क्रिसमिस पर्व पर विशेष लेख : एशिया का महागिरजाघर-कुनकुरी छत्तीसगढ़, बना मसीह धर्मावलंबियों के आस्था का प्रमुख केंद्र
December 24, 2022प्रभु ईसा मसीह के जन्मदिवस का यह महापर्व कटु अनुभव, दुर्व्यवहार को भूलाकर क्षमा करने की देता है सीख
समदर्शी न्यूज डेस्क
रायपुर : दुनिया भर में करुणा, दया मानवता की जीत को उत्सव के रूप में मनाया जाने वाला पर्व है क्रिसमस। प्रभु ईसा मसीह के जन्मदिवस का यह महापर्व कटु अनुभव, दुर्व्यवहार को भूलाकर क्षमा करने की सीख देता है। प्रभु यीशु का संदेश है कि मानव समुदाय को अटूट बंधन में बांधे रखने की शक्ति दयालुता में ही है। यदि मानव समुदाय क्षमा करने की भावनाओं को अपने भीतर बनाए रखता है, तो वह स्वयं भी नकारात्मक विचारों से मुक्त बना रहता है। सामाजिक समरसता का पाठ पढ़ाने वाले इस महापर्व के दिन चर्च में बड़ा ही उत्साहजनक वातावरण निर्मित होता है।
प्रभु ईसा मसीह के प्रति आस्था का गढ़ छत्तीसगढ़ भी है। यहां एशिया महाद्वीप का दूसरा सबसे बड़ा चर्च (महागिरजाघर) कुनकुरी में निर्मित है। प्राकृतिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत मनमोहक जिला जशपुर कुनकुरी के इस चर्च को महागिरजाघर (कैथेड्रल) के नाम से ख्याति मिली हुई है।
महागिरजाघर बना है एक ही बीम पर
यह गिरजाघर वास्तु कला का बेजोड़ नमूना है। इसकी नींव वर्ष 1962 में रखी गई थी। बेल्जियम के आर्किटेक्ट जे एम कार्डिनल कार्सी ने इसके नक्शा को बनाया था। एक ही बीम पर बने इस पवित्र भवन को अद्भुत नक्शा के अनुरूप आकार देने में लगभग सत्रह साल लग गए थे। ऊंचाई से देखने पर इसकी बनावट ऐसे दिखाई देती है, मानो ईश्वर दोनों हाथ फैलाए हुए भक्तजनों को अपनी और आमंत्रित कर रहे हैं। 27 अक्टूबर 1979 वह ऐतिहासिक दिन है, जब इस महागिरजाघर को श्रद्धालुओं के लिए लोकार्पित किया गया था। उस समय इस महागिरजाघर के पूज्य बिशप स्टानिस्लास तिग्गा थे। अपनी अनुपम आकृति के लिए देश विदेश में यह विख्यात है।
दस हजार श्रद्धालुओं की बैठक क्षमता है चर्च में
उल्लेखनीय है कि एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा चर्च “सुमी बैप्टिस्ट” नागालैंड में है तथा दूसरा बड़ा कुनकुरी का चर्च है। यह छत्तीसगढ़ में सैलानियों को आकृष्ट करता है। श्वेत संगमरमर के उपयोग से बने इस चर्च के भीतर दस हजार श्रद्धालुओं के बैठने की क्षमता है। अर्ध गोलाकार इस पवित्र भवन को “रोजरी की महारानी चर्च” के नाम से भी प्रसिद्धि प्राप्त है।
सात अंक का खास महत्व है चर्च में
प्रारंभ में यह महागिरजाघर घने जंगलों से घिरा हुआ था। समय के साथ प्रगति की गति से चली परिवर्तन की बयार ने आज इस स्थल को सर्वसुविधायुक्त बना दिया है। इसकी विशेषता यह भी है कि इसकी डिजाइन में सात अंक को मसीही धर्म ग्रंथानुसार विशेष महत्व दिया गया है। कैथोलिक समुदाय के धर्मग्रंथों में सात अंक को अति महत्वपूर्ण माना गया है। इसी के अनुपालन में ईसाई समुदाय के सात संस्कार यथा – पाप स्वीकार,रोगी सेवा,पुरोहित संस्कार, प्रसाद ग्रहण, बपतिस्मा, विवाह संस्कार और सुदृढ़ संस्कार के चिन्ह रंगीन कांच के चित्रो में यहां अंकित हैं। ग्रेनाइट पत्थर से भी निर्मित हैं। इसी मान्यता के अनुरूप गिरजाघर में सात छत, सात खूबसूरत दरवाजे बनाए गए हैं। प्रभु यीशु के संदेशों का सुंदर चित्रण-लेखन इसकी छतों और दीवारों पर भी दर्ज है।
गर्व की बात कि क्षेत्रीय आदिवासी मजदूरों के श्रम से इस विशालकाय गिरजाघर का निर्माण हुआ है। हिंदू समुदाय में जैसे चार धामों का, मुस्लिम समुदाय में जैसे मक्का का महत्व है। वैसा ही महत्व क्रिश्चियन समुदाय में कुनकुरी के इस गिरजाघर का है। प्रभू ईसा मसीह के जन्मोत्सव में गूंजते कैरोल गीत से समूचा विश्व माह दिसम्बर में झूम उठता है। ऐसे मनोहारी समय में यहां की हरियाली, क्रिसमस ट्री की सजावट और शांत वातावरण से तन-मन मंत्रमुग्ध हो जाता है।
परहित करने हुई है मनुष्य की उत्पत्ति
भारत के इस सर्वाधिक बड़े गिरजाघर की ओर से कई स्कूल, कालेज, अस्पताल का संचालन सहित दीन-दु:खियों का दुःख दर्द दूर कर जनहितकारी कार्यक्रम किए जाते हैं। जहां बिना किसी भेदभाव के शिक्षा, चिकित्सा सेवाओं का लाभ जरूरतमंदों को दिया जाता है। परमपिता परमेश्वर ने ऐसे ही परहितकारी कार्यों का निष्पादन नि:स्वार्थ भाव से करने के लिए मनुष्य की उत्पत्ति सर्वश्रेष्ठ प्राणी के रूप में की है।
विजय मिश्रा ‘अमित’– पूर्व अति. महाप्रबंधक (जन), मोबा- 9893123310
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