मुख्यमंत्री ने राज्य में चाय और काफी की खेती को बढ़ावा देने छत्तीसगढ़ टी काफी बोर्ड के गठन का लिया निर्णय

October 17, 2021 Off By Samdarshi News

कृषि मंत्री की अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ टी कॉफी बोर्ड का किया जाएगा गठन

मध्य भारत में जशपुर जिला में ही केवल हो रही चाय की खेती

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो

रायपुर/जशपुर. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में चाय और काफी की खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि मंत्री की अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ टी काफी बोर्ड का गठन किये जाने का निर्णय लिया है। उद्योग मंत्री छत्तीसगढ़ टी काफी बोर्ड के उपाध्यक्ष होंगे। बोर्ड में अतिरिक्त मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री सचिवालय, कृषि उत्पादन आयुक्त, प्रबंध संचालक सीएसआईडीसी, कृषि/उद्यानिकी एवं वन विभाग के एक-एक अधिकारी सहित दो विशेष सदस्य भी शामिल किये जायेंगे।

मुख्यमंत्री श्री बघेल ने कहा कि स्थानीय कृषको एवं प्रसंस्करणकर्ता लोगो को अधिकतम लाभ सुनिश्चित करने के लिये और राज्य में चाय-कॉफी की खेती को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ टी काफी बोर्ड का गठन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आगामी 3 वर्षों में कम से कम दस-दस हजार एकड़ में चाय एवं काफी की खेती करने का लक्ष्य अर्जित किया जायेगा। चाय एवं काफी की खेती करने वाले किसानों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना एवं कृषि विभाग की अन्य सुविधाएं दी जायेगी।

उल्लेखनीय है कि राज्य के उत्तरी भाग, विशेषकर जशपुर जिले में चाय तथा दक्षिणी भाग, विशेषकर बस्तर जिले में कॉफी की खेती एवं उनके प्रसंस्करण की व्यापक संभावनाये है। इसमें उद्यानिकी एवं उद्योग विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित संस्थानों से तकनीकी मार्ग दर्शन लेने के साथ ही निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों, निवेशकों एवं कन्सल्टेंट्स की सहायता भी ली जाएगी।

जशपुर जिले के पठारी क्षेत्र की जलवायु  चाय की खेती के लिए अनुकूल है। मध्य भारत में जशपुर जिला ही ऐसा है जहां पर चाय की सफल खेती की जा रही है। शासन के जिला खनिज न्यास मद योजना, वन विभाग के सयुक्त वन प्रबंधन सुदृढ़ीकरण, डेयरी विकास योजना एवं मनरेगा योजना से चाय खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। शासन के सहयोग से लगभग 50 कृषकों के 80 एकड़ कृषि भूमि पर चाय की खेती का कार्य प्रगति पर है। चाय बगान लगने के 5 साल के बाद ही चाय का उत्पादन पूरी क्षमता से होता है। पूरी क्षमता से उत्पादन होने की स्थिति में प्रति एकड़ 2 लाख रुपये प्रतिवर्ष का लाभ होने की संभावना है।