रमन सरकार ने जब आदिवासी आरक्षण के पक्ष में बनी कमेटी की रिपोर्ट को कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किया तब क्यों मौन थे नंदकुमार साय, केदार कश्यप ? –  धनंजय सिंह ठाकुर

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केदार कश्यप,महेश गागड़ा नंदकुमार साय को कुर्सी जाने का खतरा लगा क्या इसलिए वो कंवर की आरक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं होने पर मौन थे?

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, रायपुर

न्यायालय के निर्णय के चलते आदिवासियों के आरक्षण में हुई कटौती पर राजनीति कर रहे भाजपा के आदिवासी नेताओं को घेरेते हुए प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने पूछा जब रमन सरकार ने आदिवासियों के आरक्षण के पक्ष में ननकीराम कंवर की अध्यक्षता में गठित कमेटी के सिफारिशों को न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया। तब भाजपा से जुड़े आदिवासी नेतागण मौन क्यों थे? विरोध क्यों नहीं किया? रमन सरकार के समय मंत्री रहे केदार कश्यप, महेश गागड़ा ननकीराम कंवर, रामविचार नेताम, रामसेवक पैकरा  एवं  आयोग के अध्यक्ष रहे नन्दकुमार साय को इस बात का डर था कि कहीं वो 32  प्रतिशत आरक्षण के पक्ष में बनी कंवर कमेटी के रिपोर्ट को प्रस्तुत नहीं करने के खिलाफ आवाज उठाएंगे तो उनकी कुर्सी खतरे में पड़ जाएगी? इसलिए आदिवासी समाज को गुमराह किया गया? आरक्षण के मसले पर रमन सरकार के द्वारा आदिवासी समाज के साथ की गई धोखेबाजी पर चुप थे? इसका जवाब भाजपा के आदिवासी नेताओ को अपने समाज को देना चाहिए?

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार एसटी एससी ओबीसी आरक्षण और जनरल कास्ट वालों को आर्थिक आधार पर मिलने वाले आरक्षण का लाभ देने के पक्षधर हैं हर वर्ग के साथ न्याय करती है आदिवासियों के 32 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ न्यायालय के द्वारा दी गई फैसले को माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देगी और आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिले इसके लिए सारे विकल्पों को तलाश रही है।

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि आरएसएस भाजपा और उनके अनुषांगिक संगठनों  से जुड़े नेताओं ने कई बार सार्वजनिक मंचों के माध्यम से आरक्षण को खत्म करने की बात कही है आरक्षण के विरोध बात कही है और 15 साल के रमन शासनकाल के दौरान आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण दिया गया लेकिन एससी वर्ग को मिल रहे आरक्षण में 4 प्रतिशत की कटौती कर दी गई और दो वर्गों में लड़ाई उत्पन्न कर दिया गया। जिसके चलते मामला न्यायालय में गया और न्यायालय का फैसला आदिवासी वर्ग 32 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ आया है इससे स्पष्ट होता है कि भाजपा कभी नहीं चाहती थी कि एसटी वर्ग को एससी वर्ग को ओबीसी वर्ग को उनका हक अधिकार मिले और आज और साबित हो गया है आज भाजपा का आदिवासी विरोधी चेहरा उजागर होने के बाद भाजपा आदिवासी आरक्षण खत्म होने पर घड़ियाली आंसू बहा रही है और भाजपा से जुड़े आदिवासी नेता रमन सरकार की काली करतूत पर पर्दा करने में जुटे हुए हैं।

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