हृदय में प्रत्यारोपित डिवाइस में विराजमान वर्चुअल कार्डियोलॉजिस्ट कर रहा है दिल की निगरानी, मोबाइल ऐप्लिकेशन के जरिए भेजता है दिल का लेखा-जोखा
November 22, 2024“सिक साइनस सिंड्रोम (एसएसएस)” से पीड़ित मरीज को एसीआई में लगाया गया सीआरटी डी (CRT – D) यानी कार्डियक रीसिंक्रनाइजेशन थेरेपी विद डिफाइब्रिलेटर डिवाइस
यह डिवाइस ब्लूसिंक तकनीक पर आधारित है जो मरीज के स्मार्टफोन से कनेक्ट होकर ऐप के जरिये एसीआई के कार्डियोलॉजिस्ट को भेजेगा मरीज के दिल का वर्चुअल एल्गॉरिदम डेटा
इसी के साथ एसीआई राज्य का पहला संस्थान जहां हुआ है हृदय में ऐसा पहला अत्याधुनिक डिवाइस प्रत्यारोपण
रायपुर. 22 नवंबर 2024/ पं. जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर से संबंद्ध डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) के कार्डियोलॉजिस्ट की टीम ने हाल ही में हृदय के “सिक साइनस सिंड्रोम” नामक बीमारी से ग्रस्त एक ऐसे मरीज का इलाज किया है जिसके हृदय की धड़कन कभी एकदम कम हो जाती थी और कभी अनियमित तौर पर बढ़ जाती थी। ऐसी स्थिति में उसके दिल की धड़कन को नियंत्रित करने के लिए एसीआई के कार्डियोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव, डॉ. कुणाल ओस्तवाल, डॉ. शिवकुमार शर्मा एवं टीम ने अत्याधुनिक एवं उन्नत तकनीक से युक्त सीआरटी डी यानी कार्डियक रीसिंक्रोनाइजेशन थेरेपी विद डिफाइब्रिलेटर डिवाइस को मरीज के हृदय में प्रत्यारोपित किया है। डॉ. स्मित श्रीवास्तव के अनुसार, इस डिवाइस की खासियत है कि यह स्मार्टफोन ऐप से कनेक्ट होकर हृदय की गतिविधियों की निगरानी एक आभासी (वर्चुअल) कार्डियोलॉजिस्ट की तरह करता है। चूंकि यह मरीज बेमेतरा जिले के दूरस्थ गांव में रहता है इसलिए यह डिवाइस हृदय की दूरस्थ निगरानी (रिमोट मॉनिटरिंग) करता है। यह ब्लूसिंक तकनीक पर आधारित है। इस ऐप के जरिए मरीज के हृदय की गतिविधि की जानकारी और ऐल्गोरिदम डेटा प्राप्त होती है। किसी अप्रत्याशित स्थिति में यह अलग-अलग रंग के सिग्नल के माध्यम से डॉक्टरों को अलर्ट भी भेजता है।
एक अध्ययन के मुताबिक “सिक साइनस सिंड्रोम (एसएसएस)” नामक यह बीमारी 65 साल से ऊपर उम्र के हर 600 लोगों में से एक को होती है। यह साइनस नोड जो कि हृदय का प्राथमिक पेसमेकर है, उसमें आयी खराबी के कारण उत्पन्न होती है। इसके होने के कई कारण हो सकते हैं।
अम्बेडकर अस्पताल के अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर कहते हैं कि समय के साथ चिकित्सा क्षेत्र ने अत्याधुनिक प्रगति की है। चिकित्सा क्षेत्र में हो रहे नित नये अनुसंधान ने मरीज की जीवनरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। एसीआई की टीम ने मरीज के हृदय की बीमारी को देखते हुए अत्याधुनिक तकनीक युक्त उपचार सुविधा प्रदान की है जिसके लिए पूरी टीम बधाई के पात्र है।
इस केस के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी, कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. स्मित श्रीवास्तव की जुबानीः-
इस मरीज के हृदय की धड़कन कभी अपने आप कम हो जाती थी और अनियमित तौर पर बढ़ जाती थी। इसको काबू में लाने के लिए तीन साल पहले कृत्रिम पेसमेकर डिवाइस डाला गया था। पेसमेकर की बैटरी की उम्र आमतौर पर 8 से 10 साल रहती है परंतु इस मरीज की डिवाइस और बैटरी की उम्र 3 साल में खत्म हो गई क्योंकि बहुत बार हृदय की धड़कन को काबू में लाने के लिए डिवाइस ने शॉक डिलीवर किया (विद्युत आवेग दिल तक पहुंचाया)। वह मशीन हमने डाली थी, ताकि कभी भी धड़कन कम हो तो उसका कंट्रोल कर सके। इस मरीज के हृदय में पिछले तीन साल में कई बार झटके आए जिससे मशीन को अंदर ही अंदर बिजली के झटके देने पड़े। यह डिवाइस बहुत लाभदायक थी। छह बार मरीज के साथ ऐसी घटना हुई कि मरीज के हार्ट को शुरू नहीं किया जाता तो ब्रेन डेड हो जाता लेकिन इस पुरानी डिवाइस ने बहुत काम किया।
यह मरीज बेमेतरा के पहुंचविहीन एरिया जटा नामक गांव का रहने वाला है। जहां से उसको बार-बार ऐसे उन्नत उपचार के लिए एसीआई आना संभव नहीं है। ख़ासकर बारिश-पानी के दिनों में, जबकि बार-बार उसके हृदय को ऐसे मशीन से झटका देने की आवश्यकता थी। अंततोगत्वा हमने हार्ट की धड़कन को नियंत्रित करने के लिए ऐसा तकनीक वाला डिवाइस लगाने का निर्णय लिया जो मरीज के मोबाइल के माध्यम से हार्ट की एक-एक धड़कन का लेखा-जोखा एसीआई को भेज सकता हो। उसके धड़कन की सही स्थिति एसीआई को मिलती रहे जिससे मरीज को एसीआई आने की आवश्यकता नहीं रहेगी। यह नयी टेक्नोलॉजी अभी आई है। डिवाइस मोबाईल के जरिए कनेक्ट हो जाता है। कई बार शॉक देने की जरूरत नहीं पड़ती।
इसमें मरीज को अलर्ट करने के लिए तीन तरह के संकेत आते हैं। ग्रीन सिग्नल यानी सबकुछ ठीक-ठाक है। सामान्य है। ऑरेंज सिग्नल यानी थोड़ी चिंता करने की जरूरत है। रेड सिग्नल यानी धड़कन तेज है। शॉक बढ़ाने की जरूरत है। इन सिग्नल के जरिए समय रहते हम हार्ट की रिमोट मॉनिटरिंग करके मरीज का उपचार कर सकते हैं। समय पर दवा दे सकते हैं। हम एसीआई में बैठकर ही आपात स्थिति में मरीज के हृदय का निर्देशों के माध्यम से उपचार कर सकते हैं। यह हार्ट का वर्चुअल एल्गोरिदम बता देता है।
ऐसे किया प्रत्यारोपित
असिस्टेंट प्रोफेसर कार्डियोलॉजी डॉ. कुणाल ओस्तवाल ने बताया कि इस डिवाइस को प्रत्यारोपित करने के लिए लेफ्ट साइड (बायें हिस्से) में कंधे के नीचे से एक चीरा लगाकर उसमें से तीन तार डाले जाते हैं। एक तार जाता है राइट वेंट्रिकल में, एक तार जाता है राइट एट्रियम में और एक तार जाता है कोरोनरी साइनस में। इन तीनों तारों को पल्स जेनरेटर जो एक तरह की बैटरी होती है, उससे कनेक्ट किया जाता है और उसे कंधे के नीचे पॉकेट बनाकर इम्प्लांट कर दिया जाता है। ये डिवाइस दोनों काम करता है। हार्ट की गति भी बढ़ाता है और इलेक्ट्रिक शॉक भी देता है। यदि कभी जानलेवा स्थिति निर्मित होती भी है, तो डिवाइस उसको तुरंत खत्म कर देता है। अचानक हृदय मृत्यु/सडन कार्डियक डेथ होने की संभावना नहीं रहती है।
जब बिगड़ती है दिल की धड़कन की ताल, तब होता है “ट्रैची-ब्रैडी सिंड्रोम”
संगीत के लय और ताल को तरह मनुष्य का हृदय भी एक निश्चित ताल यानि रिदम में धड़कता है। कई बार हृदय में विद्युत आवेग का प्रवाह सही ढंग से नहीं होता तब यह अतालता (एरिदिमिया) की स्थिति में पहुंच जाता है। इस स्थिति में हृदय कभी बहुत तेज (टैचीकार्डिया) या बहुत धीमी (ब्रैडीकार्डिया) गति से धड़कता है जिससे उसके धड़कने की लय बिगड़ जाती है। अचानक से होने वाली ऐसी तेज हृदय गति या धीमी हृदय गति को ब्रेडीकार्डिया-टैचीकार्डिया या “टैची ब्रेडी सिंड्रोम” कहा जाता है। यह सिक साइनस सिंड्रोम का एक प्रकार है। सिक साइनस सिंड्रोम हृदय के प्राकृतिक पेसमेकर (साइनस नोड) को प्रभावित करता है, जो हृदय की धड़कन को नियंत्रित करता है। जब साइनस नोड क्षतिग्रस्त हो जाता है और सामान्य हृदय गति उत्पन्न करने में असमर्थ हो जाता है तब धीमी गति से दिल की धड़कन, दिल की धड़कनों के बीच लंबा अंतराल या अनियमित दिल की धड़कन (अतालता) होती है। इसके इलाज के लिए लोगों को कृत्रिम पेसमेकर प्रत्यारोपित करने की आवश्यकता होती है।
क्या है सीआरटी डी डिवाइस
सीआरटी डी यानी कार्डियक रीसिंक्रोनाइजेशन थेरेपी विद डिफाइब्रिलेटर। जैसा कि नाम से स्पष्ट है। यह एक विशेष प्रकार का पेसमेकर डिवाइस है जिसमें इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर (CRT-D) भी शामिल है। इसे बायवेंट्रिकुलर पेसमेकर भी कहा जाता है। इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि ये कमजोर और दर्द रहित उत्तेजना थेरेपी या बिजली के झटकों/विद्युत आवेगों के माध्यम से वेंट्रिकुलर टैचीकार्डिया और फाइब्रिलेशन जैसी जानलेवा स्थितियों को रोक सके। यह डिवाइस हृदय के निचले कक्षों, जिन्हें वेंट्रिकल्स कहा जाता है, को विद्युत संकेत भेजती (डिलीवर करती) है। ये संकेत निचले कक्षों (बाएं और दाएं वेंट्रिकल) को एक ही समय में सिकुड़ने में मदद करने के लिए विद्युत आवेग पहुंचाते हैं जिससे हृदय अधिक कुशलता के साथ पम्प करता है। यह डिवाइस अचानक हृदय की मृत्यु (कार्डियक डेथ) के जोखिम को कम करता है।
टीम में ये रहे शामिल
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. (प्रो.) स्मित श्रीवास्तव के साथ असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कुणाल ओस्तवाल, डॉ. शिवकुमार शर्मा तथा जूनियर डॉक्टर डॉ. प्रर्तीक गुप्ता, डॉ. आयुष, डॉ. प्रीति और डॉ. सौम्या। इसके ही महेंद्र और नवीन भी शामिल रहे।