पितृसत्तात्मक समाज की बदली मानसिकता, संतेश्वरी ने अपने कार्यों से गढ़े नए आयाम

February 28, 2022 Off By Samdarshi News

महिला मेट और बैंक सखी की अपनी भूमिका का बखूबी कर रही निर्वाह, सर्वश्रेष्ठ बैंक सखी के रूप में 3 बार सम्मानित हो चुकी है संतेश्वरी

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, रायपुर

सुश्री संतेश्वरी कुंजाम ने अपने कार्यों और कौशल से पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता बदल दी है। मनरेगा मेट जैसे नाप-जोख की तकनीकी समझ और श्रमिकों के प्रबंधन के कौशल वाले काम को वह बखूबी अंजाम दे रही है। उसने बैंक सखी के रूप में भी अपनी कार्यकुशलता का लोहा मनवाया है। वह तीन बार अपने विकासखण्ड में सर्वश्रेष्ठ बैंक सखी के रूप में सम्मानित हो चुकी है। पहले-पहल जब उसने मनरेगा मेट का काम शुरू किया था तब गांव वाले कहते थे कि लड़की है, क्या मेट का काम करेगी! क्या माप देगी!! संतेश्वरी ने तभी ठान लिया था कि मैं मेट का काम करके दिखाऊँगी। अब वही ग्रामीण उसका गुणगान करते हुए कहते हैं कि संतेश्वरी के कारण मनरेगा में बहुत काम मिला। वह दूसरी लड़कियों के लिए प्रेरणा है।

कांकेर जिले के नरहरपुर विकासखण्ड के हटकाचारामा की सुश्री संतेश्वरी कुंजाम की कहानी काफी प्रेरक है। अपने कार्यों से उसने पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता बदली है। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम) में महिला मेट के रूप में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन कर उसने खुद को साबित किया और महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी। बारहवीं तक पढ़ी 26 साल की संतेश्वरी ने अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए वर्ष 2015 में मनरेगा कार्यों में अकुशल श्रमिक के रूप में काम करना शुरू किया था। कार्यस्थल पर वह जिज्ञासावश ग्राम रोज़गार सहायक, मेट एवं तकनीकी सहायकों को काम करते हुए देखती थी। कुछ-कुछ काम समझ आने पर उसने ग्राम रोजगार सहायक से मेट का काम करने की इच्छा जाहिर की।

संतेश्वरी की यह इच्छा गाँव में चर्चा का विषय बन गई। कई लोग उसकी क्षमता और रूचि के बारे में टीका-टिप्पणी करने लगे। कई लोग यह मानते थे कि मेट का काम बहुत कठिन है, क्योंकि इसके लिए माप के बुनियादी और तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है। अकुशल श्रमिक होने के कारण वह इसे नहीं कर पायेगी। संतेश्वरी इन बातों से दुखी तो हुई, लेकिन उसने हार नहीं मानी। इसे चुनौती मानकर खुद को साबित करने में लग गई। उसने बुनियादी गणित, कन्वर्सन टूल्स और मनरेगा से संबंधित दस्तावेजों को पढ़ना शुरू किया। गाँव में काम करने वाले स्वयंसेवी संस्था ‘प्रदान’ से मैदानी स्तर पर श्रमिकों एवं कार्यस्थल के प्रबंधन के तौर-तरीकों को सीखा। संतेश्वरी के हौसले और इच्छाशक्ति को देखकर उसके माता-पिता ने भी हरसंभव सहायता की।

बहुमुखी प्रतिभा की धनी सन्तेश्वरी वर्ष 2018 में अपने पंचायत के मेट-पैनल में शामिल हुई। वह विकासखण्ड स्तर पर आयोजित प्रशिक्षणों और मैदानी अनुभव तथा अपनी ऊर्जा, दृढ़ संकल्प व धैर्य से लगातार आगे बढ़ती गई। इस सफर में उसे लोगों की अस्वीकृति और अपमान का भी सामना करना पड़ा। उसने साहस और दृढ़ता से इन सबका सामना किया और अकुशल श्रम तक खुद को सीमित कर लेने वाली महिलाओं के लिए मिसाल कायम की।

स्वसहायता समूह की दीदियों के साथ ने रास्ता किया आसान

संतेश्वरी अपने गांव की गुलाब महिला स्वसहायता समूह और जय मां लक्ष्मी ग्राम संगठन की सदस्य थी। इसलिए उन्होंने सबसे पहले समूह की दीदियों के साथ मनरेगा के भुगतान में देरी, काम की गुणवत्ता, सृजित संपत्ति के उपयोग और काम की मांग जैसे मुद्दों पर चर्चा शुरू की। उसकी लगातार कोशिशों से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित ग्राम संगठन की बैठकों में मनरेगा चर्चा का नियमित एजेंडा बन गया और सभी ने इससे संबंधित मुद्दों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। संतेश्वरी ने समूह की दीदियों को साथ लेकर इन विषयों पर सरपंच, ग्राम रोजगार सहायक, पंचों एवं पंचायत सचिव के साथ ग्रामसभा में भी चर्चा शुरू की।

मनरेगा में मेट और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) में बैंक सखी होने के नाते संतेश्वरी ने श्रमिकों के बैंक खातों से संबंधित त्रुटियों को कम करने की दिशा में भी काम करना शुरू किया। इससे श्रमिकों को मजदूरी भुगतान की राशि अपने खातों में प्राप्त करने में सुविधा हुई। वह बैंक सखी के रूप में हर महीने औसतन 15 लाख रूपये का लेन-देन करती है, जिससे लोगों को गाँव में ही नगद राशि मिल जा रही है। इन सबसे परिस्थितियाँ धीरे-धीरे बदलने लगीं और ग्रामीणों का उस पर विश्वास बढ़ने लगा।

एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की योजना बनाने में निभाई अग्रणी भूमिका

संतेश्वरी ने हटकाचारामा की महिला स्वसहायता समूहों, पंचायत सदस्यों और स्वयंसेवी संगठन की मदद से वहां के उपलब्ध संसाधनों को देखते हुए विकेन्द्रीकृत तरीके से सभी लोगों की भागीदारी से कृषि सुधार के लिए पैच में योजना बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने पारा-मोहल्ला स्तर की बैठकें आयोजित कर भूमि में संभावित विभिन्न सकारात्मक संरचनाओं और उनके उपयोग के बारे में किसानों व महिला समूहों के साथ चर्चा की। उसके प्रयास से विभिन्न हितग्राहियों की भागीदारी के साथ एक पंचायत स्तरीय एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की योजना बनी।

संतेश्वरी की अपने गांव और महिलाओं के लिए विकास की सोच ने जमीनी स्तर पर बदलाव लाया। वित्तीय वर्ष 2020-21 में गांव में प्रति परिवार प्रदान किए जाने वाले रोजगार के औसत दिन 66 प्रतिशत से बढ़कर 87 प्रतिशत हुआ। मनरेगा के अंतर्गत गांव में सृजित कुल मानव दिवस रोजगार में महिलाओं का योगदान भी बढ़ा। वर्ष 2019-20 में यह 31 प्रतिशत था, जो 2020-21 में बढ़कर 36 प्रतिशत हो गया। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में इसमें और भी इजाफा हुआ है। इस साल यह बढ़कर 37 प्रतिशत से अधिक हो गया है। संतेश्वरी के अकुशल श्रमिक से महिला मेट और बैंक सखी बनने के सफर ने उसकी जैसी अनेक महिलाओं को आगे बढ़ने और नया मुकाम हासिल करने के लिए प्रेरित किया है।