सिंकलिंग के मरीज में दिल की दुर्लभ बीमारी एब्स्टीन एनोमली का अम्बेडकर अस्पताल रायपुर के हार्ट चेस्ट और वैस्कुलर सर्जरी विभाग में सफल ऑपरेशन

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  • यह ऑपरेशन डाॅ. कृष्णकांत साहू (विभागाध्यक्ष) एवं टीम द्वारा किया गया
  • सिंकलिंग के मरीज को ओपन हार्ट के समय हार्ट लंग मशीन के द्वारा जिंदा रखना बहुत ही चुनौती भरा होता है
  • एब्स्टीन नाम बीमारी में मरीज सामान्यतः 18 से 20 वर्ष तक ही जिंदा रह पाते हैं
  • सिंकलिंग बीमारी के साथ-साथ दिल की एब्स्टीन बीमारी के ऑपरेशन का यह छत्तीसगढ़ में प्रथम केस है
  • यह बीमारी 02 लाख जन्मजात ह्रदय रोगी में से एक को होता है
  • ऑपरेशन के पहले मरीज का O2 सेचुरेशन 80 से 85% रहता था
  • सिंकलिंग के कारण मरीज को बार-बार खून को चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती थी
  • इस प्रकार के ऑपरेशन में परफ्युजनिस्ट जो हार्ट लंग मशीन चलाता है एवं सर्जन के अनुभव की भूमिका महत्व पूर्ण होती है
  • इस बीमारी में ऑपरेशन के दौरान मरीज के हृदय में बोवाईन टिश्यू वाल्व  (Bovine tissue valve) का प्रत्यारोपण किया गया
  • 06 माह पूर्व भी इस विभाग में हो चुका है, दिल की इस दुर्लम बीमारी का ऑपरेशन

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, रायपुर

पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय एवं  डाॅ.भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के अंतंर्गत स्थित हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग ने एक बार फिर से सिंकलिंग के मरीज में हृदय की दुर्लभ एवं अत्यंत जटिल ऑपरेशन करके हार्ट सर्जरी के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित किया है। विभागाध्यक्ष हार्ट,चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी, डाॅ. कृष्णकांत साहू के नेतृत्व में 23 वर्षीय महिला के हृदय के एब्स्टीन एनामली का सफल ऑपरेशन करके मरीज की जान बचायी गई। 06 माह पूर्व भी इसी प्रकार की सर्जरी की गयी थी जो कि प्रदेश में प्रथम बार इसी संस्थान में किया गया था। परंतु यह आॅपरेशन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योकि सामान्य मरीज के हृदय के ऑपरेशन के दौरान जब हृदय एवं फेफडों के कार्य को कुछ समय के लिय रोक दिया जाता है, एवं उसको हार्ट लंग मशीन पर रखा जाता है, उस समय सामान्यतः मरीज के शरीर को 28 से 30℃ तापमान तक  ठंडा कर दिया जाता है, जिससे मरीज के सारे अंग जैसे- मस्तिष्क, ह्रदय, लिवर, किडनी, इत्यादि खराब न हो। पंरतु सिंकलिंग के मरीज में शरीर के तापमान को कम नही किया जा सकता क्योकि कम तापमान में मरीज की रक्त कोशिकाएं पूर्णतः छतिग्रस्त (Permanently Damage) हो जाता, एवं जिस अंग में यह ब्लड का थक्का बन जाता है, तो वह अंग पूर्ण रूप से खराब हो जाता है। ऐसी स्थिति में मरीज के रक्त को बिना ठंडा किये ओपन हार्ट सर्जरी करना बहुत ही चुनौती पूर्ण होता है एवं बहुत की कम समय में हृदय का संपूर्ण ऑपरेशन करना होता हैं ऑपरेशन के पहले मरीज का ऑक्सिजन सेचुरेशन 80 से 85% रहता था। अब वह 98% हो गया। इस प्रकार के ऑपरेशन में मरीज को पेसमेकर लगने की 50% संभावना होती है। पंरतु इस मरीज के ऑपरेशन को विशेष तकनीक द्वारा किया गया जिससे कि मरीज को स्थायी पेसमेकर की आवश्यकता नहीं पड़ी। हालाकि मरीज को 03 दिन तक पेसमेकर मशीन का सहारा देना पडा़ था। इस मरीज को विश्व का सबसे बेहतरीन टिश्यू वाल्व, बोवाईन टिश्यू वाल्व  (Bovine tissue valve) लगाया गया है। इसके लगने के बाद मरीज को खून पतला करने की दवाई जैसे एसीट्राम(Acitrom & Warf) की आवश्यकता नहीं होती, क्योकि इस वाल्व की बनावट मनुष्य के हृदय के वाल्व जैसे होती है। पूर्ण रूप से स्वस्थ हो कर यह मरीज अपने घर जाने को तैयार है। यह ऑपरेशन आयुष्मान एवं खूबचन्द्र बघेल योजना के अंतर्गत पूर्णतः निःशुल्क हुआ है।

क्या होता है,एब्स्टीन एनोमली बीमारी

यह हृदय की जन्मजात बीमारी है। जब बच्चा मां के पेट के अंदर होता है, उस समय प्रथम 06 हफ्तो में बच्चे के हृदय का विकास होता है। इसी हृदय के विकास में बाधा आने पर बच्चे का हृदय असामान्य हो जाता है। इस बीमारी में मरीज के हृदय का ट्राइकस्पिड वाल्व ठीक से नही बन पाता एवं दायां निलय (Rt Ventricle) ठीक से विकसित नहीं हो पाता एवं हृदय के उपर वाले चैम्बर में छेद (ASD/PFO) रहता है, जिसके कारण मरीज के फेफड़े में शुद्व (आक्सीजेनेशन) होने के लिए पर्याप्त मात्रा में खून नहीं पहुच पाता जिससे मरीज का शरीर नीला पड़ जाता है। इस बीमारी को क्रिटिकल कॉम्प्लेक्स जन्मजात हृदय रोग ( critical complex cyanotic congenital heart disease)कहा जाता है।

यह बीमारी 02 लाख बच्चों में से किसी एक को होता हैं। 13% बच्चें जन्म लेते ही मर जाते है, एवं  18% बच्चें 10 साल की उम्र तक मर जाते हैं। 20 साल की उम्र तक इस बीमारी से ग्रस्त लगभग सारे मरीज मर जाते है।

इस बीमारी में बच्चों के मरने का कारण हार्ट का फेल हो जाना एवं हृदय का अनियंत्रित धड़कन होता है। इस बीमारी का कारण गर्भावस्था के दौरान मां के द्वारा लिया गया लिथियम एवं बेजोडाईजेपाम, जिसका उपयोग मानसिक बीमारियों के उपचार में होता है, इसके अलावा अनुवांशिक भी एक कारण हो सकता है।

धीरे-धीरे शरीर हो रहा था नीला

इस मरीज को एक साथ दो-दो बिमारियां थीं। पहला सिकल सेल डिजीज एवं दूसरा एब्स्टीन एनामली। सिंकलिंग के कारण मरीज का हीमोग्लोबिन 06 या 07 ग्राम तक हो जाता था एवं खून चढ़ने की नौबत आ जाती थी। हृदय के इस बिमारी के कारण मरीज का शरीर नीला पड़ रहा था। मरीज को बहुत की ज्यादा थकान एवं सांस फुलने की शिकायत हो रही थी।

इस मरीज के रिश्तेदार इस मरीज को लेकर डाॅ. कृष्णकांत साहू के पास आये तो डाॅ. साहू ने मरीज के रिश्तेदार (पति) को जब यह बताया कि यह हृदय की बहुत ही दुर्लभ बिमारी है, ऑपरेशन की सफलता 10% से भी कम होती है एवं ऑपरेशन के बाद भी पेसमेकर (जो ह्रदय की गति को नियंत्रित करता है।) मशीन की आवश्यकता पड़ सकती है, तो मरीज के रिश्तेदार घबरा गये। लेकिन उनको समझाया गया कि ऑपरेशन नही करवाने से मरने की संभावना 100% है, तो फिर आनन-फानन में मरीज एवं रिश्तेदार ऑपरेशन के लिए मान गये।

विशेष तकनीक से किया गया ऑपरेशन

इस आॅपरेशन में सबसे ज्यादा चुनौती पूर्ण था मरीज का सिंकलिंग होना। इसके लिए दक्ष परफ्यूजनिस्ट एवं अनुभवी हार्ट सर्जन की आवश्यकता होती है। क्योकि सिंकलिंग के मरीज को 28 डिग्री तापमान तक ठंडा नही किया जा सकता। ऐसे में मरीज के हार्ट को ज्यादा देर तक बंद नही किया जा सकता है एवं ट्राइकस्पिड वाल्व लगाते समय विशेष तकनीक का उपयोग किया गया जिससे मरीज के हृदय का कंडक्सन सिस्टम (electric pathway)  को कोई नुकसान नहीं हो। एवं ह्रदय की धड़कन सामान्य रहे। जिससे की मरीज को कृत्रिम पेसमेकर की आवश्यकता न पड़े।

हालाकि मरीज को ऑपरेशन के बाद 03 दिनो तक कृत्रिम पेसमेकर मे रखा गया था।

इस ऑपरेशन को मेडिकल भाषा में ट्राइकस्पिड वाल्व रिप्लेसमेंट विद 29mm बोवाइन टिशू वाल्य +पीएफओ क्लोजर + आर वी ओटी आबस्ट्रक्सन रिलीज अंडर नार्मोथमिकि सीपीबी कहते है।

(tricuspid valve replacement with 29mm bovine tissue valve+ RVOT obustruction release under normothermic cardiopulmonary bypass)

ऑपरेशन के बाद मरीज को सघन आई.सी.यू. की आवश्यकता होती है क्योकि ऐसेबमरीजों की राइट वेन्ट्रीकल बहुत ही कमजोर होती है। डाॅ. तान्या छौडा जो कि एक कार्डियक एनेस्थेटिस्ट है, उन्होंने ने यह काम बखूबी से निभाया ।

इस ऑपरेशन में शामिल टीम

हार्ट सर्जन          –  डाॅ. कृष्णकांत साहू विभागाध्यक्ष, डाॅ.निशांत सिंह चंदेल

कार्डियक एनेस्थेटिस्ट –     डाॅ. तान्या छौडा

परफ्युजनिस्ट        –     चंदन, डिगेश्वर

नर्सिंग              –     राजेन्द्र साहू, मुनेश, चैवाराम,

टेक्नीशियन          –     भूपेन्द्र, हरी

यह आॅपरेशन डाॅ. कृष्णकांत साहू (विभागाध्यक्ष) एवं टीम द्वारा किया गया

सिंकलिंग के मरीज को ओपन हार्ट के समय हार्ट लंग मशीन के द्वारा जिंदा रखना बहुत ही चुनौती भरा होता है

एब्स्टीन नाम बीमारी में मरीज सामान्यतः 18 से 20 वर्ष तक ही जिंदा रह पाते हैं

सिंकलिंग बीमारी के साथ-साथ दिल की एब्स्टीन बीमारी के आॅपरेशन का यह छत्तीसगढ़ में प्रथम केस है

यह बीमारी 02 लाख जन्मजात ह्रदय रोगी में से एक को होता है

आॅपरेशन के पहले मरीज का O2 सेचुरेशन 80 से 85% रहता था

सिंकलिंग के कारण मरीज को बार-बार खून को चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती थी

इस प्रकार के आॅपरेशन में परफ्युजनिस्ट जो हार्ट लंग मशीन चलाता है एवं सर्जन के अनुभव की भूमिका महत्व पूर्ण होती है

इस बीमारी में आॅपरेशन के दौरान मरीज के हृदय में बोवाईन टिश्यू वाल्व  (Bovine tissue valve) का प्रत्यारोपण किया गया

06 माह पूर्व भी इस विभाग में हो चुका है, दिल की इस दुर्लम बीमारी का आॅपरेशन

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, रायपुर

पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय एवं  डाॅ.भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के अंतंर्गत स्थित हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग ने एक बार फिर से सिंकलिंग के मरीज में हृदय की दुर्लभ एवं अत्यंत जटिल आॅपरेशन करके हार्ट सर्जरी के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित किया है। विभागाध्यक्ष हार्ट,चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी, डाॅ. कृष्णकांत साहू के नेतृत्व में 23 वर्षीय महिला के हृदय के एब्स्टीन एनामली का सफल आॅपरेशन करके मरीज की जान बचायी गई। 06 माह पूर्व भी इसी प्रकार की सर्जरी की गयी थी जो कि प्रदेश में प्रथम बार इसी संस्थान में किया गया था। परंतु यह आॅपरेशन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योकि सामान्य मरीज के हृदय के आॅपरेशन के दौरान जब हृदय एवं फेफडों के कार्य को कुछ समय के लिय रोक दिया जाता है, एवं उसको हार्ट लंग मशीन पर रखा जाता है, उस समय सामान्यतः मरीज के शरीर को 28 से 30℃ तापमान तक  ठंडा कर दिया जाता है, जिससे मरीज के सारे अंग जैसे- मस्तिष्क, ह्रदय, लिवर, किडनी, इत्यादि खराब न हो। पंरतु सिंकलिंग के मरीज में शरीर के तापमान को कम नही किया जा सकता क्योकि कम तापमान में मरीज की रक्त कोशिकाएं पूर्णतः छतिग्रस्त (Permanently Damage) हो जाता, एवं जिस अंग में यह ब्लड का थक्का बन जाता है, तो वह अंग पूर्ण रूप से खराब हो जाता है। ऐसी स्थिति में मरीज के रक्त को बिना ठंडा किये ओपन हार्ट सर्जरी करना बहुत ही चुनौती पूर्ण होता है एवं बहुत की कम समय में हृदय का संपूर्ण आॅपरेशन करना होता हैं आॅपरेशन के पहले मरीज का ऑक्सिजन सेचुरेशन 80 से 85% रहता था। अब वह 98% हो गया। इस प्रकार के आॅपरेशन में मरीज को पेसमेकर लगने की 50% संभावना होती है। पंरतु इस मरीज के आॅपरेशन को विशेष तकनीक द्वारा किया गया जिससे कि मरीज को स्थायी पेसमेकर की आवश्यकता नहीं पड़ी। हालाकि मरीज को 03 दिन तक पेसमेकर मशीन का सहारा देना पडा़ था। इस मरीज को विश्व का सबसे बेहतरीन टिश्यू वाल्व, बोवाईन टिश्यू वाल्व  (Bovine tissue valve) लगाया गया है। इसके लगने के बाद मरीज को खून पतला करने की दवाई जैसे एसीट्राम(Acitrom & Warf) की आवश्यकता नहीं होती, क्योकि इस वाल्व की बनावट मनुष्य के हृदय के वाल्व जैसे होती है। पूर्ण रूप से स्वस्थ हो कर यह मरीज अपने घर जाने को तैयार है। यह आॅपरेशन आयुष्मान एवं खूबचन्द्र बघेल योजना के अंतर्गत पूर्णतः निःशुल्क हुुआ है।

क्या होता है,एब्स्टीन एनोमली बीमारी

यह हृदय की जन्मजात बीमारी है। जब बच्चा मां के पेट के अंदर होता है, उस समय प्रथम 06 हफ्तो में बच्चे के हृदय का विकास होता है। इसी हृदय के विकास में बाधा आने पर बच्चे का हृदय असामान्य हो जाता है। इस बीमारी में मरीज के हृदय का ट्राइकस्पिड वाल्व ठीक से नही बन पाता एवं दायां निलय (Rt Ventricle) ठीक से विकसित नहीं हो पाता एवं हृदय के उपर वाले चैम्बर में छेद (ASD/PFO) रहता है, जिसके कारण मरीज के फेफड़े में शुद्व (आॅक्सीजेनेशन) होने के लिए पर्याप्त मात्रा में खून नहीं पहुच पाता जिससे मरीज का शरीर नीला पड़ जाता है। इस बीमारी को क्रिटिकल काॅम्प्लेक्स जन्मजात हृदय रोग ( critical complex cyanotic congenital heart disease)कहा जाता है।

यह बीमारी 02 लाख बच्चों में से किसी एक को होता हैं। 13% बच्चें जन्म लेते ही मर जाते है, एवं  18% बच्चें 10 साल की उम्र तक मर जाते हैं। 20 साल की उम्र तक इस बीमारी से ग्रस्त लगभग सारे मरीज मर जाते है।

इस बीमारी में बच्चों के मरने का कारण हार्ट का फेल हो जाना एवं हृदय का अनियंत्रित धड़कन होता है। इस बीमारी का कारण गर्भावस्था के दौरान मां के द्वारा लिया गया लिथियम एवं बेजोडाईजेपाम, जिसका उपयोग मानसिक बीमारियों के उपचार में होता है, इसके अलावा अनुवांशिक भी एक कारण हो सकता है।

धीरे-धीरे शरीर हो रहा था नीला

इस मरीज को एक साथ दो-दो बिमारियां थीं। पहला सिकल सेल डिजीज एवं दूसरा एब्स्टीन एनामली। सिंकलिंग के कारण मरीज का हीमोग्लोबिन 06 या 07 ग्राम तक हो जाता था एवं खून चढ़ने की नौबत आ जाती थी। हृदय के इस बिमारी के कारण मरीज का शरीर नीला पड़ रहा था। मरीज को बहुत की ज्यादा थकान एवं सांस फुलने की शिकायत हो रही थी।

इस मरीज के रिश्तेदार इस मरीज को लेकर डाॅ. कृष्णकांत साहू के पास आये तो डाॅ. साहू ने मरीज के रिश्तेदार (पति) को जब यह बताया कि यह हृदय की बहुत ही दुर्लभ बिमारी है, आॅपरेशन की सफलता 10% से भी कम होती है एवं आॅपरेशन के बाद भी पेसमेकर (जो ह्रदय की गति को नियंत्रित करता है।) मशीन की आवश्यकता पड़ सकती है, तो मरीज के रिश्तेदार घबरा गये। लेकिन उनको समझाया गया कि आॅपरेशन नही करवाने से मरने की संभावना 100% है, तो फिर आनन-फानन में मरीज एवं रिश्तेदार आॅपरेशन के लिए मान गये।

विशेष तकनीक से किया गया आॅपरेशन

इस आॅपरेशन में सबसे ज्यादा चुनौती पूर्ण था मरीज का सिंकलिंग होना। इसके लिए दक्ष परफ्यूजनिस्ट एवं अनुभवी हार्ट सर्जन की आवश्यकता होती है। क्योकि सिंकलिंग के मरीज को 28 डिग्री तापमान तक ठंडा नही किया जा सकता। ऐसे में मरीज के हार्ट को ज्यादा देर तक बंद नही किया जा सकता है एवं ट्राइकस्पिड वाल्व लगाते समय विशेष तकनीक का उपयोग किया गया जिससे मरीज के हृदय का कंडक्सन सिस्टम (electric pathway)  को कोई नुकसान नहीं हो। एवं ह्रदय की धड़कन सामान्य रहे। जिससे की मरीज को कृत्रिम पेसमेकर की आवश्यकता न पड़े।

हालाकि मरीज को आॅपरेशन के बाद 03 दिनो तक कृत्रिम पेसमेकर मे रखा गया था।

इस आॅपरेशन को मेडिकल भाषा में ट्राइकस्पिड वाल्व रिप्लेसमेंट विद 29mm बोवाइन टिशू वाल्य +पीएफओ क्लोजर + आर वी ओटी आबस्ट्रक्सन रिलीज अंडर नार्मोथमिकि सीपीबी कहते है।

(tricuspid valve replacement with 29mm bovine tissue valve+ RVOT obustruction release under normothermic cardiopulmonary bypass)

आॅपरेशन के बाद मरीज को सघन आई.सी.यू. की आवश्यकता होती है क्योकि ऐसेबमरीजों की राइट वेन्ट्रीकल बहुत ही कमजोर होती है। डाॅ. तान्या छौडा जो कि एक कार्डियक एनेस्थेटिस्ट है, उन्होंने ने यह काम बखूबी से निभाया ।

इस आॅपरेशन में शामिल टीम

हार्ट सर्जन          –  डाॅ. कृष्णकांत साहू विभागाध्यक्ष, डाॅ.निशांत सिंह चंदेल

कार्डियक एनेस्थेटिस्ट –     डाॅ. तान्या छौडा

परफ्युजनिस्ट        –     चंदन, डिगेश्वर

नर्सिंग              –     राजेन्द्र साहू, मुनेश, चैवाराम,

टेक्नीशियन          –     भूपेन्द्र, हरी

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