मल्टी-यूटिलिटी सेंटर ने खोला स्वरोजगार का द्वार, महिलाओं ने अकुशल श्रम से व्यवसाय की ओर बढ़ाए कदम, मनरेगा अभिसरण से निर्मित वर्क-शेड में बना रही हैं फेन्सिंग पोल, आर्थिक स्वावलंबन के लिए बनीं प्रेरणास्रोत

Advertisements
Advertisements

मजदूरी करने वाली महिलाएं अब खुद का व्यवसाय कर रहीं, इनके काम को देखकर गांव में बने 12 नए स्वसहायता समूह

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो,

रायपुर. स्वरोजगार के लिए अच्छा माहौल और उपयुक्त स्थान पाकर सुदूर कोरिया जिले के आदिवासी बहुल चिरमी गांव की महिलाओं ने अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया है। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) और डीएमएफ (जिला खनिज न्यास निधि) के अभिसरण से बने मल्टी-यूटिलिटी सेंटर में वहां की गंगा माई स्वसहायता समूह की 12 महिलाएं खुद का उद्यम स्थापित कर फेंसिंग पोल बनाने का काम कर रही हैं। खेतों और मनरेगा कार्यों में मजदूरी करने वाली इन महिलाओं को अकुशल श्रम से स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाते देखकर गांव की बांकी महिलाएं भी प्रेरित हो रही हैं। इनके काम शुरू करने के बाद से गांव में 12 स्वसहायता समूह गठित हो चुके हैं।

मनरेगा और डीएमएफ के अभिसरण से 12 लाख 15 हजार रूपए की लागत से वर्क-शेड के रूप में तैयार मल्टी-यूटिलिटी सेंटर में चिरमी की गंगा माई स्वसहायता समूह की महिलाएं फेंसिंग पोल बनाकर खड़गंवा विकासखण्ड के कई गांवों में आपूर्ति कर रही हैं। इनके द्वारा निर्मित 300 से अधिक पोल्स (Poles) की बिक्री अब तक की जा चुकी है। ग्राम पंचायतें इनका उपयोग गौठान और ब्लॉक-प्लांटेशन की घेराबंदी में कर रही हैं। पोल्स की बिक्री से समूह को 80 हजार रूपए मिले हैं। इन महिलाओं को तीन लाख रूपए का वर्क-ऑर्डर मिला है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित इस समूह की महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन की उड़ान को देखकर गांव में 12 नए महिला स्वसहायता समूह गठित हो गए हैं।

गंगा माई स्वसहायता समूह की सदस्य श्रीमती उर्मिला सिंह और श्रीमती रामवती मनरेगा में पंजीकृत श्रमिक हैं। खेती-किसानी, वनोपज संग्रहण और मनरेगा में मजदूरी ही उनकी आजीविका का साधन हुआ करता था। उन्होने कुछ साल पहले गांव की अन्य महिलाओं को जोड़कर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गंगा माई स्वसहायता समूह बनाया। समूह में 12 सदस्य हैं। इन महिलाओं ने मनरेगा कार्य से मिली मजदूरी में से कुछ रकम बचाकर समूह की गतिविधियां प्रारंभ की। इनके समूह को आजीविका मिशन से 15 हजार रूपए की आर्थिक सहायता भी मिली। इससे उत्साहित होकर इन्होंने वन-धन केन्द्र के माध्यम से वनोपज संग्रहण का काम शुरू किया। इस काम के लिए समूह को वन प्रबंधन समिति के माध्यम से बतौर कमीशन 18 हजार रूपए मिले। चिरमी में पिछले साल गौठान बनने के बाद इन महिलाओं ने वहां जैविक खाद बनाने का काम किया। इससे उन्हें साढ़े आठ हजार रूपए की अतिरिक्त कमाई हुई।

श्रीमती उर्मिला सिंह बताती हैं कि ग्राम पंचायत से उनके समूह को जून-2021 में यह मल्टी-यूटिलिटी सेंटर मिला था। लेकिन इसके तुरंत बाद खेती-किसानी का काम आ जाने से उन लोगों ने सितम्बर-2021 से फेंसिंग पोल बनाने का काम शुरू किया। आजीविका मिशन से मिले संसाधनों, वहां बने समान रखने का स्टोर और पोल्स की तराई के लिए पानी की व्यवस्था होने के बाद काम में तेजी आई। वह बताती हैं कि समूह को आसपास के ग्राम पंचायतों से अब तक करीब एक हजार पोल का ऑर्डर मिल चुका है। वे इनमें से 300 पोल्स की आपूर्ति भी कर चुके हैं।

कोरिया जिला मुख्यालय बैकुंठपुर से 28 किलोमीटर दूर चिरमी में गौठान के पास ही वर्क-शेड का निर्माण कराया गया है। इसके लिए 12 लाख 15 हजार रूपए की प्रशासकीय स्वीकृति जारी हुई थी। मनरेगा से मजदूरी भुगतान के लिए मिले एक लाख 54 हजार रूपए और डीएमएफ से सामग्री के लिए प्राप्त दस लाख 61 हजार रूपए के अभिसरण से इसका निर्माण हुआ है। गांव में मल्टी-यूटिलिटी सेंटर के निर्माण से जहां एक ओर 39 मनरेगा श्रमिकों को 798 मानव दिवस का सीधा रोजगार मिला, वहीं स्थानीय समूह को स्वरोजगार के लिए ठौर भी मिल गया।

मनरेगा के तहत वर्ष 2020-21 में गंगा माई स्वसहायता समूह की महिलाओं के परिवार ने 612 दिनों का रोजगार प्राप्त किया था, जबकि इस वर्ष 2021-22 में उन्होंने केवल 306 दिनों का रोजगार प्राप्त किया है। यह इस बात का प्रमाण है कि ये महिलाएं अब अकुशल श्रम के स्थान पर रोजगार के स्थाई साधन अपने व्यवसाय को तरजीह दे रही हैं। कल तक खेतों और  मनरेगा कार्यों में मजदूरी ढूंढने वाली ये महिलाएं अब राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान), मनरेगा और डीएमएफ से संबल और संसाधन पाकर आर्थिक स्वावलंबन के नए आयाम गढ़ रही हैं।

Advertisements
Advertisements
error: Content is protected !!