डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय रायपुर में एसीआई में मरीज को पहली दफ़ा लगा विश्व का सबसे छोटा पेसमेकर, प्रदेश में दिल के सरकारी अस्पताल में लीडलेस पेसमेकर लगाने का पहला मामला, विश्व का सबसे छोटा पेसमेकर विटामिन वाले कैप्सूल की साइज का, नाम है माइक्रा
June 13, 2023एसीआई में आने से पूर्व पेसमेकर प्रत्यारोपण एवं इससे उपजी जटिलताओं से 8 से अधिक बार पीड़ित हुआ मरीज
एसीआई में कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. स्मित श्रीवास्तव एवं टीम ने हृदय के अंदर तैरता हुआ पेसमेकर लगाकर मरीज को दिया नवजीवन
समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, रायपुर
पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में आज विश्व के सबसे छोटे आकार का पेसमेकर प्रत्यारोपित कर आठ बार हृदय की जटिल प्रक्रिया से गुजरे हुए मरीज को नया जीवन दिया गया। एसीआई में कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव एवं टीम ने कम्प्लीट हार्ट ब्लाकेज (पूर्ण हृदय अवरोध) की समस्या से पीड़ित राजनांदगांव निवासी 63 वर्षीय मरीज के हृदय में विटामिन वाले कैप्सूल के आकार का पेसमेकर प्रत्यारोपित कर हृदय की समस्या से निज़ात दिलाई। प्रत्यारोपण के बाद दिल के चैंबर में तैरने वाले इस पेसमेकर का नाम माइक्रा है जो लीडलेस यानी बिना लीड के जांघ की नसों के माध्यम से प्रत्यारोपित किया जाता है।
इस केस में सबसे खास बात यह है कि मरीज के एसीआई पहुंचने से लेकर आज उसके हृदय में पेसमेकर प्रत्यारोपण करने की कहानी काफी संघर्षों से भरी हुई है। मरीज को वर्ष 2010 में एक निजी अस्पताल में पहला पेसमेकर लगा, वर्ष 2020 में पेसमेकर की बैटरी खत्म हो गई तो इंदौर में नया बैटरी लगवाया। वर्ष 2021 में पेसमेकर चमड़ी से बाहर आ गया। वर्ष 2021-22 में बाहर आये पेसमेकर को सेट करने के लिए चार बार प्लास्टिक सर्जरी हुई। वर्ष 2022 में लीड एक्सट्रेक्शन करके दायें साइड से निकाल कर बायें साइड में डाला। मरीज की समस्या यहीं खत्म नहीं हुई। फरवरी 2023 में मरीज एसीआई पहुंचा जहां पर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. स्मित श्रीवास्तव एवं टीम ने बाहर निकले हुए पेसमेकर को छाती के मांसपेशियों के पीछे डाला। कुछ समय बाद मरीज को आटो इम्यून डिसऑर्डर होने के कारण हर्पीज की समस्या हो गई और छाती में इन्फेक्शन हो गया। मवाद बहने लगा। अंततः मरीज वापस एसीआई पहुंचा और यहां उसे हृदय की इन सभी जटिलताओं का समाधान सबसे छोटे पेसमेकर के प्रत्यारोपण के बाद मिला।
ऐसे संपन्न हुई प्रक्रिया
डॉ. स्मित श्रीवास्तव के मुताबिक, सबसे पहले दायीं जांघ के फीमोरल वेन से नीडिल डाला गया। उसके बाद शिफ्ट वायर के ऊपर इंट्रोट्यूब डाला। इंट्रोट्यूब के ऊपर से माइक्रा डिलीवरी सिस्टम को डाला गया। माइक्रा कैप्सूल के स्वरूप में माउंटेड रहता है। इसके बाद माइक्रा डिलीवरी सिस्टम को राइट एट्रियम में लेकर जायेंगे। राइट एट्रियम से बेंट करके राइट वेंट्रिकल सेप्टम में लेकर जायेंगे। उसके बाद माइक्रा को अंदर ही अंदर डिलीवरी सिस्टम के माध्यम से रिलीज करेंगे। रिलीज करने के बाद वह ऑटोमेटिक राइट वेंट्रिकल सेप्टम में फिट हो जाते हैं। इसमें चार पतले कांटे की तरह धागेनुमा संरचना होती है जिसकी मदद से वह सेप्टम में फिट हो जाता है और देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो तैर रहा हो। इसके बाद मरीज का इलेक्ट्रिकल पैरामीटर मापते हैं। संतोषप्रद होने पर उसी स्थिति में रख कर बाकी सिस्टम को बाहर खींच लेते हैं । प्रत्यारोपण के बाद लीड लेस पेसमेकर हृदय को विद्युत तरंगे भेजता रहता है जिससे दिल धड़कता रहेगा। इसमें इन्फेक्शन की संभावना काफी कम होती है और बैटरी लाइफ 12 साल तक रहता है।
सिंगल चेम्बर पेसमेकर है माइक्रा
माइक्रा सिंगल-चेंबर पेसमेकर होता है जो एक विटामिन के कैप्सूल के आकार का होता है और इसे सीधे हृदय में लगाया जा सकता है इसलिये इसमें लीड्स को भी प्रत्यारोपित करने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया के अंतर्गत पेसमेकर को पैर में कैथेटर के माध्यम से प्रत्यारोपित किया जाता है और छाती में चीरा लगाने की आवश्यकता नहीं होती है।
टीम में ये रहे शामिल
डॉ. स्मित श्रीवास्तव के साथ डॉ. सी. के. दास, कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ. तान्या छौड़ा, टेक्नीशियन आई. पी. वर्मा, खेम सिंह, नवीन ठाकुर, जितेन्द्र, आशा, बी. जॉन, डेविड, खोगेन्द्र एवं टीम।