिल कुछ नॉन-फूड प्रोडक्ट्स को तीन फीसदी के स्लैब में लाने का मन बना चुकी है। 5 प्रतिशत के स्लैब को ख़त्म करके पांच फीसदी के स्लैब में शामिल अधिकतर आइटम्स को आठ फीसदी के नए स्लैब में शामिल करने की भी चर्चा है। ऐसे फैसलों से मंहगाई और बढ़ेगी। बढ़ती महंगाई और घटते इनकम के दोहरी मार से जूझ रही जनता को जीएसटी के दरों में कमी कर राहत देने चाहिए लेकिन मोदी सरकार की मंशा इसके विपरित है। सीमेंट जैसे वस्तु जो इंफ्रास्ट्रक्चर से संबंधित है उस पर 28 प्रतिशत का जीएसटी अव्यावहारिक है, दुनिया में कहीं नहीं है जो भारत में है। वन नेशन वन टैक्स का नारा भी जुमला निकला डीजल, पेट्रोल, शराब, एटीएफ समेत कई ऐसे प्रॉडक्ट हैं, जिन्हें अभी तक जीएसटी में शामिल नहीं किया गया है। जन अपेक्षाएं यही है कि मोदी सरकार आम जनता और व्यापारियों को राहत देने के साथ ही राज्यों के आर्थिक हितों का ध्यान रखें।