जानलेवा होता जा रहा है शोरगुल, तत्काल रोक लगाना जरूरी, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मुख्य सचिव के नाम कलेक्टर रायपुर को सौंपा ज्ञापन

May 20, 2022 Off By Samdarshi News

ध्वनि प्रदूषण के चलते बढ़ रहा है हाइपरटेंशन, डिप्रेशन, टायर्डनेस, मेमोरी लॉस, हियरिंग लॉस, हेडेक

 समदर्शी न्यूज ब्यूरो, रायपुर

ध्वनि प्रदूषण जनता के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है इससे लोगों में अवसाद सहित अन्य स्वास्थ्यगत दिक्कतें आ रही है, इसे ध्यान में रखते हुए रायपुर शहर के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ राज्य में ध्वनि प्रदूषण पर सख्ती से रोक लगाने की मांग की है। मुख्य सचिव के नाम कलेक्टर रायपुर को सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया है कि ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए पूर्व में जारी किए गए निर्देश का शतप्रतिशत पालन सुनिश्चित कराने के लिये जिला कलेक्टरों को जवाबदेह बनाया जाए तथा पुलिस अधीक्षकों से इन निर्देशों का उल्लंघन करने वालों पर कार्यवाही का आग्रह किया गया है, जिससे कि सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, एनजीटी के आदेशों का पालन सुनिश्चित हो सके।

ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाने मुख्य सचिव के नाम ज्ञापन सौंपने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं में डॉ. राकेश गुप्ता, विश्वजीत मित्रा, नितिन सिंघवी, हरजीत जुनेजा, डॉ. नवेन्दू पाठक, डॉ. ज्योतिर्मय चंद्राकर, जसमीत कौर, पुष्पलता वैष्णव, उमाप्रकाश ओझा, पवन चंद्राकर, हरीश मारदीकर, संदीप कुमार, मनजीत बल, विनयशील शामिल हैं। ज्ञापन के साथ पूर्व में जारी ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए नियमों की जानकारी भी प्रेषित की है। साथ ही जनता की परेशानी को देखते हुए ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए तत्काल आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया गया है।

सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा चलाए जा रहे संयुक्त ध्वनि प्रदूषण विरोधी मुहिम की जानकारी देते हुए ज्ञापन में कहा है कि ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव छोटे बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों पर अधिक देखने को मिलता है साथ ही गर्भवती माताओं, रोगियों पर भी बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जबकि ध्वनि विस्तारक यंत्रों के उपयोग के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय बिलासपुर, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, छ.ग. पर्यावरण संरक्षण मंडल जैसी प्राधिकृत संस्थाओं ने समय-समय पर महत्वपूर्ण दिशा निर्देश दिये हैं एवं मानक तय किये हैं, लेकिन इन मानकों पर पालन नहीं हो रहा है।

ज्ञापन में यह उल्लेख किया गया है कि विगत दो-ढाई वर्षों में जब कोरोना के चलते विभिन्न प्रकार के सार्वजनिक आयोजनों पर प्रतिबंध था, उस समय में ये देखा गया कि इस दौरान होने वाले ध्वनि प्रदूषण पर एक प्रकार से रोक लगी हुई थी जिसका सीधा लाभ आम जनता की मानसिक शांति पर पड़ा। ध्वनि प्रदूषण अवसाद को बढ़ाता है। गत ढाई साल में ध्वनि विस्तारकों का प्रयोग कम होने से लोगों के अवसाद में कमी आयी है। विभिन्न शोध ये बताते हैं कि ध्वनि प्रदूषण के चलते लोगों को हृत्कंप, उच्च रक्तचाप, आकस्मिक उत्तेजना, मानसिक थकावट, श्रवण बाधा, स्मृति पर विपरीत प्रभाव आदि अनेक प्रकार के स्वास्थ्य जन्य कष्ट होते हैं।

कोविड काल के प्रतिबंध शिथिल होने के बाद विभिन्न प्रकार के सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, निजी संस्थानों, निकायों द्वारा कार्यक्रमों के आयोजन किये जा रहे हैं उनमें फिर से ध्वनि विस्तारकों का धड़ल्ले से उपयोग होने लगा है जिससे फिर से आम जनता को ध्वनि प्रदूषण से तकलीफें बढ़ गई हैं। ध्वनि प्रदूषण से संबंधित नियमों का पालन भी नहीं हो रहा है, जो कि कहीं न कही इन संवैधानिक शक्ति संपन्न संस्थाओं के आदेश निर्देश का उल्लंघन भी है और न्यायिक अवमानना की श्रेणी में आता है। साथ ही यह जनता के जीवन पर फिर से विपरीत प्रभाव डाल रहा है।