अच्छी खबर : राज्य में वर्टिब्रोप्लास्टी का पहला एवं सफल केस, वर्टिब्रोप्लास्टी से 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला को रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर से मिली राहत

Advertisements
Advertisements

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो,

रायपुर. रीढ़ की हड्डी में चोट (स्पाइनल फ्रैक्चर) लग जाने से विगत तीन महीनों से दर्द का शिकार तथा बिस्तर पर लेटी हुई (बेडरिडेन) 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला की सफल ‘वर्टिब्रोप्लास्टी’ के बाद महिला का जीवन पहले की तरह दर्दरहित एवं सामान्य हो गया है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के रेडियोलॉजी (एक्स-रे) विभाग में इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ. विवेक पात्रे के नेतृत्व में मिनिमल इनवेसिव पद्धति से हुए वर्टिब्रोप्लास्टी सर्जरी के बाद बुजुर्ग महिला की दैनिक गतिविधि सामान्य हो गई है। तिल्दा-नेवरा निवासी बुजुर्ग महिला शकीला सफल उपचार के बाद डिस्चार्ज लेकर घर चली गई है। संभवतः वर्टिब्रल फ्रैक्चर के उपचार के लिए किए जाने वाले वर्टिब्रोप्लास्टी का यह राज्य में पहला केस है। इससे पूर्व इस प्रकार के उन्नत तरीके के उपचार की सुविधा प्राप्त करने के लिए लोग महानगरों का रूख करते थे जहां पर न्यूतनम दो लाख से तीन लाख रूपये तक का खर्च लोगों को वहन करना पड़ता था परंतु इस चिकित्सालय में मरीज की वर्टिब्रोप्लास्टी डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजनांतर्गत निः शुल्क हुई ।

इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ. विवेक पात्रे के अनुसार, इमेज गाइडेड वर्टिब्रोप्लास्टी प्रक्रिया में फ्लोरोस्कोपी की सहायता से रीढ़ के फ्रैक्चर वाले स्थान पर खोखली सुई के माध्यम से एक विशेष बोन सीमेंट को हड्डी में इंजेक्ट किया जाता है जिसके बाद सीमेंट उस स्थान पर जाकर जम जाता है और टूटी हुई हड्डी को सहारा मिल जाता है। यह उपचार तकनीक इसी विधि पर आधारित है।

मरीज की बहू श्रीमती सविता पाल बताती हैं कि तीन महीने पहले फर्श पर गिर जाने के कारण मेरी सास के रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया था, उस दिन से वह बिस्तर से उठ नहीं पाईं। कई जगह दिखाने पर भी कोई आराम नहीं मिला तब अम्बेडकर अस्पताल लेकर आए जहां पर डॉक्टरों ने सीटी स्कैन और एमआरआई जांच से रीढ़ की हड्डी (डार्सल वर्टिब्रा डी-12) में फ्रैक्चर होने की जानकारी दी। इसके बाद रेडियोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने उम्र की अधिकता और बीमारी की गंभीरता को देखते हुए वर्टिब्रोप्लास्टी करने का निर्णय लिया। उपचार के बाद मेरी सास बिस्तर से उठ कर बैठना शुरू कर दी है। पहले की अपेक्षा स्थिति में 80 से 90 फीसदी तक सुधार है।

डॉ. विवेक पात्रे बताते हैं, वर्टिब्रोप्लास्टी सर्जरी एक तरह से डे केयर प्रोसीजर है जिसके लिए मरीज को अस्पताल में लंबे समय के लिए भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती। इसमें न्यूनतम (मिनिमल) इनवेसिव प्रक्रिया के जरिये स्पाइनल फ्रैक्चर को ठीक किया जाता है तथा स्पाइन में होने वाले दर्द को कम किया जा सकता है। आस्टियोपोरेसिस के कारण हड्डियों के घनत्व, द्रव्यमान एवं क्षमता में आयी कमी या फिर टूटी हुई रीढ़ की हड्डियों को सहारा देने के लिए प्रक्रिया में अस्थि (बोन) सीमेंट का उपयोग किया जा सकता है। वर्टिब्रोप्लास्टी के बाद व्यक्ति की गतिशीलता बढ़ती है, साथ ही दर्द की दवाओं का उपयोग कम हो जाता है।

ऐसे हुआ प्रोसीजर

वर्टिब्रोप्लास्टी सर्जरी में सबसे पहले इमेज गाइडेड (छवि मार्गदर्शन) फ्लोरोस्कोपी की सहायता से खोखली सुई को त्वचा के माध्यम से फ्रैक्चर हुए वर्टिब्रा में इंजेक्ट किया गया। इसके बाद बोन सीमेंट के मिश्रण को इंजेक्शन के जरिए इंजेक्ट किया गया। फ्रैक्चर हुए वर्टिब्रल (कशेरुक) के भीतर पहुंचते ही सीमेंट सख्त हो जाता है। पांच मिनट के अंदर ही सुई को हटा दिया जाता है। इसके लिए कोई सर्जिकल चीरे की आवश्यकता नहीं होती है केवल त्वचा में एक छोटे से छेद के माध्यम से ही यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है। मरीज के लिए यह एक सुरक्षित और प्रभावी प्रक्रिया रही जिसमें केवल सुई वाले स्थान को सुन्न करके (लोकल एनेस्थीसिया देकर) पूरा प्रोसीजर किया गया।

इस सर्जरी में डॉ. विवेक पात्रे के साथ रेडियोलॉजिस्ट डॉ. नीलेश गुप्ता, एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. अशोक सिदार, डॉ. आकांक्षा, डॉ. सूरज, डॉ. सोनल, डॉ. प्रियंका, नर्सिंग स्टाफ से सिस्टर अर्पणा, सिस्टर दुर्गेश एवं सिस्टर गीतांजलि, टेक्नीशियन टीम से अब्दुल, नरोत्तम, देवेश का विशेष सहयोग रहा।

Advertisements
Advertisements
error: Content is protected !!