मनरेगा में बढ़ रही महिला मेटों की भागीदारी, 59 प्रतिशत मेट महिलाएँ, महिलाओं को मनरेगा कार्यों से जोड़ने के साथ ही स्वरोजगार में भी कर रहीं मदद

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समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, रायपुर

छत्तीसगढ़ में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) कार्यों में ‘आधी आबादी’ यानि महिलाओं की भूमिका लगातार बढ़ रही है। मनरेगा में अकुशल श्रमिक के रूप में काम करने वालों में करीब 51 प्रतिशत महिलाएं हैं। कार्यस्थल पर काम की नाप-जोख और श्रमिकों के प्रबंधन का काम देखने वाले मेटों में महिला मेटों की भागीदारी 59 प्रतिशत है। मेट के रूप में गांव की महिलाएं कार्यस्थलों पर बदली हुई भूमिका में नजर आ रही हैं। पहले केवल मजदूरी करने तक सीमित रहने वाली महिलाएं अब मेट के तौर पर श्रमिकों के प्रबंधन के साथ ही कार्यस्थल पर गोदी खोदने के लिए चूने से मार्किंग, मजदूरों द्वारा किए गए कार्य को मापकर उसे माप-पुस्तिका में दर्ज करने और श्रमिकों के जॉब-कार्ड को अद्यतन करने जैसे महत्वपूर्ण मैदानी काम कर रही हैं। मनरेगा में वे अर्द्धकुशल श्रमिक के रूप में सेवाएं देती हैं और इसी के अनुरूप उन्हें भुगतान भी प्राप्त होता है।

स्वसहायता समूह की महिलाएं बन रही मनरेगा मेट

मनरेगा में महिला मेट की नियुक्ति के बाद से कार्यस्थलों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित स्वसहायता समूहों की सक्रिय महिलाओं को मनरेगा में मेट के रूप में नियुक्ति में प्राथमिकता दी जा रही है। प्रदेश में स्वसहायता समूहों की 9646 महिलाएँ मनरेगा मेट के तौर पर अपनी सेवाएं दे रही हैं। गांवों में पहले से ही स्वावलंबन की अलख जगा रही ये महिलाएं बांकी महिलाओं को भी न केवल मनरेगा में रोजगार दिला रही हैं, बल्कि स्वसहायता समूहों के माध्यम से स्वरोजगार शुरू करने में भी सहायता कर रही हैं। उन्हें रोजगारमूलक गतिविधियों से जोड़कर आय के स्थाई साधन तैयार कर रही हैं। महिला मेट कार्यस्थलों में महिलाओं की परेशानियों के निदान का भी विशेष ध्यान रखती हैं। उनकी निगरानी में कार्य करने का मौका पाकर महिलाएं मनरेगा कार्यों से ज्यादा संख्या में जुड़ रही हैं।

प्रदेश में अभी 46,942 महिला मेट काम कर रहीं

मनरेगा के प्रभावी क्रियान्वयन और शिक्षित ग्रामीण महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए महिला मेटों की संख्या लगातार बढ़ाई जा रही है। प्रदेश में मनरेगा के अंतर्गत कार्यरत कुल मेटों में से 59 प्रतिशत महिलाएं हैं। प्रदेश में अभी 46 हजार 942 महिला मेट काम कर रही हैं, जबकि पुरूष मेटों की संख्या 32 हजार 927 है। राज्य के 28 जिलों में से 25 जिलों में महिला मेटों की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक है। महिला मेटों की भागीदारी बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में 82 प्रतिशत, बिलासपुर में 79 प्रतिशत, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में 77 प्रतिशत, कोरबा में 72 प्रतिशत, बलरामपुर-रामानुजगंज में 70 प्रतिशत, कोरिया एवं महासमुंद में 67-67 प्रतिशत, रायगढ़ में 63 प्रतिशत, रायपुर में 61 प्रतिशत और मुंगेली में 60 प्रतिशत है। सरगुजा और बीजापुर में कार्यरत कुल मेटों में से 59-59 प्रतिशत महिलाएं हैं। राजनांदगांव में 58 प्रतिशत, बस्तर, जांजगीर-चाम्पा, सूरजपुर और बालोद में 57-57 प्रतिशत, बेमेतरा और कांकेर में 56-56 प्रतिशत, दुर्ग में 53 प्रतिशत, धमतरी और जशपुर में 52 प्रतिशत, कोण्डागांव, गरियाबंद व नारायणपुर में 51 प्रतिशत, सुकमा में 47 प्रतिशत, कबीरधाम में 44 प्रतिशत तथा दंतेवाड़ा में 41 प्रतिशत मेट महिलाएं हैं।

50 प्रतिशत से अधिक रोजगार सृजन महिलाओं द्वारा ही

चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में मनरेगा के अंतर्गत रोजगार प्राप्त श्रमिकों में महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी करीब 51 प्रतिशत है। इस साल अब तक 52 लाख 47 हजार श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है, जिनमें 26 लाख 64 हजार महिला श्रमिक हैं। इस वर्ष फरवरी माह तक सृजित कुल 14 करोड़ 21 लाख 53 हजार 765 मानव दिवस में से 7 करोड़ 18 लाख 71 हजार मानव दिवस रोजगार इन महिलाओं द्वारा सृजित हैं, जो कि कुल सृजित मानव दिवस का 51 प्रतिशत है। पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 में भी मनरेगा के तहत रोजगार प्राप्त श्रमिकों में महिलाओं की भागीदारी 50 प्रतिशत से अधिक थी। इस दौरान आधे से अधिक मानव दिवस रोजगार का सृजन महिलाओं द्वारा ही किया गया था।

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