31 वीं राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस-2023 के तहत जिला समन्वयकों एवं स्रोत शिक्षकों की राज्य स्तरीय प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित : ”पारिस्थितिक तंत्र, स्वास्थ्य एवं कल्याण‘‘ विषय पर हुई कार्यशाला

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समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, रायपुर

31 वीं राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस-2023 के तहत ”पारिस्थितिक तंत्र, स्वास्थ्य एवं कल्याण” विषय पर 33 जिला समन्वयकों एवं शिक्षकों की एक दिवसीय राज्य स्तरीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन आज रीजनल साईंस सेन्टर रायपुर में किया गया। छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, रायपुर द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के सहयोग से राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस का आयोजन जिला एवं राज्य पर प्रतिवर्ष किया जाता है। राज्य स्तर पर चयनित बाल वैज्ञानिक राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में भाग लेकर अपने मॉडल प्रदर्शित करते हैं। यह कार्यक्रम 10 से 17 वर्ष के बच्चों को एक अवसर प्रदान करता है, जहां वे अपने वैज्ञानिक संकल्पनाओं को मुख्य विषय एवं उपविषयों पर शोध परियोजनाओं मॉडल आदि के द्वारा प्रस्तुत करते हैं। यह कार्यक्रम बच्चों को प्रयोग, आंकड़ा संकलन, शोध, विश्लेषण एवं नवाचार प्रक्रिया से परिणाम तक पहुंचकर स्थानीय समस्याओं का समाधान तलाशने का अवसर प्रदान करता है।

इसी कड़ी में आयोजित इस कार्यशाला में प्रबुद्धजनों ने पारिस्थितिक तंत्र के क्षय से होने वाले दुष्प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए इसे बचाने के लिए जागरूकता फैलाने पर जोर दिया। उन्होंने कार्यशाला में जिला समन्वयकों एवं शिक्षकों से कहा कि बच्चों को नवाचार के लिए प्रोत्साहित कर पारस्परिक समन्वय से बहुविषयक परियोजना बनाने हेतु प्रेरित करें। छ.ग. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा रीजनल साईंस सेन्टर, रायपुर के महानिदेशक एस.एस. बजाज ने विभिन्न जिलों से आये जिला समन्वयकों एवं शिक्षकों से आग्रह किया कि ”पारिस्थितिक तंत्र, स्वास्थ्य और कल्याण” मुख्य कथानक एवं उनके उप-विषयों से संबंधित अपने स्थानीय समस्याओं को चिन्हित कर उसके निराकरण हेतु नवाचारी परियोजनाओं के निर्माण हेतु बच्चों को मार्गदर्शन प्रदान करें, जो भविष्य में समाज के लिये उपयोगी हों।

कार्यशाला के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ राज्य नवाचार आयोग के सचिव, डॉ. आर.के. सिंह ने कहा कि पारिस्थितिक तंत्र में सभी जीव और भौतिक वातावरण सम्मिलित होते हैं यह एक् जटिल तंत्र है आज के औद्योगिक युग में इसे समझना एवं इसके सुधार के लिए काम करना अत्यंत आवश्यक है। परिस्थिकीय तंत्र की समझ के लिए सैद्धांतिक, व्यावहारिक एवं संस्कारिक ज्ञान की आवश्यकता है। यह ज्ञान शिक्षकों से अच्छा कोई नहीं दे सकता है। श्री सिंह ने शिक्षकों से आग्रह किया कि वे छात्रों को नवाचार के लिए प्रेरित करें एवं उन्हे पारस्परिक समन्वय से बहुविषयक परियोजना बनाने हेतु प्रेरित करें, क्योंकि पारिस्थिकीय तंत्र में सभी विषयों का समन्वय है एवं मानव के सभी कार्य से यह प्रभावित होता है।

कार्यशाला के विशिष्ठ अतिथि राज्य योजना आयोग के सदस्य डॉ. के. सुब्रमणियम ने कहा कि पारिस्थितिक तंत्र का क्षय रहा है इसे बचाने के लिए वैश्विक स्तर पर पारिस्थितिकी पुनरूद्धार के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाने को प्रोत्साहित करना अत्यंत आवश्यक है। आज वैश्विक स्तर पर मुख्य रूप से परितंत्र, स्वास्थ्य एवं कल्याण प्राथमिक केन्द्र बिन्दु है जिन पर समाज को ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा की छात्रों को महत्वपूर्ण समस्याओं पर विचार करने, समाज की भलाई के लिये नवीन विचारांे के साथ विज्ञान की पद्धति का उपयोग कर समस्या को हल करने हेतुु प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिये। डॉ. श्रीमती जे. के. राय, वैज्ञानिक “ई”. सीकॉस्ट एवं राज्य समन्वयक द्वारा राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस की रूपरेखा एवं गाईडलाईन्स पर प्रकाश डाला गया।

कार्यशाला के तकनीकी सत्र में मुख्य विषय एवं चिन्हित विभिन्न उपविषयों-अपने पारिस्थितिकी तंत्र को जाने; स्वास्थ्य, पोषण और कल्याण को बढ़ावा देना;पारिस्थितिकी तंत्र और स्वास्थ्य के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाएं; आत्मनिर्भरता के लिए पारिस्थितिकी तंत्र आधारित दृष्टिकोण; पारिस्थितिकी तंत्र और स्वास्थ्य के लिए तकनीकी नवाचार पर डॉ. के. के. साहू, डॉ. वी. के. कानूनगों, डॉ. अभया जोगलेकर, डॉ. दिपेन्द्र सिंह, डॉ. मंजु जैन एवं डॉ. भानुश्री गुप्ता द्वारा विस्तार से प्रेजेन्टेशन दिया गया। जिसमें उन्होंने बताया कि बच्चों से विभिन्न चिन्हित उपविषयों पर कैसे परियोजनाएं स्थानीय समस्या के आधार पर बनाई जा सकती है। साथ ही नवीन परियोजनाओं के निर्माण, प्रस्तुतिकरण पद्धति तथा मूल्यांकन प्रक्रिया से भी अवगत कराया। कार्यशाला में छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद एवं रीजनल सांईस सेटर के वैज्ञानिक एवं अधिकारी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ अमित दुबे, वैज्ञानिक ‘डी‘ ने किया।

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