22 दिसम्बर जन्म-दिवस पर विशेष आलेख : छत्तीसगढ़िया वीर सपूत घनश्याम सिंह गुप्त !
December 21, 2022समदर्शी न्यूज डेस्क
छत्तीसगढ़ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का भी गढ़ है। इस माटी के वीर सपूतों ने देश की आजादी की लड़ाई में फिरंगियों के छक्के छुड़ा दिए थे। ऐसे बहादुर सपूतों में सम्मिलित घनश्याम सिंह गुप्त का जन्म 22 दिस्मबर 1885 को दुर्ग में हुआ था। बालपन से ही उनकी रगों में देशभक्ति का खून दौड़ रहा था। अपने भीतर खौलते हुए खून को उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जमकर प्रदर्शित किया था। आजादी के बाद निर्मित देश के संविधान को हिंदी में अनुवादित करने में आपकी ऐतिहासिक भूमिका रही है। वर्ष 1939 से 1950 तक संविधान सभा में आप संविधान हिंदी ड्राफ्ट कमेटी के अध्यक्ष रहे। अपनी विलक्षण प्रतिभा के बूते संविधान को हिंदी में अनुवादित करके आपने उसकी प्रति 24 जनवरी 1950 में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के समक्ष प्रस्तुत की थी।
भारत के मध्य प्रांत में 1937 के चुनाव उपरांत जब कांग्रेस की सरकार बनी। तब घनश्याम गुप्त विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए। वे मध्य प्रदेश के पहले विधानसभा अध्यक्ष बने। इस पद पर रहते हुए उन्होंने हिंदी भाषा का पुरजोर समर्थन किया था। संविधान को आमजन पढ़ और समझ सके इसे हेतु हिंदी में उसकी उपलब्धता का बड़ा श्रेय इन्हें ही है।
अपनी जीवन यात्रा में समाजिक कुरीतियों की समाप्ति सहित स्त्री शिक्षा, सामाजिक चेतना लाने और धर्मांतरण को रोकने के लिए जी जान से आप सतत प्रयासरत रहे। आर्य समाज की गतिविधियों में आपका जबरदस्त जुड़ाव रहा। हैदराबाद के निजाम द्वारा हिंदु पर्वों को मनाने के लिए पूर्व अनुमति लेने की बाध्यता के विरुद्ध श्री सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन भी हुआ। जिसके दबाव में निजाम को झुकना पड़ा और हिंदू पर्व हेतु बनाए गए नियम कानून में बदलाव किया गया।
छत्तीसगढ़ के गांधीवादी नेताओं में आर्यसमाजी श्री गुप्त का नाम अग्रिम पंक्ति में है। वे गांधी जी के नेतृत्व में चलाए गए विभिन्न आंदोलनों में सक्रियता से संलग्न रहे। ब्रिटिश हुकूमत ने इसके लिए उन्हें कड़ी यातनाएं और कारावास की सजा भी दी। महात्मा गांधी ने रालेट एक्ट, जालियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में असहयोग आंदोलन प्रस्तावित किया था। तब देश भर के लोगों ने इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी दी। श्री गुप्त भी इस मामले में पीछे नहीं रहे। उनके इस कदम को कानून विरोधी करारते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने 1921 में उन्हें कारावास की सजा दी। नशा निषेध आंदोलन, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, जंगल सत्याग्रह, बंग बंग आंदोलन में वे गांधीजी की रीति नीति के अनुरूप निडरता पूर्वक जुड़े रहे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी नवंबर 1933 में जब पहली बार छत्तीसगढ़ क्षेत्र में पहुंचे तो वे दुर्ग में गुप्त जी के निवास पर ही रुके थे।
अंग्रेजों की खिलाफत करते हुए गुप्त जी ने अंग्रेज़ों के नमक कानून को भी भंग किया था। जिसके लिए उनकी गिरफ्तारी हुई। जिसके व्यापक असर से छत्तीसगढ़ क्षेत्र में सविनय अवज्ञा आंदोलन का विस्तार हुआ। छुआछूत और जाति भेद को मिटाने के लिए गांधी विचारों का सम्मान करते हुए दुर्ग जिला में हरिजन सेवा संघ की स्थापना 1934 में हुई। जिसके अध्यक्ष श्री घनश्याम गुप्त चुने गए। देसी उद्योग धंधे सहित खादी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए श्री गुप्त द्वारा किए गए प्रयासों से ही वर्ष 1936 में खादी उद्योग की स्थापना हुई थी।
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला में जन्मे श्री गुप्त की प्रारंभिक शिक्षा दुर्ग और रायपुर में हुई। आगे आपने जबलपुर के प्रसिद्ध महाविद्यालय रॉबर्टसन कॉलेज से सन 1906 बीएससी गोल्ड मेडल के साथ तथा वर्ष 1908 में आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1915 में आपको मध्य प्रांत एवं बरार के प्रांतीय परिषद का सदस्य चुना गया। राजनीति को जनसेवा के लिए अपनाते हुए वर्ष 1926 में दुर्ग नगर निगम के आप अध्यक्ष निर्वाचित हुए। आगे 1930 में दिल्ली के सेंट्रल असेंबली सदस्य के पद पर आप निर्वाचित हुए।
श्री गुप्त जी को मध्य प्रांत का विधान पुरुष कहा जाता है। देश और समाज सेवा में सतत संलग्न रहते हुए श्री गुप्त जी 13 जून 1976 को स्वर्गवासी हुए। विश्व के सबसे बड़े संविधान को हिंदी में प्रस्तुत करने वाले इस छत्तीसगढ़िया सपूत ने छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया को तभी सिद्ध कर दिखाया था। ऐसे संवैधानिक ज्ञान के धनी का स्मरण जिस गर्व से किया जाना चाहिए, उसका सर्वथा अभाव आज भी छत्तीसगढ़ में दिखता है। केवल जनता ही नहीं वरन अधिकांश जनप्रतिनिधि भी इस महान विधिवेत्ता स्वतंत्रता सेनानी के अनमोल अवदानों से अनभिज्ञ हैं। जबकि प्रति वर्ष इस विधान पुरुष की जयंती को प्रदेश स्तर पर धूमधाम से मनाया जाना चाहिए।
छत्तीसगढ़ महतारी के सपूत को सादर नमन !
एम 8 सेक्टर 2, अग्रोहा सोसाइटी, पो.ऑ. – सुंदर नगर, रायपुर (छग) 492013