पहले चंदेल अब चंद्राकर विशेष सत्र पर सवाल खड़ा कर भाजपा की आदिवासी विरोधी मानसिकता प्रदर्शित कर रहे – सुशील आनंद शुक्ला

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समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, रायपुर

भाजपा नेता अजय चंद्राकर द्वारा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के संबंध दिये गये सदन की अवमानना और विशेषाधिकार भंग की सूचना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी विशेष सत्र बुलाने के निर्णय पर तिलमिला गयी है। इसीलिये भाजपा के नेता बयानबाजी कर विशेष सत्र पर लगातार सवाल खड़ा कर रहे है। विधानसभा सचिव को लिखे पत्र को अपने ट्वीट हैंडल से सार्वजनिक कर अजय चंद्राकर सस्ता प्रचार पाने की कोशिश कर रहे है। नेता प्रतिपक्ष नरायण चंदेल दो दिन के विशेष सत्र की तुलना शीतकालीन सत्र से कर रहे है और दो दिन के सत्र का विरोध कर रहे है। अब भाजपा के वरिष्ठ नेता कांग्रेस के सोशल मीडिया के ट्वीट को आधार बनाकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के खिलाफ अवमानना की सूचना दे रहे है। जबकि कांग्रेस के ट्वीट से जो जानकारी दी गयी है, वह सामान्य सूचना है जो सभी समाचार माध्यमों में प्रचारित थी और सदन के नेता मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ट्वीट के आधार पर दी गयी सूचना थी।

प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि भाजपा नेता सदन के विशेष सत्र पर सवाल खड़ा कर के आदिवासी समाज के आरक्षण का अप्रत्यक्ष विरोध कर रहे है। भाजपा नहीं चाहती आदिवासी समाज का आरक्षण बढ़े वह इसीलिये विधानसभा के विशेष सत्र का विरोध कर रही है। भाजपा शीतकालीन सत्र के आड़ में आदिवासी आरक्षण के लिए बुलाया जा रहे विधानसभा सत्र का विरोध कर आरएसएस भाजपा के आदिवासी आरक्षण विरोधी मंसूबे को पूरा करना चाहती है। प्रदेश के आदिवासी समाज विधानसभा के विशेष सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं और भाजपा विरोध कर रही है। भाजपा का यह चरित्र प्रदेश के आदिवासी समाज देख रहा है। विधानसभा के विशेष सत्र में चर्चा के दौरान पूर्व रमन सरकार ने कंवर कमेटी के रिपोर्ट को न्यायालय में क्यों प्रस्तुत नहीं किया? इसका जवाब देने से बचने के लिए भाजपा विधानसभा के विशेष सत्र बुलाने का विरोध कर रही है। नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल का बयान अजय चंद्राकर का आचरण भाजपा के आदिवासी आरक्षण विरोधी होने का प्रमाण है। आदिवासी समाज के सामने अब स्पष्ट हो गया आखिर रमन सरकार के दौरान आदिवासियों के 32 प्रतिशत आरक्षण के विषय को न्यायालय में मजबूती से क्यों नहीं रखा गया था क्योंकि भाजपा नहीं चाहती थी कि 32 प्रतिशत आरक्षण का अधिकार आदिवासी वर्ग को मिले।

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