क्लब फुट पर आयोजित कार्यशाला में संयुक्त राज्य अमेरिका से आये प्रशिक्षक मिस्टर कार्लटन ब्रुस स्मिथ ने सिखाए प्लास्टर लगाने के तरीके, अम्बेडकर अस्पताल के अस्थि रोग विभाग में आयोजित हुआ वर्कशॉप
February 13, 2024शिशुओं में जन्मजात होने वाली पैर की असमान्यता या विकार है क्लब फुट
क्लब फुट से पीड़ित नवजातों के पैर अंदर और नीचे की ओर मुड़े हुए होते हैं
समदर्शी न्यूज़, रायपुर : डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय, रायपुर के अस्थि रोग विभाग में क्लब फुट (मुद्गरपाद) पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। अस्थि रोग विभाग एवं क्योर इंडिया फाउंडेशन के सहयोग से आयोजित इस कार्यशाला में यू. एस. ए. (संयुक्त राज्य अमेरिका) से आये प्रोफेशनल हेल्थ केयर वर्कर एवं क्लब फुट प्लास्टर विशेषज्ञ मिस्टर कार्लटन ब्रुस स्मिथ द्वारा क्लब फुट में प्लास्टर पद्धति के तहत पैर को सीधा करने का प्रशिक्षण दिया गया। अस्थि रोग विभाग के प्रशासनिक खण्ड स्थित सेमीनार हॉल में आयोजित इस कार्यशाला में प्रशिक्षक कार्लटन ब्रुस ने ऑर्थोपेडिक के पीजी स्टृडेंट को शून्य से पांच वर्ष उम्र तक के पांच बच्चों को प्लास्टर लगाकर, क्लब फुट विकार से पीड़ित पैरों को सीधा एवं सामान्य करना सिखाया।
मिस्टर कार्लटन ब्रूस स्मिथ ने वर्कशॉप में प्रशिक्षण देते हुए बताया कि अन्य देशों में भी क्लब फुट के उपचार के लिए भारत की तरह ही हफ्ते-हफ्ते में प्लास्टर बदले जाते हैं और पैरों को सीधा करने के लिए बाद में जूते नुमा ब्रेस दिए जाते हैं। मेडिकल भाषा में इसे फुट एबडक्शन ब्रेसेस कहते हैं। यह एक तरह का आर्थोपेडिक उपकरण है जिसका उपयोग क्लब फुट में प्लास्टर पद्धति से सीधे किए हुए पैर को यथास्थिति में बनाए रखने के लिए प्रयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि क्लब फुट के उपचार की प्रक्रिया कास्ट (प्लास्टर) लगाने के साथ शुरू होती है जो ब्रेस के साथ समाप्त होती है। पैर की स्थिति सही होने के बाद अधिकतम पांच साल तक ब्रेस का उपयोग पैर को पूरी तरह ठीक करने में किया जाता है।
विभागाध्यक्ष अस्थि रोग विभाग डॉ. विनित जैन ने बताया कि वर्तमान में अम्बेडकर अस्पताल में स्थित अस्थि रोग विभाग में प्रतिदिन क्लब फुट से पीड़ित एक से दो नवजात या छोटे शिशु ओपीडी में आते हैं। इसके मानक उपचार की पद्धति के अंतर्गत प्रत्येक सफ्ताह में प्लास्टर बदलना पड़ता है जिससे दूरस्थ क्षेत्रों से आने वाले शिशुओं के अभिभावकों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अस्थि विभाग द्वारा ईज़ाद सुपर एक्सीलरेटेड तकनीक के माध्यम से क्लब फुट से पीड़ित नवजातों में प्रतिदिन प्लास्टर करके अतिशीघ्र पैर को ठीक किया जा सकता है। इसके लिए शिशु को विभाग में एक से दो सप्ताह तक भर्ती कर प्रतिदिन नए प्लास्टर लगाकर, उपचार पूर्ण कर छुट्टी कर दिया जाता है। वर्तमान में विभाग में उपचार हेतु आने वाले क्लब फुट से पीड़ित छोटे बच्चों में इसके काफी सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। इस पद्धति पर अस्थि रोग विभाग में वर्तमान में शोध जारी है।
अस्थि रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर प्रणय श्रीवास्तव के अनुसार, प्रति हजार जीवित जन्म लेने वाले बच्चों में एक बच्चा क्लब फुट की समस्या से पीड़ित रहता है। क्लब फुट या मुद्गरपाद एक जन्मजात विकार है जिसमें पैर जन्म से ही मुड़े हए होते हैं। क्लबफ़ुट का कारण अज्ञात है। क्लबफ़ुट में पैर मुड़ा हुआ और उल्टा दिखाई दे सकता है। इसका इलाज आमतौर पर सफल रहता है जिसमें खींचकर प्लास्टर करना (पोन्सेटी पद्धति)शामिल हैं। कभी-कभी ही इसमें ऑपरेशन की जरूरत होती है। क्लब फुट का जितना जल्दी उपचार हो उतना अच्छा है।
विदित हो कि वर्तमान में अस्थि रोग विभाग में क्लब फुट के उपचार पर आधारित सुपर एक्सीलरेटेड पोन्सेटी तकनीक पर विभागाध्यक्ष डॉ. विनित जैन एवं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रणय श्रीवास्तव के नेतृत्व में रिसर्च चल रहा है। इस रिसर्च के अंतर्गत बच्चों में क्लब फुट के उपचार की प्रचलित पद्धति हफ्ते-हफ्ते में प्लास्टर या कास्ट बदलने के बजाय प्रतिदिन नये प्लास्टर लगाये जाते हैं जिससे क्लब फुट बच्चों में इसके त्वरित एवं सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। डॉ. विनित जैन को उनके इस शोध के लिए सम्मानित भी किया जा चुका है।
इस वर्कशॉप में अस्थि रोग विभागाध्यक्ष डॉ. विनित जैन, डॉ. प्रणय श्रीवास्तव, डॉ. संजय जैन एवं पीजी स्टूडेंट समेत क्योर इंडिया फाउंडेशन की तरफ से सारिका बाग एवं सरिता उपस्थित रहे।