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नववर्ष पर चिंतन आलेख : बुढ़ापा है एक सुखद परिवर्तन ! - समदर्शी न्यूज

समदर्शी न्यूज डेस्क

रायपुर : 31 दिसम्बर को जनसमुदाय नववर्ष के स्वागत के लिए उल्लास में डूबे हुये जश्न की तैयारी में दिखा। वहीं वर्ष 2022 का कैलेण्डर अपने अस्तित्व को सदा सदा के लिए समाप्त होने पर आँखें नम करके चेहरा लटकाने के बजाय आत्मसंतोष का भाव लिए हुए अंतिम घड़ी की ओर टकटकी लगाये ताकते दिखा। जो कैलेण्डर रोज रोज तारीख बदलता रहा, उसी कैलेण्डर को 31 दिसम्बर की तारीख ने पूरी तरह से बदल कर रख दिया। जिंदगी का भी यही फलसफा है, जो आज है, वह कल नहीं रहेगा, जो आज नया है, वह कल निश्चित रूप से पुराना होगा।

नवजीवन का उदघोष !

पुराना कैलेण्डर इस सच्चाई को स्वीकारने और हर दिन हर पल को भरपूर आनंद से जीने का संदेशा दे गया। वह अंत का नहीं, नवजीवन का उद्घोष कर रहा था-

पौधों से गिरते पीले पत्तों ने बताया है कि जिंदगी का यह अंत नहीं, यह तो केवल साया है।

पुराने कैलेण्डर के चेहरे पर झुर्री और शरीर पर जर्जरता के भाव नहीं दिखे, बल्कि सफल सशक्त जीवन को पूरा करने का भाव वह व्यक्त कर रहा था। ढलते साल, सठियाना, पक जाना जैसे विचारों से कहीं अलग पूरी निष्ठा के साथ कर्तव्यनिवर्हन करने की चमक उसके चेहरे पर दिखाई दे रही थी। साथ ही साथ उसके फड़फड़ाते हुये पन्ने आंतरिक प्रसन्नता का प्रकाश बिखेरते हुए आत्मसंतोष के भाव को उजागर कर रहे थे।

संतोषी जीवन का मंत्र !

नववर्ष के कैलेण्डर के लिए अपनी जगह को छोड़ते हुए उसे गम कम खुशी अधिक हो रही थी, दरअसल उसने हर दिवस की महत्ता को ईमानदारी से उजागर कर अपनी कर्तव्यपरायणता को निर्विवाद निभाया था। एक कैलेण्डर होने के धर्म को बखूबी निभाते हुये 2022 का कैलेण्डर संकेत दे गया कि संतोष की जिंदगी पाने का यही सूत्र है।

पुराना नहीं है बूढ़ापा नये से पुराने हो जाने की दशा को वह बूढ़ापा कहने के बजाय ‘‘अनिवार्य सुखद परिवर्तन’’ का नाम दे रहा था। वर्ष भर दीपावली, ईद, क्रिसमस, प्रकाश पर्व जैसे अनगिनत पर्वों के दिवस की जानकारी जनमन को देने के सुख की लकीर बारम्बार उसके चेहरे पर उभर रही थी। वह बयां कर रहा था कि विविध पर्वों के पीछे निहित भावनाओं और उद्देश्य के अनुरूप आचरण व्यवहार करेंगे तो आप कभी बूढ़े नहीं होंगे, क्योंकि उमंग, उल्लास, भाईचारा, मानवता, प्रेम, ज्ञान, परोपकार, नम्रता के भाव कभी वृद्ध नहीं होते। ऐसे गुणों के बीज को बोने, उगने और बढ़ने देने की ललक हमेशा मानव मन को युवा बनाये रखता है।

हर दिवस का आरंभ नई ऊर्जा के संग !

वर्षांत में सेवानिवृत्त होता हुआ कैलेण्डर यह भी कह रहा था कि दिन पर दिन गिनते हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे तो मुट्ठी में भरी रेत की तरह जिंदगी फिसल कर निकल जायेगी। दिन बीतते जा रहा है, उम्र बढ़ती जा रही है, आगे क्या होगा जैसे विचार-सवाल में उलझे रहने से तो असमय ही निश्चित रूप से बूढ़ापा एक रोग की तरह घेर लेगा। इससे बचने का आसान उपाय यही है कि हर दिन को नई ऊर्जा के साथ नयापन से भर दें। इसी सकारात्मक सोच को उजागर करते कैलेण्डर ने आखिरी दिन तक अपनी महत्ता को बनाये रखा।

जीत अभी बाकी है !

बूढ़ा होना प्रकृति का नियम है, अतः बूढ़ा हो रहा हूँ के गम में डूबने के बजाय कैलेण्डर यह सोचकर खुश होता रहा कि अपने अच्छे कर्मों से सेवाकाल को संपन्न कर सिर उठाये सेवानिवृत्त हो रहा हूँ। उसका यह आत्मविश्वास उसे हर दिन सर्वश्रेष्ठ होने का तमगा देता रहा। अपनी योग्यता को परखते-प्रदर्शित करते स्वयं को सशक्त बनाये हुये किसी भी प्रकार की कुंठा-ठहराव की स्थिति से निर्भय बना रहा, फलस्वरूप वह अपनी कील पर, दीवार की उस जगह पर जहाँ स्थापित हुआ था, उसे अंत तक यथावत अपने लिए सुरक्षित बनाये रखा। अंतिम दिवस पर कैलेण्डर मुस्कान बिखेरते हुये कह गया-

कुछ जीत अभी बाकी है, कुछ हार अभी बाकी है.

अब तक तो केवल एक अध्याय को पढ़ा है, अभी तो पूरी किताब बाकी है।

विजय मिश्रा ‘अमित’ पूर्व अति. महाप्रबंधक (जन.), मोबाईल 9893123310

एम-8 सेक्टर 2, अग्रोहा सोसायटी, पो.आ.-सुंदर नगर, रायपुर (छत्तीसगढ़) 492103

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