हिंदी के प्रख्यात कवि, नाटककार एवम छायावाद के महत्वपूर्ण स्तंभ जयशंकर प्रसाद की जयंती पर व्याखान आयोजित
January 31, 2023समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, बिलासपुर
प्रख्यात साहित्यकार जय शंकर प्रसाद की जयंती दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के राजभाषा विभाग में मनाई गया। इस अवसर पर दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के मुख्य जन संपर्क अधिकारी साकेत रंजन, वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी विक्रम सिंह सहित अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे।
जय शंकर प्रसाद जयंती के अवसर पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा करते हुए मुख्य जन संपर्क अधिकारी साकेत रंजन ने कहा कि जयशंकर प्रसाद ऐसे एक साहित्यकार हैं जिन्होंने भारत के स्वर्णिम अतीत के पुनःसृजन करने का प्रयत्न किया है। उनकी रचनाएं इसके साक्षी है , प्रमाण है। साहित्यकार अतीत का निषेध नहीं करता बल्कि उसको अवश्य ग्रहण करता है। अतीत यानि विरासत के ठोस धरातल पर खड़े होकर वह वर्तमान एवं भविष्य पर दृष्टि डालता है। गोया कि अतीत का पुनर्मूल्यांकन करते हुए वर्तमान में खडे होकर भविष्य को गढने का जोखिम भरा काम करनेवाला साहित्यकार ही दरअसल महान साहित्यकार होते हैं। व्यास, वाल्मीकि, कालिदास से लेकर सारे हिन्दी साहित्य के जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकान्तत्रिपाठी निराला, मुक्तिबोध जैसे अनेक प्रतिभा के धनी रचनाकारों ने मानव को सही दिशा निर्देश करने का कार्य किया है। यह सिर्फ भारतीय साहित्य की खासियत ही नहीं विश्व साहित्य इसका गवाह है। स्वाधीनता परवर्ती भारतीय समाज समस्याओं की चुनौती में खड़ा हुआ है। निराशाग्रस्त एवं आश्रयहीन होकर जनता भटक रही थी। ऐसी एक विकट परिस्थति में जनमानस के अन्तरंग को पहचानने में हिन्दी के बहुत सारे साहित्याकर सफल हुए है। जिनमें जयशंकर प्रसादजी का नाम विशेष उल्लेखनीय है। उनकी सृजनात्कता की अपनी अलग विशेषता है। उन्होंने मानव जीवन के यथार्थ को भारत के स्वर्णिम अतीत के साथ जोडने का सफल प्रयास किया है।
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी विक्रम सिंह ने जय शंकर प्रसाद की रचनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि उर्वशी’, ‘झरना’, ‘चित्राधार’, ‘आँसू’, ‘लहर’, ‘कानन-कुसुम’, ‘करुणालय’, ‘प्रेम पथिक’, ‘महाराणा का महत्त्व’, ‘कामायनी’, ‘वन मिलन’ उनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ हैं। ‘कामायनी’ उनकी विशिष्ट रचना है जिसे मुक्तिबोध ने विराट फ़ैंटेसी के रूप में देखा है और नामवर सिंह ने इसे आधुनिक सभ्यता का प्रतिनिधि महाकाव्य कहा है। कविताओं के अलावे उन्होंने गद्य में भी विपुल मौलिक योगदान किया है। ‘कामना’, विशाख, एक घूँट, अजातशत्रु, जनमेजय का नाग-यज्ञ, राज्यश्री, स्कंदगुप्त, सज्जन, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, कल्याणी, प्रायश्चित उनके नाटक हैं, जबकि कहानियों का संकलन छाया, आँधी, प्रतिध्वनि, इंद्रजाल, आकाशदीप में हुआ है। कंकाल, तितली और इरावती उनके उपन्यास हैं और ‘काव्य और कला तथा अन्य निबंध’ उनका निबंध-संग्रह है।
अन्य अधिकारियों एवं रेलकर्मियों ने प्रसाद जी के काव्य एवं नाटकों का वाचन किया तथा राष्ट्र के लिए प्रसाद जी के आह्वान के अनुसार अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा ग्रहण किया।