शिष्यगण धर्मसंघ का स्वर्ण जयंती समारोह कुनकुरी में सम्पन्न : प्रेरणा फोटो के अनावरण के साथ जुबली स्मारिका पुस्तक का हुआ विमोचन

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संस्था का आदर्श वाक्य – ‘संसार के कोने कोने में जाकर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ’ (मारकुस 16:15)

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, कुनकुरी

शिष्यगण धर्मसंघ का स्वर्ण जयंती समारोह कुनकुरी के शांतिपारा ग्राम में उत्साह एवं गरिमापूर्ण सम्पन्न किया गया। यह समारोह शिष्यगण धर्मसंघ के अपने स्थापना के 50 वर्ष परे होने पर आयोजित किया गया। इस अवसर पर मिस्सा अनुष्ठान के साथ बधाई कार्यक्रम रखा गया।

समारोह के प्रथम भाग में जुबली की घोषणा संस्था के संस्थापक फादर जोसेफ डीसूज़ा के द्वारा किया गया। इस मौके पर प्रेरणा फोटो के अनावरण के साथ-साथ तुरही निनाद तथा बैलून व कबूतर को उड़ाया गया। तत्पश्चात अतिथियों का स्वागत उद्बोधन सिस्टर असरिता रुंडा ने किया। संस्था का संक्षिप्त इतिहास का पठन सिस्टर जोसफिन तिर्की द्वारा किया गया। अतिथियों व प्रतिनिधियों के द्वारा 50 दीपों का प्रज्वलन किया गया।

संस्था के संस्थापक व संस्था प्रमुख फादर जोसेफ डिसूजा ने अपने प्रारंभिक संबोधन में कहा यह संस्था ईश्वर की योजना अनुसार कार्य करता है। आगे जानकारी देते हुए उन्होंने कहा वर्तमान में यह संस्था 56 डायसिस में सक्रिय है जिसमें भारत के अलावा विदेशों में ईश्वर का प्रेम, बीमार लोगों व गरीब लोगों की सेवा,येसु के जीवन को अपनाकर उनके कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं। यह समर्पित जीवन का नया रूप है।

इस स्वर्ण जयंती के मुख्य अतिथि रायपुर महाधर्मप्रान्त के महाधर्माध्यक्ष विक्टर हेनरी ठाकुर थे, अन्य अतिथियों में जशपुर धर्मप्रान्त के बिशप एम्मानुएल केरकेट्टा, जगदलपुर के बिशप जोसेफ कोल्लमपरमबिल,अम्बिकापुर धर्मप्रान्त के बिशप अन्तोनीस बड़ा, रायगढ़ धर्मप्रान्त के बिशप पौल टोप्पो, गुमला धर्मप्रान्त के प्रशासक फादर लीनुस पिंगल एक्का, दिल्ली सलेसि यन प्रोविंस के सहायक प्रोविंशियल विजय सोय, सलेसि यन समाज के पुरोहितगण, अन्य पुरोहितगण, धर्मबहनें, शिष्यगण धर्मसंघ के धर्मबंधु, धर्मबहनें एवं पुरोहितगण के साथ अन्य गणमान्य तथा स्थानीय विश्वासीगण एवं जनप्रतिनिधि उपस्थित हुए।

मिस्सा पूजा के मुखिया अनुष्ठाता रायपुर महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष विक्टर हेनरी ठाकुर थे जिनका सहयोग अन्य बिशपगण तथा पुरोहितगण ने दिया। इसकी शुरुआत प्रवेश नृत्य के साथ हुआ। बिशप ठाकुर ने संस्था के 50 वर्ष पूरे होने पर बधाई देते हुए उनके द्वारा किये गये कार्यों की सराहना किया। बाईबल से प्रथम पाठ सिस्टर मटिल्डा कुजूर, दूसरा पाठ ब्रदर थोमस तथा सुसमाचार पठन फादर जोसेफ डिसूजा ने किया।

बिशप एम्मानुएल केरकेट्टा ने प्रवचन में कहा जुबली ईश्वर द्वारा प्रदत्त अनुग्रह का वर्ष है। यह चिंतन और विचार करने का समय है। स्वयं से सवाल पूछना है कि क्या मैंने अपने संस्था के नियमानुसार तथा ईश्वर की योजना के अनुसार से अपना जीवन जिया है या नहीं। पुराने विधान का जिक्र करते हुए उन्होंने आगे कहा जयंती वर्ष मेल मिलाप का भी समय है। दुश्मनी और वैमनष्यता को समाप्त करने का समय है। यह समुदाय औरों के लिए आदर्श नमूना बनें। आपका कार्य प्रशंसनीय है। सबकुछ में ईश्वर को आधार बनाइए। प्रभु का प्रेम और सेवा को औरों तक पहुंचाते रहिए। सुन्दर समुदाय का निर्माण कीजये, किसी भी तरह का बेईमानी नहीं करिये, जहाँ भी जाये लोगों को मुक्ति का संदेश सुनाएं।

मिस्सा  के दौरान गाए जाने वाले धार्मिक गीतों का संचालन तथा गायन संस्था के धर्मबहनें व धर्मबंधुओं ने किया। मिस्सा के अंत में जुबली स्मारिका पुस्तक का विमोचन मुख्य अनुष्ठाता एवं संस्था  के संथापक फादर जोसेफ डीसूज़ा एवं अतिथिओं के द्वारा किया गया।  आभार उद्बोधन सिस्टर सेनेल टेटे ने दिया। इसी के साथ पुष्प गुच्छ, शॉल एवं धार्मिक तस्वीर प्रदान कर अतिथिओं का सम्मान किया गया।

स्वर्ण जयंती  के इस पावन दिवस पर बिशप पौल टोप्पो, बिशप अन्तोनीस, जोसेफ कोल्लमपरमबिल,   फादर लीनुस पिंगल एक्का, फादर ओस्कर तिर्की,  ने बधाई संदेश दिया। कार्यक्रम के दूसरे चरण में बधाई समारोह संपन्न किया गया जिसके अंतर्गत सांस्कृतिक नृत्य और गीतों की प्रस्तुति दी गयी।

संस्था का संक्षिप्त इतिहास:

संस्था का नाम ‘शिष्यगण धर्मसंघ’ है जिनके संस्थापक फादर जोसेफ डिसूजा हैं, जो स्वयं एक डॉन बोस्को सलेसियन धर्मसंघ के पुरोहित हैं। इस संस्था की शुरुआत बहुत ही सर्वसामान्य रूप में 1973 पश्चिम बंगाल से हुआ। वर्तमान में इसका मुख्यालय कुनकुरी में है। इनकी संस्था भारत के अलावा अमेरिका, पेरू, इटली,  रोम तथा विश्व के अन्य देशों में भी अपनी सेवाएं दे रही है। इनकी संख्या 420 से भी अधिक है, जिसमें धर्मबहनें 370,  धर्मबंधुएँ 50 और पुरोहित 3 हैं। इनका आदर्श वाक्य संसार के कोने कोने में जाकर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ’ (मारकुस 16:15) इनका मिशन कार्य है प्रार्थना, सेवा, पारिवरिक मुलाकात द्वारा येसु के कार्यों को आगे बढ़ाना।

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