संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ की धर्मबहनें दुर्गसम क्षेत्रों में भी लोगों का निस्वार्थ सेवाएं दे रही – विशप स्वामी

जुबली समापन समारोह के साथ धर्मसंघ स्थापना दिवस महागिरजा कुनकुरी में धूमधाम से मनाया गया

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, कुनकुरी

संत अन्ना की पुत्रियों के धर्म संघ की स्थापना की 125वीं जयंती के जुबली  समापन तथा धर्मसंघ की स्थापना दिवस रोजरी की महारानी महागिरजा कुनकुरी में उत्साहपूर्वक मनाया गया। धार्मिक विधान में पवित्र मिस्सा सम्पन्न कराये गये जिसका मुख्य अनुष्ठाता जशपुर धर्म प्रांत के धर्माध्यक्ष एम्मानुएल केरकेट्टा डी.डी. थे तथा लोयोला कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर फादर ऑस्कर तिर्की, फादर जेरोम मिंज एवं अन्य पुरोहितों ने सहयोग दिया। बिशप ने प्रवचन संदेश में कहा संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ की धर्मबहनें दुर्गसम क्षेत्रों में भी लोगों का निस्वार्थ सेवाएं दे रही हैं। वे ईश्वर की मुक्तिदाई कार्य ईमानदारी पूर्वक आगे बढ़ा रहे हैं।

मिस्सा  का शुभारंभ निर्मला हायर सेकेंडरी स्कूल नवाटोली की छात्राओं के  प्रवेश नृत्य से हुआ। बाइबल जुलूस निर्मला प्राथमिक शाला नवाटोली तथा  चढ़ावा नृत्य निर्मला बालिका स्कूल नवाटोली की छात्राओं द्वारा किया गया। प्रथम पाठ सिस्टर सुषमा  एवं दूसरा पाठ नोविस अंशु एक्का द्वारा पढ़ा गया।  मध्यप्रदेश प्रोविंस  की प्रोविंशियल सिस्टर फ्लोरेंसिया मिंज ने मिस्सा अंत में आभार प्रकट किया। तदोपरांत निर्मला के छात्राओं, स्टाफ तथा धर्मबहनों के लिये मनोरंजक एवं खेलकूद का आयोजन किया गया। पूर्व संध्या रंगारंग सांस्कृतिक कार्यकर्म सम्पन्न कराये गये।

इसके पूर्व 24 जुलाई को संत अन्ना की पुत्रियों के  धर्मसंघ, रांची की स्थापना की 125 वीं जयंती पूरा होने पर जुबली समापन  समारोह  रांची में आयोजित किया गया था। इस समारोह में मध्यप्रदेश प्रोविंस की प्रोविंशियल सिस्टर फ्लोरेंसिया मिंज, अम्बिकापुर धर्मप्रान्त के बिशप अन्टोनीस बड़ा तथा छत्तीसगढ़ से संत अन्ना की पुत्रियों के धर्म संघ कि धर्मबहनें, प्रतिनिधि एवं विद्यार्थियों ने भी  भाग लिया। संत अन्ना की पुत्रियों के धंर्मसंघ के 125वीं जुबली वर्ष  का शुभारंभ 26 जुलाई 2021 को भव्य समारोह के साथ प्रारम्भ किया गया था।

धर्मसंघ संक्षिप्त इतिहास:

 संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ रांची की स्थापना 26 जुलाई 1897 को ईश सेविका माता मेरी बेर्नादेत किस्पोट्टा के द्वारा किया गया जिनका अभूतपूर्व सहयोग माता सेसिलिया किस्पोट्टा, माता बेरोनिका किस्पोट्टा, और माता मेरी ने किया। ये बहनें झारखण्ड के  मांडर प्रखंड के सरगांव निवासी रही है। छोटानागपुर  के सरजमी पर काथलिक  ईसाई समुदाय द्वारा  स्थापित धर्मसंघ का यह प्रथम स्वदेशी धर्मसंघ है। फादर कॉन्सटन्ट लीवन्स ये. स. के उत्साहपूर्ण प्रेरिताई कार्यों से  प्रभावित होकर तथा तात्कालिक कोलकोता के आर्चबिशप पौल गूथल्स ये. स. के आधिकारिक अनुमति से इस धर्मसंघ की  स्थापना रांची में की गई। स्थानीय आदिवासियों के पिछड़ेपन, उनपर हो रहे अत्यचार, अशिक्षा, गरीबी तथा अन्य समस्यों को ध्यान में रखकर  उनके उत्थान के लिये इनकी धर्मसंघ की स्थापना हुई है। प्रारंभिक चुनौतियों के बवजूद ये चार बहनों ने अपने अदम्य साहस से नये धर्मसंघ  ‘संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ’  की नींव डाला जो आज झारखण्ड तक ही सीमित नहीं बल्कि देश तथा विदेश में अपनी पहचान व ख्याति प्राप्त की है। इनकी सफलता का श्रेय वे ईश्वर की कृपा तथा समय की मांग के अनुरूप सेवा प्रदान करना मानते हैं।

 प्रथम चार धर्मबहनों ने प्रथम व्रतधारण कर 8 अप्रैल 1901  को इस धर्मसंघ में  प्रथम सदस्यता सूची में अपना नाम दर्ज कराया। वर्तमान में इन धर्मबहनों की संख्या 1140 से अधिक है तथा 148  कॉन्वेंट कार्यरत है। यह चार प्रोविंस   में बंटा है, रांची प्रोविंस, गुमला प्रोविंस, जलपाईगुड़ी प्रोविंस, तथा मध्यप्रदेश प्रोविंस। धर्मसंघ का दो  डेलीगेशन अंडमान तथा यूरोप है।  आज धर्मसंघ शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक उत्थान तथा बच्चों  द्वारा देश निमार्ण में अहम योगदान दे रहा हैं।

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