जशपुर जिले में चाय, काफी, स्ट्राबेरी, काजू, नाशपाती की सफल खेती के बाद कैमोमाइल की खेती का प्रयोग हुआ सफल

March 7, 2022 Off By Samdarshi News

कैमोमाइल इत्र, पेय और बेकरी उत्पादों में स्वाद बढ़ाने किया जाता ह उपयोग

जिले के छोटो किसान भी इससे लाभांवित होगें और किसानों की आमदनी बढ़ेगी

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, जशपुर

जशपुर जिले में चाय, काफी, स्ट्राबेरी, काजू, नाशपाती आदि की सफल खेती के बाद वन विभाग के अंतर्गत् वनमण्डलाधिकारी जितेन्द्र उपाध्याय के मार्गदर्शन एवं उप वनमण्डलाअधिकारीएस.के.गुप्ता के दिशा-निर्देश में कैमोमाइल के खेती का सफल प्रयोग किया जा रहा है। उन्होंने बाताया कि जर्मनी कैमोमाइल बहुत ही लोकप्रिय एवं व्यवसायिक रूप से महत्वपूर्ण गुणवत्ता वाला तेलीय पौधा है। इसका उपयोग हर्बल चाय और फार्मा उत्पादों में किया जाता है। इत्र, पेय और बेकरी उत्पादों में स्वाद बढ़ाने वाले एजेन्ट एवं शामक के रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है। यूनानी चिकित्सा पद्वति में भी यह लोकप्रिय है।उन्होंने बताया कि जशपुर में कैमोमाइल की खेती का जय जंगल किसान उत्पादक कम्पनी का प्रयोग पूर्णतः सफल रहा है। वृहद्ध स्तर पर खेती कर रहें जिले के छोटे किसान भी इससे लाभांवित होगें और किसानों की आमदनी बढ़ेगी।

वन विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार कैमोमाइल की खेती से पूर्व भूमि तैयारी के लिए एमबी प्लाऊ दो दांत वाले से भूमि की अच्छी तरह जुताई करनी चाहिए। तत्पश्चात कल्टीवेटर से 2 बार जुताई करना चाहिए, जिसमें 1 बार सीधे व दूसरी बारे आडे में जुताई करनी चाहिए। इसके बाद रोटोवेटर से भूमि को जुताई करना चाहिए ताकि मिट्टी के टुकड़े बारीक हो जावे व मिट्टी भूरभूरी हो जाये।

कैमोमाइल का रोपण रोपा लगाकर नर्सरी पद्धति के माध्यम से खेत में पौधों का रोपण किया जाता है, जिसमें भूमि को 3 फीट चौड़ी और 1 फीट ऊंची बेड़ बनाकर उसे गीला करके बीज बुवाई की जाती है। एक एकड़ खेत हेतु 300 से 400 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज बुवाई के 20-25 दिन बाद उगे छोटे पौधों को खेत में पौधों का रोपित कर दिया जाता है। कैमोमाइल की खेती नर्सरी तैयार कर पौधों को खेत में 30 से 30 से.मी. की दूरी व लाईन से लाईन की दूरी 1 फीट की दूरी पर रोपण करना चाहिए। भूमि की तैयारी के समय एक एकड़ खेत में कम से कम 500 कि.ग्रा. से 1 टन वर्मीकम्पोस्ट खेत में डालना चाहिए या इससे अधिक मात्रा में भी डाले जाने पर भूमि की उपजाउता और अधिक बढ़ेगी। इसमे फास्फोरस एवं पोटेशियम से ज्यादा नाइट्रोजन अच्छी प्रतिक्रिया देती है। अच्छे फूल एवं तेल के उत्पादन हेतु मौलिब्डेनम और बोरॉन उर्वरक के रूप में देना चाहिए। बीज बोने के तुरंत बाद स्प्रिंकलर या अन्य विधि से सिंचाई करनी चाहिए। यह सर्दियों में उगाई जाने वाली फसल है, इस कारण सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। बीज अंकुरण के पश्चात् 10 से 20 दिन में 01 बार सिंचाई करनी चाहिए।

फसल की कटाई फूल फरवरी माह में रोपण के 60 से 70 दिन बाद आ जाते है। सामान्य तौर पर 4-5 बार फूल निकलेगा, जिसे हर बार हाथ से ही तोड़ा जाता है। ग्रीष्म ऋतु के पहले फसल की कटाई पूरी हो जाती है। जैसे-जैसे तापमान बढ़ती जाती है, फूल आना रूक जाता है फूल आने के 15 से 20 दिनों बाद फूल की कटाई करनी चाहिए। फूलों को 3 से 4 दिन तक छाया में सुखाना चाहिए। ताजे फूल 2000-2500 कि.ग्रा. प्रति एकड़ उत्पादन होता है। सूखे फूल 400-500 कि.ग्रा. प्रति एकड़ प्राप्त होता है।

इस लगाने में कुछ सावधानियाँ करनी पड़ती हैं जैसे कि रोपण हेतु अच्छे गुणवत्ता युक्त बीज का उपयोग करना। पौधों के रोपण से पूर्व भूमि को अच्छे से जुताई करना। पौधे रोपण के बाद तत्काल सिंचाई करना। भूमि में बीजों से बुवाई न कर नर्सरी पद्धति से पौधे उगाकर पौधों का रोपण करना चाहिए। रोपण से पूर्व खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है। जड़ी-बुटी की खेती के लिए जैविक खेती को प्राथमिकता दी जाती है, यदि रसायन का प्रयोग किया जाता है, तो उसकी मात्रा बहुत कम होना चाहिए। इसकी जड़े गहरी नही होती इसलिए खेत में गहरी जुताई का आवश्यकता नही होती है। खरपतवार के कारण फसल के उपज में 10 से 30 प्रतिशत की कमी आती है, इसलिए 1-2 महिने फसल को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए ।