नरवा कार्यक्रम से जल संवर्धन को मिला बल, पानी सहेजने की दिशा में सार्थक साबित हुआ

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समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो

दुर्ग, जल नहीं तो जीवन नहीं, यह जानने के बाद भी हम इसके प्रति उतना गंभीर नहीं है। पानी केवल मानव, प्राणी की ही मूल आवश्यकता में शामिल नहीं है, अपितु जल समस्त जैव जगत के साथ-साथ वनस्पती व जीव संरचना को संचालीत करने के लिए अति-आवश्यक है। जल प्रकृति संतुलन में भी बड़ी सार्थक भूमिका का निर्वहन करती है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जल संरक्षण के प्रति ठोस पहल व प्रयास किया गया है। अति महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट में इसे शामिल करते हुए नरवा कार्यक्रम की शुरूवात की गई है। इसके तहत प्रदेश में जल संरक्षण का कार्य पुख्ता हुआ है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दूर-दृष्टता के चलते इस दिशा में कदम बढ़ाया गया है। प्रदेश के ऐसे नाले जिसमें बरसात के दिनों में पानी होती है, उसे सहेज कर इसका उपयोग खेती-बाड़ी व निस्तारी जल के रूप में उपयोग करने का कार्य को बढ़ावा मिला है। कार्यक्रम अंतर्गत नाला बंधान कर जल संरक्षण का कार्य किया जा रहा है। 

दुर्ग जिले में 196 बड़े नाले है। इसके उपरान्त भी जल आपूर्ति के लिए प्रर्याप्त नही है। इसका मुख्य वजह समुचित तरिके से सहेजने की दिशा में सार्थक प्रयास नहीं होना है। नरवा कार्यक्रम अंतर्गत विस्तृत कार्य योजना तैयार कर कार्य प्रारंभ किया गया। सर्वप्रथम ऐसे नरवा का चिन्हांकन किया गया, जिसमें पानी की उपल्बधता के आधार पर इसे सार्थक बनाया जाए। इस आधार पर प्रर्थम चरण में 29 नालों पर बंधान का कार्य किया गया। इसके परिणामस्वरूप जिले में जल संरक्षण के कार्य उत्साहजनक परिणाम सामने आए है।

जहां कल तक जिला दुर्ग के अंतर्गत नरवा कैचमेंट में औसत भू-जल स्तर 19.07 मी. में प्राप्त होता था वहीं आज 17.29 मीटर प्राप्त होने लगा जिसकी औसत जल वृद्धि 9.34 प्रतिशत है। इसी प्रकार जहां कल तक किसान 492.65 हेक्टेयर में सिंचाई कर पाते थे वहीं 565.97 हेक्टर हो गया है 73.32 हेक्टेयर औसत फसल रकबे में वृद्धि हुई है। किसानों द्वारा पिछले वर्ष की तुलना में 502.82 क्विंटल अधिक उत्पादन अर्जित किया है। यह परिवर्तन किसी चमत्कार से कम नहीं है इसी तर्ज पर आज सभी 196 नरवा को चिन्हांकित कर वृहद पैमाने पे उपचार तथा जल संवर्धन का कार्य किया जा रहा है। नरवा कार्यक्रम अंतर्गत दुर्ग जिला के तीन बड़े नरवा में प्रथम चरण में वृहद पैमाने पर कार्य किया गया। जिससे अमूल्य धरोहर जल संग्रहण संभव हो पाया है।

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