हार्ट सर्जरी के नेशनल कॉन्फ्रेंस में डाॅ. कृष्णकांत साहू के ऑपरेशन के तरीके की सराहना

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वीडियो प्रेजेंटेशन में जटिल सर्जरी एब्सटीन एनामली, एन्ड आरटेरेक्टाॅमी एवं फीमारो फीमोरल क्राॅस ओवर बाईपास की हुई सराहना

समदर्शी न्यूज़ ब्यूरो, रायपुर

हाल ही में कोयंबटुर (तमिलनाडु) में हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन एसोसिएशन द्वारा आयोजित 69वें नेशनल कॉन्फ्रेंस (IACTSCON 2023) में डाॅ. कृष्णकांत साहू के द्वारा किये ऑपरेशन की बहुत अधिक सराहना हुई। डाॅ. कृष्णकांत साहू पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय एवं इससे संबद्ध डाॅ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय रायपुर में स्थित कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं। छत्तीसगढ़ के एक मात्र हार्ट सर्जन जिनका इस काॅन्फ्रेंस के लिए पेपर सलेक्ट हुआ। इस कॉन्फ्रेंस में एक सर्जन को एक पेपर ही प्रस्तुत करना था वह भी कॉन्फ्रेंस कमेटी द्वारा चयन किये जाने पर, लेकिन डाॅ. साहू के तीन पेपर वीडियो प्रेन्टेंशन के लिए चयनित हुए क्योंकि इनके तीनों ही पेपर में जो ऑपरेशन की तकनीक बतायी गयी थी वह कमेटी के लोगों को काफी पसंद आयी। यह एक शासकीय चिकित्सा संस्थान के लिए बहुत ही गौरव का विषय है।

इस कॉन्फ्रेंस में डाॅ. साहू ने तीन वीडियो प्रेजेंटेशन प्रस्तुत किया जिसमें एक जन्मजात हृदय रोग एब्सटीन एनामली के ऑपरेशन के बारे में वीडियो बनाकर विस्तार से अन्य सर्जनों के समक्ष रखा। इस जन्मजात हृदय रोग का इस तरह का सफल ऑपरेशन छत्तीसगढ़ में पहली बार इसी संस्थान में हुआ था। यह एक जन्मजात हृदय रोग है जिसमें आधे बच्चे जन्म के समय या जन्म के कुछ समय बाद हार्ट फेल्योर से मर जाते हैं एवं कुछ जो बचते हैं उनकी औसत आयु 20 से 25 साल होता है। यदि ऐसे मरीजों का सही समय पर सही ऑपरेशन हो जाए तो मरीज सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है।

दूसरा पेपर खून की नसों के ऑपरेशन का था जिसमें ऑपरेशन का वीडियो बनाकर बताया गया कि पूर्ण रूप से बंद खून की नसों को विशेष विधि जिसको एन्ड आरटेरेक्टाॅमी कहा जाता है, से ऑपरेशन करके पुनः खून का प्रवाह प्रारंभ किया जा सकता है। जिससे पैरों में गैंग्रीन होने से बचाया जा सकता है। 

तीसरा पेपर खून के नस के ऑपरेशन के नये तरीके जिसको फीमारो फीमोरल क्राॅस ओवर बाईपास कहा जाता है के बारे में वीडियो बनाकर विस्तार से अन्य सर्जन्स को बताया गया। इस आॅपरेशन में एक पैर की खून की नस को दूसरे पैर के बंद खून की नस से जोड़ दिया जाता है जिससे बंद नसों में भी रक्त का संचार प्रारंभ हो जाता है एवं पैर को कटने से बचाया जा सकता है। इस काॅन्फ्रेंस में देश-विदेश से लगभग 1500 हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन ने हिस्सा लिया था।

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