नवरात्रि विशेष : जसगायक डॉ. दिलीप षड़ंगी से विजय मिश्रा ‘अमित’ की खास बातचीत

नवरात्रि विशेष : जसगायक डॉ. दिलीप षड़ंगी से विजय मिश्रा ‘अमित’ की खास बातचीत

September 28, 2022 Off By Samdarshi News

संस्कार सिखाती है लोक परम्परायें – डॉ. षडंगी

समदर्शी न्यूज ब्यूरो, रायपुर

सृष्टि के प्रत्येक प्राणी की जननी माँ होती है। इस आदिशक्ति को अनादिकाल से छत्तीसगढ़ में जशगीतों के माध्यम से पूजने का रिवाज है। इस पुरातन रिवाज को पुरानी लोक गायन शैली के अलावा आधुनिक अंदाज में रोचकता के साथ प्रस्तुत करने में पारंगत हैं डॉ. दिलीप षड़ंगी। अपनी अनूठी गायन कला से छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के बाहर विभिन्न राज्यों में वे अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके हैं। छत्तीसगढ़ी लोक-गीतों एवं भजन गायिकी में महारथ प्राप्त डॉ. षडंगी अनेक राज्य एवं राष्ट्रस्तरीय महोत्सवों में सम्मिलित हो चुके हैं। बी.एस.सी. संगीत प्रभाकर, एम.ए. तथा एल.एल.बी. की उपाधि प्राप्त डॉ. दिलीप षडंगी छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी में भी सेवारत रहे हैं। राजधानी रायपुर में उनकी संगीतमयी यात्रा-कथा पर बातचीत करने का अवसर प्राप्त हुआ, जिसका सार यहां प्रस्तुत है –

प्रश्न- षडंगी जी जसगीतों से देवी माँ की आराधना का आरंभ आपने क्यों और कब से किया ?

उत्तर- लोक परम्परायें ही संस्कार की संवाहक होती है, अतः माँ की आराधना तो जन्मजात शुरू हो जाती है। सृष्टि की जननी माँ की महिमा को इन पंक्तियों से व्यक्त करना चाहूंगा कि ‘‘जहां में जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते है, मीं में जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते है।‘‘ अपने बाल्यकाल से जगत जननी को व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक तौर पर जशगीत एवं भजन के माध्यम से पूजते आ रहा हूं। रायगढ़ से मेरी संगीत-यात्रा आरंभ हुई थी।

प्रश्न- धर्म-संस्कार-पर्वो-परम्पराओं से आदमी का जुड़ाव क्यों आवश्यक है ?

उत्तर- देखिए जन्मजात मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामुदायिक जीवन व्यतीत करते हुए सामाजिक अनुशासन को बनाये रखने की दृष्टि से ही धर्म-संस्कार-पर्वो-परम्पराओं से आदमी का जुड़ाव आवश्यक है। बदलते परिवेश में इनके साथ-साथ गीत संगीत के प्रति बढ़ती दूरी एक गंभीर चिन्तन मनन का विषय है। आज नन्हें बच्चों का बचपन गीत संगीत खेल-कूद तथा संस्कार एवं परंपराओं से दूर मशीनी युग में तब्दील होता दिखाई दे रहा है। यही वजह है कि ‘‘आदमी चांद तारों के करीब है, पर आदमी आदमी से दूर होता जा रहा है।‘‘ ऐसे दौर में संयुक्त परिवार की आवश्यकता भी बढ़ रही है।

प्रश्न- अपनी गीत-संगीत की यात्रा में अर्जित उपलब्ध्यिों के बारे में कुछ बताएं ?

उत्तर- विजय जी, ये तो बड़ा कठिन सवाल हो गया। अपने ही बारे में गुणगान करने वाली बात हो गयी है, पर उपलब्धियों की बात चली है, तो बताना चाहूंगा कि मां वीणापाणी के आशीर्वाद से अनेक पुरस्कार, सम्मान मुझे प्राप्त हुये हैं। अपनी संगीत-यात्रा में फिल्म जगत के सोनू निगम, कुमार शानू, नीतिन मुकेश, अनुराधा पौडवाल, उदित नारायण, साधना सरगम, मोहम्मद अजीज तथा अभिजीत जैसे नामचीन गायक-गायिकाओं की आवाज में अपने संगीत निर्देशन में छत्तीसगढ़ी, हिन्दी, उड़िया गीत, भजन एवं हास्य रचनाओं को मैने संगीतबद्ध किया है।

प्रश्न- अपनी कला-यात्रा के खट्टे-मीठे अनुभव को कैसे परिभाषित करेंगे ?

उत्तर- कला-यात्रा के साठ वर्षो को पूरा करते हुए अनेक खट्टे-मीठे अनुभवों से मुझे गुजरना पड़ा। इसे मुनव्वर राना जी के शब्दों में कहना चाहूंगा कि ‘‘रोने में इक खतरा है, तालाब नदी हो जाते हैं, हंसना भी आसान नहीं, लब जख्मी हो जाते हैं।‘‘ ऐसे अनुभव के बीच संगीत की यात्रा में मुझे याद आता है वो लम्हा जब फिल्म सिटी मुंबई में गायक नीतिन मुकेश जी के साथ एक गीत की रिकार्डिंग के दौरान मेरी आवाज की सराहना करते हुये उन्होंने कहा था कि आपकी आवाज मेरे पापा मुकेश जी की आवाज के बहुत करीब है। ऐसे अविस्मरणीय पल मेरे लिए अनमोल धरोहर हैं।

प्रश्न- सफलता की सीढ़ी चढ़ते हुये आलोचनाओं से आप कितने प्रभावित होते है ?

उत्तर- षडंगी जी हंस कर कहते हैं विजय जी, मेरे विचार से हर सफल व्यक्ति को आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता है। हमारे विद्वजनों का भी कथन है कि सफलता के साथ इर्ष्या भी जन्म लेती है। ऐसे दौर में आलोचना से बचने का एक ही उपाय है कि आप अपने कार्य में एकाग्रता से जुटे रहें। वैसे भी आलोचकों की तुलना मैं रेतमाल पेपर से करता हॅू। रेतमाल पेपर किसी भी वस्तु को खरोचंता है, तकलीफ पहुंचाता है, पर अन्त में स्वयं समाप्त हो जाता है, जबकि जिस वस्तु को वह खरोंचता है, वह और अधिक चमकीली हो जाती है।

प्रश्न- प्रायः संगीत कार्यक्रम में बाहर रहते हैं ऐसे में पारिवारिक-सामाजिक-राजनैतिक कार्यों के मध्य समुचित तालमेल कैसे बना पाते हैं ?

उत्तर- पुरानी काहवत है जहाँ चाह, वहाँ राह,  किसी भी व्यक्ति को जब अपनी रूचि के अनुरूप कार्य करना होता है तो वह हर परिस्थिति में अपने लिये कार्य के अनुकूल बेहतर रास्ता निर्मित कर लेता है। मुझे भी अपने घर परिवार से समुचित सहयोग मिल ही जाता है। यही मेरी सफलता का एक बड़ा कारण भी है। षडंगी जी से बातचीत समाप्त करके लौटते हुए मेरा मन उनके सुप्रसिद्ध जशगीत “आमापान के पतरी करेला पान के दोना ओ” को गुनगुना रहा था।

विजय मिश्रा ‘अमित’

पूर्व अतिरिक्त महाप्रबंधक (जन.), छग स्टेट पावर कंपनी,

एम-8, सेक्टर 2, अग्रसेन नगर, पो.आ -सुंदर नगर, रायपुर (छ.ग.)